जानिए भारतीय बास्केटबॉल टीम का इतिहास, प्रसिद्ध खिलाड़ी और अब तक का सफर

शुरुआती दौर में एशिया की सर्वश्रेष्ठ टीमों में से एक भारतीय बास्केटबॉल टीम अब अपनी पुरानी स्थिति में वापस लौटने के लिए संघर्ष कर रही है। 

9 मिनटद्वारा जतिन ऋषि राज
India basketball team player
(FIBA)

भारत में बास्केटबॉल भले ही क्रिकेट, फुटबॉल या हॉकी की तरह लोकप्रिय नहीं है लेकिन इस खेल ने भारतीय खेल जगत में अपनी अलग पहचान बनाई है।

स्कूल और कॉलेज में खेले जाने वाले बास्केटबॉल खेल ने इतिहास में बड़े मंच पर भी काफी सफलता हासिल की है।

पंजाब की गलियों से निकल कर NBA तक का सफर पूरा करने वाले सतनाम सिंह ने भारतीय बास्केटबॉल में अपना अहम योगदान दिया है, जो एनबीए की समृद्ध और ग्लैमरस दुनिया में शामिल होने वाले पहले भारतीय थे। इसके अलावा एशियाई स्तर पर भी भारतीय बास्केटबॉल टीम की जीत ने भी इस खेल में भारत को उम्मीद किरण दिखाई है।

भारतीय बास्केटबॉल का इतिहास

1890 के दशक में यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन (YMCA) एक मिशनरी टी ड्युकन पेटोन द्वारा खेल से रूबरू कराए जाने के बाद इस खेल को भारत में अपनी जगह बनाने में कुछ समय ज़रूर लिया, लेकिन देखते ही देखते लोग इससे जुड़ते गए और कारवां बनता गया। 1934 में पहली बार भारत के नई दिल्ली शहर में नेशनल बास्केटबॉल चैंपियनशिप का आयोजन भी किया गया।

जल्दी ही बास्केटबॉल की वार्षिक प्रतियोगिताएं नियमित तौर पर आयोजित होने लगीं। शुरुआती वर्षों में बास्केटबॉल को काफ़ी हद तक YMCA द्वारा नियंत्रित किया जाता था।

भारत की स्वतंत्रता के बाद साल 1950 में बास्केटबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया (BFI) नामक संगठन को बनाया गया और उन्हें इस खेल को भारत के कोने-कोने तक फैलाने की जिम्मेदारी दी गई।

(Getty Images)

घरेलू प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन की बदौलत जल्दी ही पहली पुरुष भारतीय बास्केटबॉल टीम का गठन किया गया, जिसने 1965 में मलेशिया के कुआलालंपुर में आयोजित द्विवार्षिक कॉन्टिनेंटल प्रतियोगिता एशियाई बास्केटबॉल चैंपियनशिप में हिस्सा लिया।

ग्रुप चरण और क्लासिफिकेशन मैचों में भारत के प्रदर्शन ने बास्केटबॉल प्रशंसकों को काफ़ी आश्चर्यचकित किया, जिसमें सिंगापुर, हांगकांग और दक्षिण वियतनाम के ख़िलाफ़ शानदार जीत भी शामिल थी।

दिग्गज खिलाड़ी खुशी राम

इस टीम का नेतृत्व हरियाणा में जन्मे खुशी राम कर रहे थे। उन्होंने साल 1965 से 1970 तक पुरुषों की राष्ट्रीय टीम का नेतृत्व किया और बड़ी संख्या में बास्केट स्कोर करने की अपनी क्षमता के कारण उन्हें 'एशिया की स्कोरिंग मशीन' का उपनाम भी मिला।

खुशी राम नई भारतीय टीम के लीडर के रूप में उभरे और उनका सबसे बेहतरीन पल साल 1970 में आया जब राष्ट्रीय टीम की ओर से खेलते हुए उनका सामना इलिनोइस विश्वविद्यालय के हूपस्टर्स के ख़िलाफ़ हुई।

हालांकि, अपनी गति और लचीलेपन के लिए मशहूर अमेरिकी टीम मैच में हावी रहे लेकिन 6 फीट 4 इंच लंबे खुशी राम ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए अपने कौशल और निपुणता से मेज़बानों को काफ़ी परेशान किया।

भारतीय पुरुष बास्केटबॉल टीम के तत्कालीन कोच गुलाम अब्बास मोंटसिर ने अपने पसंदीदा खिलाड़ी खुशी राम के लिए एक बार कहा था, “खुशी राम ने चाहे ज्यादा असिस्ट नहीं किया लेकिन उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को हमेशा कड़ा जवाब दिया और वह एशिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी बने।”

खुशी राम ने 1964 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेब्यू किया और साल 1965 में एशियाई बास्केटबॉल चैंपियनशिप में भारत का नेतृत्व किया, जहां उनकी शानदार स्कोरिंग देखने को मिली। वह साल 1965 और साल 1969 में प्रतियोगिता के सर्वोच्च स्कोरर भी बने।

