टोक्यो 2020 ओलंपिक खेलों में हॉकी में आश्चर्यचकित करने वाली जीत, शानदार गोल और शूट-आउट ने दर्शकों को अपनी सीटों से बांधे रखा और उन्हें खेल छोड़कर जाने का कोई भी मौका नहीं दिया।
ओई हॉकी स्टेडियम में शूट-आउट इवेंट में बेल्जियम के खिलाड़ी ने अपना पहला स्वर्ण पदक जीता। वहीं डच महिलाओं ने जोरदार अंदाज में अपना खिताब हासिल किया।
सबसे यादगार पलों और पदकों के आगे पढ़ना जारी रखें, साथ ही पेरिस 2024 के लिए तीन साल पलभर में निकल जाएंगे।
टोक्यो 2020 में हॉकी के शीर्ष पांच खास लम्हें
टोक्यो 2020 ओलंपिक खेल जो 2021 में आयोजित हुए थे, उनकी हाइलाइट्स यहां दी गई है।
1- विश्व कप के ताज में बेल्जियम ने ओलंपिक स्वर्ण पदक जोड़ा
बेल्जियम के पुरुष हॉकी टीम ने टोक्यो में स्वर्ण के साथ विश्व हॉकी के शीर्ष पर अपनी जगह बनाई।
दक्षिण अफ्रीका में 2011 चैंपियंस चैलेंज में अपनी जीत की वजह से राष्ट्रों के शीर्ष स्तर में शामिल हुए रेड लायंस के लिए यह एक महत्वपूर्ण दशक रहा है।
इस दशक में वह पुराने एफआईएच वर्ल्ड लीग का हिस्सा बने, लेकिन वो वास्तव में शीर्ष पर तब पहुंचे जब वो रियो 2016 के फाइनल में पहुंचे और केवल अर्जेंटीना ने गोल्ड जीता।
भारत में हुए 2018 विश्व कप में बेल्जियम ने अपनी पहली वैश्विक जीत का ताज पहना, और फिर अगले साल यूरोपीय चैंपियन बन गया। साथ ही टोक्यो 2020 से कुछ महीने पहले अपना पहला एफआईएच प्रो लीग खिताब भी जीता।
अब बेल्जियम के पास खिताबों की जीत का एक पूरा सेट है, टोक्यो में फाइनल तक का सफर बेल्जियम के लिए ड्रामे से भरा था।
क्वार्टर फाइनल में स्पेन को 3-1 से हराने के बाद और सेमीफाइनल में भारत को 5-2 से मात देने के लिए उन्हें ऑस्ट्रेलिया को अपने रास्ते से हटाना जरूरी था।
फ्लोरेंट वैन औबेल (Florent van Aubel) ने तीसरे क्वार्टर की शुरुआत में बेल्जियम को आगे रखा, लेकिन चौथे क्वार्टर में टॉम विकम (Tom Wickham) ने जल्दी ही मैच को शूट-आउट तक पहुंचा दिया।
यह बहुत ही तनावपूर्ण माहौल था क्योंकि गोल लाइन पर स्वर्ण पदक की उम्मीद की जा सकती है। इस जगह पर बेल्जियम के गोलकीपर विन्सेंट वानाश (Vincent Vanasch) ने मोर्चा संभाला हुआ था।
बेल्जियम से पिछले दो गोल बचाने के बाद ऑस्ट्रेलिया के जैकब वेट्टन (Jacob Whetton ) ने 3-2 से ओलंपिक खिताब सुरक्षित कर लिया।
वेट्टन ने वाइड फायर किया और बेल्जियम ने जश्न मनाया, लेकिन इसकी समीक्षा की गई, रेफरी ने चार मिनट के इंतजार के बाद एक रीटेक का आदेश दिया गया, जिसमें वनाश ने अपनी स्ट्रिक से ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी को रोकने का फैसला लिया।
और दूसरी बार वनाश ने गेंद को दूर से ही दिखा दिया और उनकी टीम के ओलंपिक चैंपियन साथी ने इसका भरपूर फायदा उठाया।
