ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप: पादुकोण, नेहवाल और गोपीचंद ने भारत के लिए किया है सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
प्रकाश पादुकोण ने साल 1980 में पुरुषों का एकल खिताब जीता था और ऐसा करने वाले वो पहले भारतीय बने थे।
ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप दुनिया का सबसे पुराना बैडमिंटन टूर्नामेंट है। यह एक ऐसी प्रतियोगिता है जहां विरासत और उत्कृष्टता का संगम होता है। पहला संस्करण 1898 में गुइलफोर्ड में आयोजित किया गया था। इसकी शानदार सफलता के बाद इसे 1899 में लंदन के हॉर्टकल्चरल हॉल में स्थानांतरित कर दिया गया।
यह बैडमिंटन की अनौपचारिक विश्व चैंपियनशिप के रूप में माना जाता था, जब तक कि अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन महासंघ ने 1977 में इसे अपनी चैंपियनशिप के रूप में घोषित नहीं किया था।
भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी लंबे समय से ऑल इंग्लैंड ओपन में भाग ले रहे हैं। आइए, भारतीय खिलाड़ियों के द्वारा इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में किए गए कुछ सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों पर एक नज़र डालते हैं।
प्रकाश नाथ - 1947 के उप-विजेता
द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बंद की गई चैंपियनशिप 1947 में फिर से शुरू हुई। प्रतियोगिता का आयोजन रोके जाने से पहले इसमें खेलने के लिए स्थान पक्का प्रदर्शन के आधार पर होता था। टूर्नामेंट में भारत की ओर से प्रकश नाथ और उनके खतरनाक प्रतिद्वंद्वी देविंदर मोहन के रूप में दो प्रविष्टियां थीं। नाथ ने 1946 में मोहन को हराकर राष्ट्रीय पुरस्कार जीता और भारतीय महासंघ ने अंतर्राष्ट्रीय अनुभव हासिल करने के लिए दोनों खिलाड़ियों को टूर्नामेंट में भेजने का फैसला किया।
आयोजकों ने उन्हें ड्रॉ के उसी क्वार्टर में रखा, जिससे उनमें से केवल एक को ही फाइनल में पहुंचने का मौका मिला था। पहले ही दौर में नाथ डेनमार्क के चैंपियन टेज मैडसेन के खिलाफ उतरे थे। 25,000 दर्शकों की भीड़ के सामने उनके पसंदीदा ने पहला सेट 15-7 से जीता।
हालांकि, नाथ, मैडसेन पर बढ़त हासिल करने में सफल रहे और दूसरा सेट 15-12 से अपने नाम किया। सभी की निगाहें तीसरे सेट पर थी और नाथ ने अपने प्रतिद्वंद्वी को 15-3 से हरा दिया।
दूसरे दौर में उन्होंने टॉड माजरी को सीधे सेटों में 15-7, 15-11 से हराया, लेकिन क्वार्टर फ़ाइनल में उन्हें अपने प्रिय मित्र और प्रतिद्वंद्वी मोहन का सामना करना था। इंग्लैंड की भीड़ को चौंकाने के लिए दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ अपनी तलवारें नहीं खींची और एक सिक्का उछालकर विजेता का फैसला किया गया। यह अभूतपूर्व था और इंग्लैंड की प्रेस ने इसे अलग तरह की कहानी के रूप में प्रकाशित किया। भाग्य ने नाथ का साथ दिया और उन्हें अगले दौर में आगे बढ़ने का मौका मिला।
सेमीफाइनल में नाथ स्थानीय खिलाड़ी रेडफोर्ड के खिलाफ मुकाबले में उतरे। स्थानीय खिलाड़ी ने उन्हें पहले सेट में कड़ी टक्कर दी, लेकिन दूसरे सेट में उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को हरा दिया। इस जीत ने नाथ के लिए फाइनल में जगह बनाकर, ऐसा करने वाले पहले भारतीय बनने का मार्ग प्रशस्त किय
प्रकाश पादुकोण - 1980 के विजेता, 1981 के उप-विजेता
महज 24 साल की उम्र में प्रकाश पादुकोण ने वेम्बली स्टेडियम में 23 मार्च, 1980 को ऑल इंग्लैंड ओपन जीत, पहला भारतीय बनकर इतिहास रच दिया।