साल 1970 में फिलीपींस में खेलते हुए खुशी राम एक बार फिर सबसे ज़्यादा स्कोर हासिल करने वाले खिलाड़ी बने और उन्हें मोस्ट वैल्युएबल प्लेयर भी घोषित किया गया।

दो बार के एशियाई खेल के चैंपियन और विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने वाले लॉरो मुम उस समय फिलीपींस के कोच हुआ करते थे और उन्होंने खुशी राम का खेल देख कर यहां तक बोल दिया था कि “अगर यह मेरी साइड आ जाए तो इसके साथ मैं पूरी दुनिया में जीत हासिल कर सकता हूं।"

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मोंटसिर ने कहा, “एक दिन जब खुशी राम का दिन अच्छा नहीं गया और फिर भी उनकी झोली में 30 अंक थे।” खुशी राम के संन्यास लेने के बाद भी कॉन्टिनेंटल स्तर पर भारतीय बास्केटबॉल टीम ने अपना शानदार प्रदर्शन जारी रखा।

भारत के लिए सबसे अच्छा मौका 1975 एशियाई चैंपियनशिप के दौरान आया, जब भारतीय टीम ने चैंपियन चीन, कोरिया और जापान के बाद चौथे स्थान पर रहते हुए अपने कारवां का अंत किया।

अजमेर सिंह, हनुमान सिंह और राधे श्याम जैसे खिलाड़ियों के साथ कहा जा सकता था कि भारतीय बास्केटबॉल सुरक्षित हाथों में है और ओलंपिक गेम्स 1980 में इस टीम से उम्मीदें भी लगाई जा सकती थीं।

ओलंपिक खेल में भारतीय बास्केटबॉल

मास्को ओलंपिक 1980 में भारतीय बास्केटबॉल टीम अपना डेब्यू करने जा रही थी और इस टीम का नेतृत्व परमजीत सिंह कर रहे थे।

FIBA को बताते हुए परमजीत ने कहा, “वह जीवन का सबसे बड़ा अवसर था। मुझे लगा कि मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ खेल दिखाना है क्योंकि आने वाले ओलंपिक खेल में भारत खेले यह ज़रूरी नहीं है।”

भारत ने जहां मॉस्को गेम्स के लिए क्वालिफाई कर लिया, वहीं राजनैतिक कारणों की वजह से बहुत से देशों ने उस प्रतियोगिता से अपना नाम वापस ले लिया था। मेज़बान सोवियत संघ, ब्राज़ील और चेकोस्लोवाकिया के ग्रुप में शामिल भारतीय टीम ने एक भी जीत हासिल नहीं की और 12वें स्थान पर रही।

बड़ी टीमों के खिलाफ खेलना ही अपने आप में बड़ी बात होती है और भारत ने उस प्रतियोगिता से भी बहुत कुछ सकारात्मक चीज़ें अपने बस्ते में डालीं और वतन वापस लौट आए।

परमजीत सिंह ने आगे कहा, “अपने पहले गेम के लिए एरिना में घुसना और सोवियत यूनियन के खिलाफ खेलना एक सपने जैसा था। मुझे इस बात पर गर्व है कि मैंने पहले ओलंपिक में इंडियन बास्केटबॉल टीम का प्रतिनिधित्व किया है।”

प्रतियोगिता के बाद के हिस्से में भारतीय बास्केटबाल टीम ने अच्छा खेल दिखाया और सेनेगल को कड़ी चुनौती दी। यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी उनका प्रदर्शन काबिल-ए-तारीफ़ रहा।

एक समय भारतीयों ने अजमेर सिंह की मदद से ऑस्ट्रेलियाई टीम को पीछे भी छोड़ दिया। उन्होंने प्रतियोगिता को आठवें सर्वश्रेष्ठ स्कोरिंग औसत के साथ समाप्त किया, जबकि राधेश्याम ने भी बेहतरीन प्रदर्शन से प्रशंसकों का दिल जीत लिया। 

हालांकि, एक वर्ष में केवल दो प्रमुख घरेलू प्रतियोगिताओं के रूप में राष्ट्रीय चैंपियनशिप और फेडरेशन कप के साथ, भारतीय खिलाड़ियों को भी लगातार विकसित हो रहे खेल के साथ तालमेल बनाए रखना मुश्किल हो गया।

आने वाले सालों में भारत ने कॉन्टिनेंटल प्रतियोगिताओं में अपनी कोशिश जारी रखी। लेकिन चीन, दक्षिण कोरिया और ईरान जैसे दिग्गजों के ख़िलाफ़ भारतीय हूपस्टर्स को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा था।

इस अवधि के दौरान भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन साल 1981 में कोलकाता में एशियाई चैंपियनशिप में आया जहां उन्होंने पांचवां स्थान हासिल किया।

हालांकि, सदी के अंत में भारत में NBA के आगमन से बास्केटबॉल को देश में एक नया फैन बेस मिला है।