वनाश टीम में एकमात्र शीर्ष स्कोरर अलेक्जेंडर हेंड्रिक्स (Alexander Hendrickx) से पीछे थे, जिन्होंने टूर्नामेंट में अविश्वसनीय 14 गोल किए थे।
उनके कीवी कोच शेन मैकलियोड ने छह बेहद सफल वर्षों के बाद यह पद छोड़ दिया, और इस ओलंपिक के बाद वह रिटायर हो जाएंगे, लेकिन बेल्जियम मेंस टीम हॉकी की शंहशाह बन गई।
2- डच टीम को रोकना मुश्किल
रियो 2016 में ग्रेट ब्रिटेन ने शूट-आउट में लगातार तीसरा स्वर्ण जीतकर डच टीम को इस लम्हें से दूर कर दिया था, टोक्यो में यह डच महिलाओं के लिए खुद को साबित करने का मौका था।
ग्रुप स्टेज मैचों के दौरान तीन टीमों के खिलाफ 18 गोल किए गए थे। पहले क्वार्टर में देर से ही सही एकमात्र गोल करने वाले फ्रेडरिक मैटला (Frederique Matla) मौजूदा चैंपियन ब्रिटेन के लिए रोड़ा बने हुए थे।
क्वार्टर फाइनल में यह और अधिक था क्योंकि उन्होंने ब्रिटेन के साथ दूसरी मुकाबले से पहले न्यूजीलैंड को अलग कर दिया था, ये जो कुछ भी था बहुत करीब था।
फेलिस एल्बर्स (Felice Albers) और मार्लो कीटेल्स (Marloes Keetels) के एक सेकेंड-क्वार्टर मिनट के अंतराल में दो गोल किए गए। इसका नीदरलैंड को फायदा हुआ जिससे उनकी जीत की दावेदारी पक्की हो गई।
जब अल्बर्स ने अपना दूसरा स्कोर बनाया और तीसरे क्वार्टर के बीच में 4-0 से बढ़त बना ली, यह खेल एक प्रतियोगिता के रूप में खत्म हो गया था जिसमें डच टीम अंतिम 5-1 से बढ़त बनाने की कोशिश कर रहे थे। यह रियो में मिली हार का बदला था।
अर्जेंटीना के साथ फाइनल से पहले किसी को उम्मीद नहीं थी कि डच टीम आराम के मूड में है, क्योंकि उन्होंने दूसरे क्वार्टर में तीन गोल किए थे, जिनमें से दो गोल कैया वैन मासाकर (Caia van Maasakker) की तरफ से थे। जिससे फाइनल से पहले वूमेंस डच टीम को एक मजबूती मिली थी।
आखिरी समय अंतराल में अर्जेंटीना ने डच टीम पीछे कर दिया, लेकिन डच खिलाड़ियों ने बाकी मैच पर पकड़ बनाई रखी और चार खेलों में अपने तीसरे खिताब का दावा किया।
बीजिंग 2008 की सफलता से कप्तान इवा डी गोएडे (Eva de Goede) और लिदेविज वेल्टन (Lidewij Welten) टीम से जुड़ें हुए हैं, और अब उनके पास तीन स्वर्ण पदक हैं। शायद वे पेरिस 2024 में अपने खेल का जलवा ना दिखा सके, लेकिन डचों के पास अपनी प्रतिभा को फिर से दिखाने का मौका होगा।
3: भारत का लंबे समय से मेडल के लिए इंतजार
20वीं शताब्दी में भारत मेंस हॉकी टीम का जलवा पूरी दुनिया में था, जिसने 1980 में आखिरी बार मास्को में ओलंपिक खिताब जीते थे।
तब से वह पदक जीतने की कोशिश में लगे हुए थे, लेकिन टोक्यो में 41 साल पुरानी चोट पर जीत का मरहम लग ही गया।
