भारतीय तैराकों को अधिक स्पर्धाओं की ज़रूरत: शिखा टंडन

पूर्व ओलंपिक तैराक शिखा टंडन का मानना है कि भारतीय स्विमिंग सही दिशा में जा रही है और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहतर करने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है।

8 मिनटद्वारा जतिन ऋषि राज
Shikha Tandon

सिर्फ 13 साल की उम्र में एशियन गेम्स, 16 में वर्ल्ड चैंपियनशिप और 19 की उम्र में ओलंपिक गेम्स, शिखा टंडन (Shikha Tandon) अपने उज्जवल दिनों में स्विमिंग की स्टार कही जाती थीं।

लॉन्ग डिस्टेंस से शुरुआत करने वाली शिखा ने कम डिस्टेंस की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया था। उस समय शिखा टंडन भारत की सबसे शानदार तैराकों में गिनीं जाती थीं।

अब लगभग 10 साल हो चुके हैं कि शिखा टंडन ने प्रतिस्पर्धा रेस में भाग लिया हो लेकिन वह हमेशा से ही खेल से जुड़ीं रहीं थीं और अपना योगदान देती रहीं थीं।

लगभग 5 सालों से यूनाइटेड स्टेट्स एंटी डोपिंग एजेंसी (United States Anti-Doping Agency – USADA) के साथ जुड़कर भारतीय तैराक खेल को साफ़ रखने की महत्वपूर्ण कोशिश कर रहीं हैं।

ओलंपिक चैनल से बात करते हुए शिखा टंडन ने USADA से जुड़े अपने काम को समझाया और साथ ही बताया कि जैव विज्ञान में कैसे उनकी रूचि बढती गई और अब वह कैसे इसके ज़रिए स्पोर्ट्स को योगदान दे रही हैं।

उनसे बातचीत के प्रमुख अंश:

सवाल: आपने प्रतिस्पर्धी तैराकी से 2009 में संन्यास ले लिया था और उसके बाद यूएसए जा कर जैव विज्ञान में डिग्री हासिल की। इस विषय में आपकी रूचि कब आने लगी?

जवाब: एक एथलीट होने के नाते आप दिन प्रति दिन अपनी सीमाओं को बढ़ाने की कोशिश करते हैं। आप हमेशा अपनी तकनीकों के बारे में सोचते हैं और साथ ही देखते हैं कि आपका शरीर कैसा चल रहा है और वह क्या महसूस कर रहा है। इसी के साथ मेरे स्कूल की अध्यापिका भी बहुत अच्छी थीं और यही दो कारण है कि मेरी जैव विज्ञान में रूचि बढ़ने लगी।

एंटी डोपिंग का क्षेत्र मेरे लिए दिलचस्प भारत से ही हो गया था। उस समय भारत में इन चीज़ों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी। मुझे याद है कि मेरा पहला ड्रग टेस्ट 13 साला की उम्र में हुआ था। उस समय मुझे इसके बारे में कुछ नहीं पता था। जब आप ट्रेनिंग और स्पर्धा में लगी मेहनत कर बारे में जानते हैं तो उस पर कुछ करना चाहते हैं और उस समय मैं एथलीटों की मदद करना चाहती थी ताकि वह मेहनत करते रहें।

सवाल: आपको USADA से पहला ब्रेक मिला। आप अपने इस तजुर्बे के बारे में कुछ बताएं।

जवाब: मेरे स्विमिंग करियर के बाद यह चीज़ मेरे जीवन की सबसे अच्छी चीज़ों में से एक थी। जब आप एथलीट होते हैं तो आप उन्हीं के नज़रिए से सोचते हैं लेकिन USADA ने मुझे एक एजेंसी की तरह सोचने का अवसर दिया।

विज्ञान टीम के साथ काम करने की वजह से आप बाकी चीज़ों से भी रू-ब-रू हो जाते हैं। आपको जान कर हैरानी होगी कि एक खेल को साफ़ रखने के लिए कितने सालों की मेहनत लगती है।

सवाल: क्या पिछले कुछ सालों में साफ़ खेल के प्रति कितना नजरिया बदला है?