भारत में NBA और आगे की राह

2000 के दशक की शुरुआत से, एनबीए कवरेज भारत में काफी कम रहा था। लेकिन यह स्थिति साल 2012 में बदल गई जब प्रमुख अमेरिकी लीग ने, भारत में अपने बाजार का विस्तार करने पर नज़र रखते हुए, पूरे सीज़न में अप्रतिबंधित कवरेज प्रदान करने के लिए एक ब्रॉडकास्ट डील किया।

अमेरिकी खेल को दक्षिण एशियाई राष्ट्र में लाने के अलावा, एनबीए ने भारत में बास्केटबॉल के मानक में सुधार पर भी काम किया है।

नई दिल्ली में एक एनबीए अकादमी आगामी पीढ़ी के बास्केटबॉल खिलाड़ियों की जरूरतों को पूरा करती है, जिन्हें भविष्य में बड़ी लीग में भाग लेने के अवसर के साथ-साथ पूरी तरह से छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है।

संजना रमेश, वैष्णवी यादव, जगशान बीर सिंह और आशय वर्मा जैसे युवा खिलाड़ी इसी अकादमी के विभिन्न कॉलेज टीमों से निकले हैं - जिसमें एनसीएए भी शामिल है - संयुक्त राज्य अमेरिका में, सबसे बड़ा आकर्षण छह फुट के प्रिंसपाल सिंह रहे हैं। 10 इंच का पावर फॉरवर्ड, जो 2020 में दुनिया भर से अन्य विशिष्ट संभावनाओं वाली एनबीए जी-लीग की इग्नाइट टीम में शामिल हुआ।

G-League में खेलने के बाद, प्रिंसपाल सिंह ने एक और बड़ा कदम आगे बढ़ाया जब उन्हें समर लीग में खेलने के लिए सैक्रामेंटो किंग्स द्वारा अपनी टीम में शामिल किया गया। समर लीग एनबीए द्वारा आयोजित एक ऑफ-सीजन प्रतियोगिता है जहां टीमें अपने नियमित खिलाड़ियों की जगह अलग-अलग जगहों के खिलाड़ियों विशेषकर युवाओं को आजमाती हैं। 

प्रिंसपाल सिंह ने अपनी टीम को समर लीग जीतने में मदद की, इस प्रकार वह एनबीए के किसी भी स्तर पर चैंपियनशिप रोस्टर का हिस्सा बनने वाले इतिहास के पहले भारतीय बन गए।

हालांकि, इन परिवर्तनों का अभी तक राष्ट्रीय टीमों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।

अवसरों की कमी के कारण, अमज्योत सिंह गिल, विशेष भृगुवंशी और अमृतपाल सिंह जैसे प्रतिभाशाली हूपस्टर भारतीय बास्केटबॉल को छोड़कर विदेशी लीगों में खेल रहे हैं।

(Sacramento Kings)

भारतीय पुरुष बास्केटबॉल टीम हमेशा से ही एशियन चैंपियनशिप का हिस्सा रही है। हालांकि, हर सीज़न में भारतीय टीम भाग तो ले रही है लेकिन जीत से अभी भी वह वंचित हैं

भारतीय महिला बास्केटबॉल टीम

भारतीय महिला बास्केटबॉल टीम ने पिछले कुछ सालों में बेहतर प्रदर्शन किया है और वह एशिया की टॉप लीग में क्वालीफाई करने में भी सफल रही है।

सिंह सिस्टर्स (दिव्या, प्रशांति, आकांक्षा और प्रतिमा), अनीता पॉल्डुराई, जीना स्कारिया, शिरीन लिमाए और स्टेफी निक्सन इस टीम की कुछ मुख्य खिलाड़ी हैं। 

इस टीम ने अपनी मेहनत के बल पर राष्ट्रमंडल खेल 2006 और 2018 में क्वालीफाई करते हुए अपने कौशल का प्रमाण दिया था। इतना ही नहीं, एशियाई खेल 2010, 2014 और 2018 का भी हिस्सा रहकर इस टीम ने अपने नाम का डंका बजाया था।

महिला टीम ने साल 2017 में FIBA एशिया कप के डिवीजन बी में जीत हासिल की और अनिता पॉल्डुराई ने इसे "भारत में महिला बास्केटबॉल के लिए एक नई शुरुआत" बताया था। लेकिन, यह खुशी बेहद कम समय के लिए थी क्योंकि डिवीजन ए में प्रोमोट होकर, भारत साल 2019 में FIBA एशिया कप में खेलते हुए अपने सभी मैच हार गया था।

(Getty Image)

मुख्य कोच के रूप में अनुभवी सर्बियाई ज़ोरान विसिच के साथ, यह उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय महिला बास्केटबॉल टीम आने वाले समय में सर्वश्रेष्ठ चुनौती पेश करेगी।

विसिच ने स्क्रॉल वेबसाइट को बताया, "मुझे लगता है कि मैं अपने अनुभव से बहुत मदद कर सकता हूं। सर्बिया और भारत में बास्केटबॉल की तुलना करना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन भारत के खिलाड़ियों की मानसिकता समान है।"

उन्होंने कहा, "मुझे यहां की हमारी लड़कियों पर बहुत गर्व है: वे बहुत अनुशासित और मेहनती हैं।"

से अधिक