बीजिंग 2008 में क्वालीफाई ना करने की वजह से टीम की काफी बदनामी हुई, उसके बाद ग्राहम रीड को टीम में खिलाड़ियों को चुनने और हटानेकी जिम्मेदारी मिली। आखिरकार रीड ने खिलाड़ियों की क्षमता को पहचाना और उन्हें दुनिया के सामने एक साथ टीम के रूप में लाएं।
शुरुआती परिणाम उत्साहजनक नहीं थे। क्योंकि पहले उन्हें ऑस्ट्रेलिया के हाथों 7-1 से हारने के बाद न्यूजीलैंड से 3-2 से जीतने के लिए काफी मुश्किल हुई।
इससे खिलाड़ियों ने मैदान के बीच में गति को ऊपर उठाना सीखा, और ग्रेट ब्रिटेन के साथ क्वार्टर फाइनल में मुकाबला करने के लिए अगले तीन मैच को जीतना जरूरी हो गया था।
भारतीय टीम पेनल्टी कार्नर से हरमनप्रीत सिंह (Harmanpreet Singh) और वरुण कुमार (Varun Kumar) पर काफी निर्भर रही। इसके बाद भारत ने अपने विरोधियों को तीन गोल और 3-1 की जीत के साथ हैरान कर दिया।
भारत को उन्हें बेल्जियम के खिलाफ सेमीफाइनल में भी उम्मीद थी क्योंकि पहले क्वार्टर के आक्रामक खेल ने उन्हें 2-1 की बढ़त दिलाई थी, लेकिन विश्व चैंपियन ने ओलंपिक खिताब के रास्ते में आने वाली बाधा को पार किया और चार गोल कर जोरदार वापसी की।
जर्मनी के खिलाफ कांस्य पदक का प्लेऑफ मैच हैरतअंगेज था।
जर्मनों ने दूसरे क्वार्टर में पांच मिनट शेष रहते हुए 3-1 की बढ़त बना ली, लेकिन भारत का हाफ-टाइम के आठ मिनट में चार गोल के साथ एक धमाकेदार प्रदर्शन सामने आया।
पहले दो गोल हार्दिक सिंह (Hardik Singh) के रिबाउंड और पेनल्टी कॉर्नर से हरमनप्रीत के फ्लिक के माध्यम से आए, इससे पहले रूपिंदर पाल सिंह (Rupinder Pal Singh) ने पेनल्टी स्ट्रोक को बदल दिया और ब्रेक के बाद सिमरनजीत सिंह (Simranjeet Singh) के गोल ने इसे 5-3 कर दिया।
लुकास विंडफेडर (Lukas Windfede) के गोल ना होने देने पर टीम ने राहत की सांस ली, लेकिन भारत के युवा खिलाड़ियों ने अपने जीवनकाल में पहला ओलंपिक पदक हासिल किया।
इस बार भारत ने साबित कर दिया कि वह बाकी देशों के लिए हॉकी में दोहरा खतरा हैं, क्योंकि वूमेंस टीम भी अपने पहले ओलंपिक पदक के काफी मेहनत कर रही थी।
तीन हार के साथ अपने अभियान की शुरुआत करने के बावजूद भारत ने क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई, जहां गुरजीत कौर (Gurjit Kaur) की डिफलेक्टेड स्ट्राइक ने ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से हरा दिया।
यह गोलकीपर सविता (Savita) के लिए उनके शीर्ष खेलों में बड़ी उपलब्धि साबित हुई।
सेमीफाइनल की शुरुआत में गुरजीत ने फिर से गोल किया। लेकिन अर्जेंटीना की नोएल बैरियोन्यूवो (Noel Barrionuevo) के दो गोल दक्षिण अमेरिकियों के लिए मैच में बढ़त बनाने के लिए काफी थे।
इसकी वजह से भारत को रियो 2016 चैंपियन ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ कांस्य पदक के लिए प्लेऑफ में जगह मिली और अपना ग्रुप मैच उन्होंने 4-1 से जीता था।