जवाब: मेरे ख्याल से अब ज़्यादा से ज़्यादा खिलाड़ी आगे आ रहे हैं और साफ़ खेल की अगुवाई कर रहे हैं। ज्ञान के तौर भी इसमें बढ़ोतरी हुई है।

भारत में अब कम से कम एंटी डोपिंग की बात तो होती है, मैं जब प्रतिस्पर्धा करती थी तब इस विषय पर कोई बात नहीं होती थी। जब मुहे इसके बारे में ज़्यादा जानना चाहा तो मुझे अपने कोच के पास जाना पड़ा। वहीं मेरे लिए एकलौती मदद थे। शायद अब चीज़ें बदल रही हैं।

सवाल: भारत में पिछले कुछ सालों में क्या स्विमिंग की दशा बदली है?

जवाब: पिछले 10 सालों से दशा ज़रूर बेहतर हुई है। बहुत से बच्चे कम उम्र में ही इस खेल से जुड़ रहे हैं। अगर अप जूनियर प्रोग्राम की बात करें तो बहुत से प्रतिभाशाली बच्चे इसका हिस्सा हैं। मैं उम्मीद करती हूं कि वह अच्छा करें और खेल से जुड़े रहें।

आज, स्विमिंग को महज़ एक खेल की तरह नहीं लिया जाता। यह जीवन शैली का एक हिस्सा है। इसी वजह से बहुत से लोग पूल में आए हैं। उम्मीद है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की स्पर्धा खेल को भी बढ़ावा देगी।

स्पोंसरशिप के हवाले से भी चीज़ें बदली हैं। आज बहुत से ग्लोबल ब्रांड्स हैं जो भारतीय तैराकों को स्पॉन्सर कर रहे हैं। मेरे समय में ऐसा कभी नहीं हुआ था। बहुत सी एथलीट मैनेजमेंट कम्पनियां तैराकों पर नज़र रख रही हैं। यह कुछ सकारात्मक बदलाव हैं।

सवाल: स्विमिंग एक ऐसा डिसिप्लिन है जो ओलंपिक में काफी मेडल देता है तो ऐसे में क्या आपको लगता है कि भारत इस खेल को ज़्यादा तवज्जो देता है?

जवाब: यह कहना मुश्किल है कि हाँ देता है। अगर हम स्विमिंग को देखें और साथ ही ओलंपिक में दिए जाने वाले मेडल को देखें तो हाँ अभी बहुत कुछ करना बाकी है। इससे भी बढ़कर स्विमिंग एक जीवन का स्किल है।

अगर हम इस लिहाज़ से सोचे तो मुझे लगता है कि इस खेल से ज़्यादा से ज़्यादा लोग जुड़ेंगे। हालांकि इसी के साथ अगर अप पिछले 10 सालों के आंकडें देखें तो इनमें बहुत बढ़ोतरी हुई है। हाँ, अभी बहुत सा करना बाकी है और हम उस दिशा में भी हैं।

सवाल: भारतीय स्विमिंग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर करने के लिए क्या करना चाहिए ?

जवाब: मुझे लगता है कि इसे बढ़ाने के लिए ज़्यादा प्रतिस्पर्धाओं की ज़रूरत है। अगर स्विमिंग का कैलेंडर देखें तो हर तैराक को साल में एक या दो ही प्रतिस्पर्धा के मौके मिलते हैं। यह काफी नहीं हैं। हम साल भर ट्रेनिंग करते हैं, बहुत से घंटे मेहनत करते हैं।

अगर आप एशियन और ग्लोबल लेवल को देखें तो इसमें बड़ा फर्क यह है कि लोग ज़्यादा रेसों में हिस्सा लेते हैं। लगभग हर दो हफ़्तों में। जब अप स्पर्धा करते हैं तो अप बहुत कुछ सीख सकते हैं। यह एक चीज़ है जिस पर हमे ध्यान देना चाहिए।

एथलीट के साधन और सपोर्ट सिस्टम पर ध्यान देना चाहिए, जैसे कि पोषण विशेषज्ञ, एक समर्पित फिजियोथेरेपिस्ट, खेल विज्ञान। यह कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिनके बारे में हमे सोचना चाहिए।

सवाल: भारतीय स्विमिंग के लिए एक खतरा यह भी है कि बहुत से युवा तैराक इसे छोड़ देते हैं। इसे कैसे सुधारा जा सकता है?