वह मुकाबले में बढ़त बनाये हुए थे और बिना एक भी सेट गंवाये चैंपियनशिप जीत ली। 32 राउंड में उन्होंने मलेशियाई सफियन अबू बक्र के खिलाफ मुकाबला किया। थोड़ी परेशानी के साथ उन्होंने प्रतिद्वंदी को 15-7, 15-12 से मात दी।
अगले दौर में उन्होंने इंडोनेशिया हादियांतो के खिलाफ मुकाबला किया। उन्होंने पहला सेट 15-0 से जीतकर अपने प्रतिद्वंद्वी को नीचे कर दिया। उन्होंने दूसरा सेट 15-10 से जीतकर बढ़त को और मजबूत कर दिया।
अपने गेमप्ले को लागू कर पादुकोण दर्शकों के पसंदीदा हो गए और क्वार्टर फ़ाइनल में पहुंचे। उन्होंने यहां भी अपनी शानदार फॉर्म को जारी रखते हुए स्विस प्रतिद्वंद्वी प्राइ को 15-4, 15-4 से हराया।
अंतिम चार में उन्होंने फ्रॉस्ट हेंसन में एक और स्विस प्रतिद्वंदी का सामना किया। प्री के हमवतन का किस्मत भी उसके जैसी ही रही और उसने पादुकोण के सामने 15-8, 15-10 से आत्मसमर्पण कर दिया।
फाइनल में उन्होंने इंडोनेशिया के लीम स्वि किंग के खिलाफ मैच खेला, जो उनकी तरह ही अच्छी फॉर्म में चल रहे थे। उन्होंने बिना कोई सेट गंवाये अपने प्रतिद्वंद्वी का तब तक सामना कि या किंग दो बार के चैंपियन थे और तीसरी बार खिताब के बचाव करने के लिए लड़ रहे थे।
लेकिन, पादुकोण ने सभी को आश्चर्यचकित करते हुए पहला सेट 15-3 से जीता। किंग ने दूसरे में कुछ प्रतिरोध दिखाया, लेकिन भारतीय खिलाड़ी की चालाकी और स्पिन का कोई मुकाबला नहीं था। इस प्रकार किंग यह सेट 15-10 से हार गया।
1981 में पादुकोण को फाइनल में उसी प्रतिद्वंद्वी का सामना करना पड़ा और दुनिया की नजर इस पर थी कि अब तक के सबसे प्रतीक्षित मैच का परिणाम क्या होगा।
किंग पिछली हार का बदला लेना चाहता था। पहले सेट में एक समय पर वह 9-0 की बढ़त हासिल करने में सफल रहे, लेकिन पादुकोण ने वापसी करते हुए सेट 11-15 से जीत लिया।
वापसी करने के लिए उन्होंने जो शानदार प्रयास किए और पहला सेट जीता, लेकिन इसमें उन्होंने अपनी ज्यादातर ऊर्जा खर्च कर दी। इसके बाद दूसरे और तीसरे सेट में मुकाबला लम्बा खिंच गया और भारतीय खिलाड़ी अंतत: 15-11, 4-15, 6-15 से मैच हार गए।
पुलेला गोपीचंद - 2001 के विजेता
पुलेला गोपीचंद 2001 में खिताब जीतने के लिए पसंदीदा नहीं थे। वास्तव, में उन्हें 9-16 ब्रैकेट में वरियता के आधार पर जगह मिलने और टूर्नामेंट ठोस सतह पर आयोजित किए जाने से भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी में नाराजगी थी।
हालांकि, घरेलू सर्किट में वह सही प्रदर्शन करते हुए अच्छी फॉर्म में थे। 32 के राउंड में उन्होंने स्थानीय खिलाड़ी कॉलिन हैगटन को सीधे सेटों में 15-7, 15-4 से आसानी से हराया। 16 के राउंड में वह टूर्नामेंट के पसंदीदा चीनी जी जिंगपेंग के खिलाफ उतरे थे, जो एक ओलंपिक चैंपियन और उस समय अंतर्राष्ट्रीय सर्किट में हावी था।
गोपीचंद ने चीनी को परेशान करते हुए सीधे सेटों में 15-3, 15-9 से हराया। क्वार्टर में उन्होंने अपनी अच्छी फॉर्म को जारी रखते हुए बिना किसी मुश्किल के एंडर्स बोयसेन को 15-11, 15-7 से हराया।
हालांकि, सेमीफाइनल में उसके दायरे को स्विस अंतर्राष्ट्रीय पीटर गैड ने परखा था। यह तनावपूर्ण मुकाबला था, क्योंकि दोनों खिलाड़ी आगे-पीछे चल रहे थे। लेकिन, गोपीचंद ने दोनों सेटों के टाईब्रेकर में जोश बनाये रखते हुए 17-14, 17-15 से मैच जीत लिया।
फाइनल में चीन के चेन होंग के खिलाफ मुकाबले में उनका ज्यादा कुछ दांव पर नहीं था। मैच में 15-12, 15-6 से जीत हासिल कर गोपीचंद ऑल इंग्लैंड ओपन जीतने वाले दूसरे भारतीय बने।
साइना नेहवाल - 2015 की उप-विजेता