गुरजीत के दो गोल और वंदना कटारिया (Vandana Katariya) के एक गोल की वजह से हाफ-टाइम में भारत 2-0 से पिछड़कर भी 3-2 से आगे हो गया।
लेकिन होली पीयरने-वेब (Hollie Pearne-Webb) ने बराबरी की और ग्रेस बाल्सडन (Grace Balsdon) ने 12 मिनट में गोल कर भारतीय उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
भारत की वूमेंस हॉकी टीम ने साबित कर दिया कि उनमें खेलने के जज्बे के साथ ताकत भी है, लेकिन अभी के लिए हॉकी इंडिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती कोच सोजर्ड मारिन का टीम को छोड़ना है। वह अपने परिवार के साथ रहने के लिए नीदरलैंड लौट रहे थे।
4- 'लास लियोनस' की दमदार वापसी
अर्जेंटीना की वूमेंस हॉकी बहुत ही शानदार टीम है, जो टोक्यो में होने वाली इवेंट्स के लिए पूरी तैयारी करके आई थी।
रियो 2016 में क्वार्टर फाइनल में लास लियोनस ने नीदरलैंड से हारने से पहले पांच में से सिर्फ दो ग्रुप गेम जीते थे। महान खिलाड़ी लुसियाना आयमार (Luciana Aymar) की रिटायरमेंट के बाद यह पहला मैच था, जिसे टीम ने जीता था।
पांच साल बाद, उन्होंने फाइनल में डच के खिलाफ फिर से कमाल की वापसी की।
न्यूजीलैंड के खिलाफ शुरुआती 3-0 की हार ने अर्जेंटीना के लिए एक चेतावनी के रूप में काम किया था। उसके बाद क्वार्टर फाइनल में जगह बनाने के लिए स्पेन, चीन और जापान को मात दी।
अंतिम आठ में उनका मुकाबला जर्मन टीम से था, जिसने उनके खेल को प्रभावित किया। लेकिन दूसरे क्वार्टर की शुरुआत में यूरोपीय के लिए यह चुनौती भरा रहा, जब सोनजा ज़िमर्मन (Sonja Zimmermann) को ग्रीन कार्ड दिखाया गया।
अगस्टिना अल्बर्टारियो (Agustina Albertarrio) ने अर्जेंटीना को आगे बढ़ाने के लिए रोशियो सांचेज़ (Rocio Sanchez ) के क्रॉस को परिवर्तित कर दिया और खेल की समाप्ति से ठीक दो मिनट पहले मारिया जोस ग्रानाटो (Maria Jose Granatto) की पेनल्टी कार्नर स्ट्राइक ने इसे 2-0 कर दिया।
युवा खिलाड़ी वेलेंटीना रापोसो (Valentina Raposo) ने 3-0 से जीत दर्ज की और भारत के खिलाफ सेमीफाइनल में जगह बनाई।
गुरजीत कौर द्वारा भारत को बढ़त दिलाने के बाद अर्जेंटीना के कप्तान नोएल बैरियोन्यूवो ने अपनी टीम के लिए एक और कदम आगे बढ़ाया।
चार ओलंपिक खेलों में अच्छा प्रदर्शन कर चुकी 37 वर्षीय अनुभवी खिलाड़ी ने दो बार पेनल्टी कार्नर से हाफ-टाइम के दोनों ओर गोल किए, जिससे फाइनल में टीम की जगह पक्की हो गई।
बीजिंग 2008 में कांस्य और लंदन 2012 में रजत के बाद क्या बैरियोन्यूवो टोक्यो में स्वर्ण के साथ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर का अंत कर सकती है?