जवाब: मैं इसे केवल स्विमिंग की समस्या के तौर पर ही नहीं बल्कि क्रिकेट को छोड़ कर बहुत से डिसिप्लिन की समस्या के रूप में देखती हूं। लोग खेल को करियर की तरह नहीं ले रहे हैं। बच्चों के लिए यह एक ऐसी गतिविधि है जिसे वह कर सकते हैं।

भारत में जो सिस्टम है उसके तहत बहुत ही कम कॉलेज ऐसे हैं जो स्टूडेंट एथलीट को पढ़ाई के साथ-साथ पाठ्येतर गतिविधि को लेने का बढ़ावा देते हैं। यह ऐसी चीज़ है जिसमें बदलाव आना ज़रूरी है। हाँ, ऐसे भी कुछ दल हैं जो अच्छा कर रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह देश में लगातार होना चाहिए।

वहीं दूसरी ओर हर एथलीट खेल के इकोसिस्टम के साथ जुड़ा रहना चाहता है लेकिन उसके पास मौके बहुत कम हैं। बहुत बार उन्हें ऐसा लगता है कि वह अपने ज्ञान से कोच बन सकते हैं। अगर आप एक कोच हैं तो यह बहुत अच्छा है लेकिन ज़्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि यह उनका इकलौता विकल्प नहीं है।

अगर आप वैश्विक स्तर पर देखें तो एक एथलीट अपने करियर में बहुत कुछ कर सकता है। अगर हम स्कूल के स्तर से ही करियर के पहलुओं को दखें तो एक बच्चा ज़्यादा समय तक खेल से जुड़ा हुआ रह सकता है।

सवाल: भारतीय स्विमिंग में कमज़ोर कोचिंग कितनी बड़ी समस्या है ?

जवाब: मैं मानती हूं कि भारत में यह एक समस्या है। हम अगर अपने कोचों को बाहरी कोचों से तुलना करें तो उके पास ज्ञान और अनुभव कम है। इनमें कुछ अंतर हैं। बड़ा अंतर ज्ञान की कमी की वजह से है जो हमें दिखाता है कि हकीकत क्या है और हमे क्या करना चाहिए।

ज्ञान होना एक अलग बात है लेकिन उसे दिखाने का साधन होना एक अलग बात है। यही एक बड़ी वजह है। यह ऐसा है कि रोज़ आप कुछ सीखते हैं और रोज़ तैराकों को वह सिखाते हैं। हाँ, फेडरेशन कोशिश कर रही है लेकिन यह अभी पहला कदम ही है। मुझे लगता है कि हमे कोचों की मदद करनी चाहिए कि वह अपने ज्ञान का अच्छे से इस्तेमाल कर सकें।

सवाल: भारत में स्विमिंग की समस्यायों के आलवा वह क्या चीज़ है जिससे आपको उम्मीद है कि भारतीय स्विमिंग का भविष्य उज्जवल हो सकता है ?

यह वह ग्रोथ है जो भारतीय स्विमिंग कमीटी ने पिछले 10 सालों में हासिल किया है। साथ ही खेल को जो पहचान मिल रही है वह भी ख़ास है। इसे देखते हुए मुझे लगता है कि अगले कुछ सालों में स्विमिंग भारत का एक ख़ास खेल हो सकता है।

सवाल: टोक्यो ओलंपिक गेम्स के लिए क्वालिफिकेशन चल रहे हैं। क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि कोई भारतीय A कट (ओलंपिक क्वालिफाइंग समय) हासिल करने में सफल होगा?

जवाब: मैं पूरी उम्मीद करती हूं। कुछ हैं जो A कट के काफी नज़दीक हैं। मैं समझती हूं कि महामारी ने उनके प्लान को खराब किया है। तैराकों के साथ एक चीज़ है और वह है कि वह बहुत जिद्दी हैं और वह मानसिक तौर से बेहद मज़बूत भी हैं। पूल से बहुत समय से दूर रहने के बाद इस महीने में हुई प्रतियोगितायों में उन्होंने बहुत अच्छी टाइमिंग हासिल की है।

जून तक चलने वाले क्वालिफाइंग के समय तक मैं उम्मीद करती हूं कि उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा प्रतिस्पर्धाएं मिलें और वह ‘A’ कट लेने में सफल हो पाएं। मैं उम्मीद कर रही हूं कि ऐसा हो क्योंकि यह तैराकों के लिए एक बड़ी सफलता है जो 8 से 10 साल तक जिंदा रहेगी।

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