कुश्ती प्रतियोगिता के नियम: जानें नॉर्डिक सिस्टम और टू-पूल प्रारूप का इस्तेमाल कब और कहां किया जाता है

नॉर्डिक सिस्टम का उपयोग तब किया जाता है जब किसी विशेष भार वर्ग में 6 से कम पहलवान प्रतिस्पर्धा करते हैं। जानिए नियम और इसे कब इस्तेमाल किया जाता है। 

4 मिनटद्वारा रौशन प्रकाश वर्मा
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कुश्ती के फैंस को कभी-कभी नॉर्डिक सिस्टम शब्द ज़रूर सुनने को मिलता है। दरअसल, नॉर्डिक सिस्टम कुश्ती में प्रतियोगिता का एक प्रारूप है जिसका इस्तेमाल ख़ास मौक़ों पर किया जाता है।

दुनिया में सबसे लोकप्रिय अमेच्योर (शौकिया) कुश्ती प्रतियोगिताओं में, जिसमें ओलंपिक जैसी मल्टी-स्पोर्ट प्रतियोगिताएं शामिल हैं, आमतौर पर नॉकआउट और रेपेचाज प्रतियोगिता प्रारूप का उपयोग किया जाता है।

नॉकआउट/रेपेचाज प्रारूप में, पहलवानों को बिना क्रम से (रैंडमली) या उनकी वरीयता के अनुसार ब्रैकेट में रखा जाता है और वे सीधे एलिमिनेशन मैचों में स्पर्धा करते हैं। अंतिम दो पहलवान स्वर्ण पदक के मुक़ाबले में एक-दूसरे का सामना करते हैं, जबकि सेमी-फ़ाइनल में हारने वाले दो पहलवान कांस्य पदक के लिए मुक़ाबला करते हैं।

इस बीच, सेमी-फ़ाइनल से पहले फ़ाइनल में पहुंचने वाले दो पहलवानों में से प्रत्येक द्वारा हारे हुए पहलवान, अपने संबंधित ब्रैकेट के रेपेचाज राउंड में प्रवेश करते हैं। रेपेचाज में एलिमिनेशन मैच खेलने के बाद, अंतिम बचे पहलवानों का सामना कांस्य पदक के लिए अपने संबंधित वर्ग के सेमी-फ़ाइनल में हारने वाले पहलवान से होता है। यही वजह है कि कुश्ती में दो कांस्य पदक दिए जाते हैं, चाहे वह फ़्रीस्टाइल प्रतियोगिता हो या ग्रीको-रोमन।

कभी-कभी, पहला दौर शुरू होने से पहले क्वालिफ़िकेशन राउंड आयोजित किए जाते हैं ताकि प्रतियोगियों की संख्या बराबर हो सके।

कुश्ती में नॉर्डिक सिस्टम

हालांकि, एलिमिनेशन और रेपेचाज प्रारूप सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाला सिस्टम है। लेकिन, कभी-कभी प्रशंसकों को नॉर्डिक सिस्टम नामक एक वैकल्पिक प्रतियोगिता प्रारूप भी देखने को मिल सकता है।

आमतौर पर नॉर्डिक सिस्टम का उपयोग उस वक़्त किया जाता है जब किसी विशेष भार वर्ग में 6 से कम पहलवान प्रतिस्पर्धा कर रहे होते हैं।

नॉर्डिक सिस्टम के तहत, पहलवान राउंड-रॉबिन प्रारूप में एक-दूसरे से भिड़ते हैं। सभी मैच ख़त्म होने के बाद, पहलवानों को जीत की संख्या के अनुसार रैंकिंग दी जाती है और शीर्ष तीन पहलवान पदक जीतते हैं।

यदि दो पहलवान ने एक समान बाउट में जीत दर्ज की हो और वे बराबरी पर हैं, तो दोनों पहलवानों के बीच हुए मुक़ाबले में जिसने जीत दर्ज की होती है, उसे रैंकिंग में ऊपर रखा जाता है।

यदि दो से अधिक पहलवान बराबर जीत के साथ बराबरी पर रहते हैं, तो ग्रुप में नीचे से ऊपर की ओर महत्व के क्रम में निम्नलिखित मानदंडों के अनुसार रैंकिंग दी जाती है, जब तक अंतिम दो पहलवानों का फ़ैसला नहीं हो जाता है।

  1. सबसे कम क्वालिफ़िकेशन प्वाइंट्स। नॉर्डिक टूर्नामेंट सिस्टम में फ़ॉल, डिफ़ॉल्ट (पहलवान जब बाउट में हिस्सा नहीं लेता है), फ़ॉरफ़िट (पहलवान जब किसी कारण से अपना नाम वापस लेता है) या डिसक्वालीफ़ाई (जब पहलवान को बाउट के दौरान किसी ग़लती को लेकर अयोग्य क़रार दिया जाता है) के कारण जीत के लिए पहलवानों को चार क्वालिफ़िकेशन प्वाइंट्स दिए जाते हैं

  2. फ़ॉल के कारण सबसे कम जीत

  3. तकनीकी श्रेष्ठता के आधार पर सबसे कम जीत

  4. प्रतियोगिता में सबसे कम तकनीकी अंक अर्जित किए गए हों

  5. प्रतियोगिता में सबसे कम तकनीकी अंक गंवाए गए हों

  6. ड्रॉ की सबसे अधिक संख्या

अंतिम दो पहलवानों को एक बार फिर से उन दोनों के बीच हुए बाउट में जीत के आधार पर रैंकिंग दी जाएगी।

नॉकआउट और रेपेचाज प्रारूप के विपरीत, नॉर्डिक राउंड सिस्टम में सिर्फ़ एक कांस्य पदक प्रदान किया जाता है।

टू-पूल सिस्टम

एलिमिनेशन और रेपेचाज के अलावा नॉर्डिक सिस्टम को छोड़कर, कुश्ती में एक तीसरा प्रतियोगिता प्रारूप भी होता है जिसे टू-पूल (दो-पूल) सिस्टम कहा जाता है। इसका इस्तेमाल चुनिंदा प्रतियोगिताओं में किया जाता है।

टू-पूल सिस्टम (दो-पूल सिस्टम) कुश्ती में काफ़ी देखने को मिलता है और आमतौर पर इसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब इसमें 6 से 7 प्रतियोगी शामिल होते हैं।

इस प्रारूप में, पहलवानों को दो ग्रुप में बांटा जाता है और प्रत्येक ग्रुप के प्रतियोगी राउंड-रॉबिन प्रारूप में एक-दूसरे का सामना करते हैं। उन्हें नॉर्डिक राउंड सिस्टम में अपनाए गए मानदंडों के अनुसार रैंक दी जाती है।

ग्रुप अंक तालिका तैयार होने के बाद, पहले ग्रुप के शीर्ष पहलवान सेमी-फ़ाइनल में दूसरे ग्रुप के उप-विजेता से मुक़ाबला करते हैं। इसी तरह, दूसरे ग्रुप का शीर्ष पहलवान दूसरे सेमी-फ़ाइनल में पहले ग्रुप में दूसरे स्थान पर रहने वाले पहलवान के ख़िलाफ़ खेलता है।

इसके बाद दोनों सेमी-फ़ाइनल के विजेता स्वर्ण पदक के लिए मुक़ाबला करते हैं। वहीं, वो पहलवान जो सेमी-फ़ाइनल में हार जाते हैं, कांस्य पदक के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।

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