इसका उत्तर किसी के पास नहीं था। क्योंकि नीदरलैंड ने स्वर्ण पदक जीता था, वहीं अर्जेंटीना के लिए भविष्य उज्ज्वल है, क्योंकि उनकी टीम में 18 मजबूत खिलाड़ी हैं, जिनमें से 11 ने ओलंपिक डेब्यू किया है। साथ ही ज्यादातर ने 2016 में चिली में जूनियर विश्व खिताब जीता था।
5- ऑस्ट्रेलिया मेंस टीम दूसरे स्वर्ण के करीब
रियो 2016 में क्वार्टर फाइनल से बाहर होने से पहले ऑस्ट्रेलियाई मेंस हॉकी टीम ने लगातार छह ओलंपिक खेलों में पदक जीते हैं। वहीं कूकाबुरास ने टोक्यो में वापसी की।
17 साल बाद उनके पास दूसरा स्वर्ण पदक जीतने का मौका था, लेकिन बेल्जियम ने शूट-आउट में उनके सपने को चकनाचूर कर दिया।
ग्रुप स्टेज में भारत की चार जीत और एक ड्रॉ के साथ 7-1 का स्कोर शामिल है। उन्हें नीदरलैंड से आगे निकलने के लिए शूट-आउट की आवश्यकता थी, जिसे टॉम विकम के दो फील्ड गोल ने 2-2 से ड्रॉ कर दिया।
सेमीफाइनल में उन्हें एक और बेहतरीन यूरोपीय टीम का सामना करना पड़ा, जिसमें जर्मनी ने शुरुआती बढ़त हासिल की। लेकिन ऑस्ट्रेलियाई टीम ने अच्छा प्रदर्शन किया और एथेंस 2004 की जीत के बाद से अपने पहले फाइनल में पहुंचने के लिए 3-1 से जीत हासिल करने की पूरी कोशिश की थी।
स्वर्ण के लिए तीसरे यूरोपीय चैंपियन विकहम की बेल्जियम की शूट-आउट जीत से पहले फिर से गोल करना काफी मुश्किल था।
ये फॉरवर्ड खिलाड़ी पेरिस 2024 में 31 साल का हो जाएगा, जबकि टोक्यो से पहले 34 वर्षीय सह-कप्तान एडी ओकेनडेन (Eddie Ockenden) ने इशारा किया था कि वह पांचवें खेलों का भी हिस्सा बनेंगे। आप को बताया कि स्वर्ण जीतना "एक बहुत बड़ी महत्वाकांक्षा" थी।
इस अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गोलकीपर एंड्रयू चार्टर (Andrew Charter) पेरिस 2024 में 37 वर्ष के हों जाएंगे। वहीं युवा टीम के जोश के साथ आने वाले सालों में कूकाबुरा या उसके आसपास रहने की उम्मीद करें।
अंतरराष्ट्रीय खेल से बाहर निकलने वाला सबसे बड़ा नाम मेंस खेल में शायद थॉमस ब्रिल्स (Thomas Briels) का है।
अगस्त में ब्रिल्स 34 वर्ष के हो गए हैं। वह इस बार अपने चौथे ओलंपिक खेलों में खेले हैं, जिन्हें मूल रूप से रेड लायंस से बाहर कर दिया गया था।
बेल्जियम की कप्तानी करने वाले ब्रिल्स को 2018 विश्व खिताब के लिए जोड़ा गया था जब प्रतियोगिता से ठीक पहले रोस्टरों को 16 से बढ़ाकर 18 कर दिया गया था। इसमें मैच के दिन टीम में केवल 16 खिलाड़ियों का नाम था।
ग्रेट ब्रिटेन के कप्तान एडम डिक्सन (Adam Dixon) ने 290 प्रदर्शनों के बाद अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास ले लिया है। उन्होंने इंग्लैंड के साथ 2009 के यूरोपीय खिताब सहित 14 पदक जीते हैं।
दक्षिण अफ्रीका के अनुभवी गोलकीपर इरास्मस 'रैसी' पीटरसे (Erasmus 'Rassie' Pieterse) ने भी अपने दूसरे खेलों में प्रतिस्पर्धा करने के बाद रिटायरमेंट ली है।
लंदन 2012 में खेलने वाले 37 वर्षीय ने ग्रुप स्टेज में जर्मनी पर 4-3 की जीत के लिए अपनी टीम के लिए नौ गोल बचाए। यह जीत काफी मशहूर हुई थी।
साथ ही अर्जेंटीना की वूमेंस टीम में नोएल बैरियोन्यूवो (Noel Barrionuevo), सोफिया मैकारी (Sofia Maccari) और गोलकीपर बेलेन सुसी (Belen Succi) बेहतरीन खिलाड़ियों को अलविदा कहने के लिए तैयार है।