सायना नेहवाल 2015 में ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप में तीसरी खिलाड़ी थीं। इसलिए पहले राउंड में उन्हें एक आसान ड्रॉ मिला और वह इंडोनेशिया की बेलाएट्रिक्स मैट्रिक्स के खिलाफ थीं। उन्होंने उसे सीधे सेटों में 21-8, 21-12 के स्कोर के साथ आसानी से हराया।
दूसरे दौर में उसने दक्षिण कोरिया की किम हियो-मिन का सामना किया और एक बार फिर बिना किसी परेशानी के प्रतिद्वंदी को 21-15, 21-15 से हराया।
हालांकि, क्वार्टर फ़ाइनल में उसे चीन की पांचवीं वरियता प्राप्त वांग यिहान से मुकाबला करना था। पहले सेट में एक करीबी मुकाबला था, लेकिन उसने इसे 21-19 से जीत लिया। दूसरे सेट में नेहवाल ने अपने खेल को ऊंचा कर लिया और यिहान को 21-6 से हराया।
सेमीफाइनल में उसे सन यू में एक और चीनी बैडमिंटन खिलाड़ी का सामना करना पड़ा। शानदार भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बिना कोई मेहनत किए मैच 21-13, 21-13 से जीत लिया। साइना का ध्यान इतिहास रचने के लिए फाइनल मुकाबले पर था। वह ऑल इंग्लैंड ओपन जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनने से बस एक जीत दूर थी। फाइनल में उनकी विरोधी स्पेन की छठी वरियता प्राप्त कैरोलिना मारिन थीं।
उसने एक तेज शुरुआत करते हुए पहला सेट 21-16 से जीता। हालांकि, बाद के सेटों के दौरान कोर्ट में उसकी चाल धीमी पड़ और वह अंतिम दो सेट 14-21, 7-21 से हार गई।
साइना ने भारत लौटने के बाद कहा, "पहला गेम काफी अच्छा था। मैंने बहुत अच्छी शुरुआत की। मुझे लगता है कि वह भी अच्छी फॉर्म में थी और उसने इसके बाद मुझे कड़ी चुनौती दी। यह स्पष्ट है कि एक खेल है तो यह चुनौतीपूर्ण होगा।
लक्ष्य सेन - 2022 के उप-विजेता
ल****क्ष्य सेन भारत के शीर्ष पुरुष बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में ऑल इंग्लैंड ओपन के कोर्ट पर उतरे। उन्होंने दिसंबर में वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था, जिसके बाद उन्हें 17 मैचों में से सिर्फ दो मैचों में हार का सामना करना पड़ा है।
इस दौरान वर्ल्ड नंबर 11 खिलाड़ी 20 वर्षीय लक्ष्य सेन ने इंडिया ओपन खिताब में मौजूदा वर्ल्ड चैंपियन लोह कीन यू को हराकर खिताब जीता था। इसके बाद जर्मन ओपन में उन्होंने राउंड ऑफ 16 में इंडोनेशिया के ओलंपिक कांस्य पदक विजेता एंथनी गिंटिंग और सेमीफाइनल में दुनिया के नंबर 1 डेन विक्टर एक्सेलसेन को हराया।
ऑल इंग्लैंड ओपन में लक्ष्य सेन ने हमवतन सौरभ वर्मा को 21-17, 21-7 से हराया। वही्ं, वर्ल्ड नंबर 3 और वर्ल्ड चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता डेनमार्क के एंडर्स एंटोनसेन को 21-15, 18-21, 21-13 से हराया। इसके बाद उन्होंने चीन के लू गुआंग जू को 21-10, 21-11 से क्वार्टर फाइनल में शिकस्त दिया। सेमीफाइनल में, भारतीय खिलाड़ी ने दुनिया के 7वें नंबर के खिलाड़ी ली ज़ी जिया को 21-7, 13-21, 21-11 से हराया।
इस प्रकार, लक्ष्य सेन, पुलेला गोपीचंद के बाद 21 वर्षों में ऑल इंग्लैंड ओपन टूर्नामेंट में पुरुषों के फाइनल में जगह बनाने वाले पहले भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बन गए।
हालांकि, उनके बेहतरीन प्रदर्शन पर विक्टर एक्सेलसन ने ब्रेक लगाया। अपने पहले BWF सुपर 1000 फाइनल में खेलते हुए लक्ष्य सेन टोक्यो ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता से 53 मिनट तक चले मुकाबले में 21-10, 21-15 से हार गए। भारतीय खिलाड़ी ने इस मैच में एक्सेलसेन को कड़ा टक्कर दी, जिसमें मैच में 70-शॉट की रैली शामिल थी।