ऑस्ट्रेलिया भी अपनी शानदार खिलाड़ी 2019 एफआईएच गोलकीपर ऑफ द ईयर रचेल लिंच (Rachael Lynch) को अलविदा कह देगा, जो जुलाई में 35 साल के हो गई हैं।
चैपिंयन डच के लिए तीन बार के स्वर्ण पदक जीत चुके ईवा डी गोएडे (Eva de Goede) और लिदेविज वेल्टन (Lidewij Welten) ने भी एक इशारा किया है कि वो भी शायद पेरिस 2024 का हिस्सा नहीं होंगें। बाद में आरटीएल नीउव्स को बताते हुए, "मुझे नहीं लगता कि मैं पेरिस में रहूंगी। मैं अभी रुकने की योजना नहीं बना रही हूं, लेकिन मुझे नहीं पता कि मैं कब रुकूंगी। ”
32 साल की डी गोएडे ने ब्रिटेन से रियो फाइनल में शूट-आउट हार के बाद रेस्ट लिया था, लेकिन जल्द ही खेल के प्रति अपने प्यार को फिर से संजोया और पहले से बेहतर वापसी करने के साथ 2018 और 2019 में वर्ल्ड प्लेयर ऑफ द ईयर पुरस्कार को अपने नाम किया।
उन्होंने टोक्यो में डचों का नेतृत्व किया और उन्होंने अपनी जीत का ताज हासिल कर लिया था, लेकिन रियो के बाद कई अच्छे खिलाड़ी नाओमी वैन अस (Naomi van As), एलेन हूग (Ellen Hoog) और मार्तजे पॉमेन (Maartje Paumen) रिटायर हो गई थीं, जिनके पंखों में अभी भी उड़ान बाकी है।
तीन साल बाद पेरिस में 32 वर्षीय ड्रैग-फ्लिक स्पेशलिस्ट कैया वैन मासाकर (Caia van Maasakker) का होना भी संदेह से भरा हुआ है।
हैलो पेरिस 2024
भारत की मेंस टीम 25 वर्षीय ड्रैग-फ्लिक विशेषज्ञ हरमनप्रीत सिंह से लेकर 24 वर्षीय मिडफील्ड जादूगर सिमरनजीत सिंह जैसे युवा प्रतिभाओं से भरी हुई है।
टूर्नामेंट के शीर्ष स्कोरर, अलेक्जेंडर हेंड्रिक, ड्रैग-फ्लिक करने वाले प्रमुख खिलाड़ी हैं और पेरिस 2024 में वह 31 साल के हो जाएंगे।
वूमेंस की शीर्ष स्कोरर फ्रेडरिक मटला केवल 24 वर्ष की हैं, जबकि उनकी डच सहयोगी फेलिस अल्बर्स सिर्फ 21 के हैं।
जबकि अर्जेंटीना में कुछ बड़े नाम नहीं खेल पाएंगें। लेकिन 2017 एफआईएच प्लेयर ऑफ द ईयर डेलफिना मेरिनो (Delfina Merino) लास लियोनस को पेरिस ले जाएगा। वहीं युवा फारवर्ड जूलियटा जानकुनास (Julieta Jankunas) और अगस्टिना गोरजेलेनी (Agustina Gorzelany) दूसरे खेलों में भाग लेने के लिए तैयार हैं।
Olympics.com पर कब और कहां देखें हॉकी रिप्ले?
जवाब यहां है : olympics.com/tokyo2020-replays
शीर्ष हॉकी खिलाड़ी आगे कब प्रतिस्पर्धा करेंगें?
6 अक्टूबर को FIH Women's Pro League का तीसरा संस्करण ओलंपिक चैंपियन नीदरलैंड्स के बेल्जियम से मुकाबले के साथ शुरू होगा।
इस टूर्नामेंट में नौ टीमें हैं, जिनमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, चीन, इंग्लैंड, जर्मनी, न्यूजीलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
16 अक्टूबर को FIH Men's Pro League का तीसरा संस्करण टोक्यो 2020 के चैंपियन बेल्जियम के साथ जर्मनी का मुकाबला करने के साथ शुरू होगा।
इस टूर्नामेंट में अन्य सात टीमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, भारत, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड और स्पेन हैं।
2021 में टोक्यो 2020 में हॉकी की पूरी मेडल लिस्ट
मेंस हॉकी
स्वर्ण - बेल्जियम
रजत - ऑस्ट्रेलिया
कांस्य – भारत
वूमेंस हॉकी
स्वर्ण - नीदरलैंड्स
रजत - अर्जेंटीना
कांस्य – ग्रेट ब्रिटेन