जाम्बिया की धाविका मोनिका मुंगा ने इस तरह डर पर पाया काबू, अपने पैरालंपिक सपने को किया पूरा

400 मीटर धावक ने Olympics.com को बताया कि कैसे वह ऐल्बिनिज़म को दूर करने के लिए अपने टोक्यो 2020 प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रही है, और विकलांग लोगों को खेल के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।

MONICA BY FELIX MUNYIKA-2

मोनिका मुंगा जब भी बाहर होती हैं, खासकर अंधेरे में तो वह अपनी सुरक्षा को लेकर सतर्क रहती हैं।

वहीं, उनकी स्प्रिंट ट्रेनिंग की देखरेख हमेशा उनकी मां या उनके कोच द्वारा की जाती है।

उन्होंने Olympics.com से बात करते हुए कहा वह पैरालंपिक के लिए तैयार हैं। "जब मैं आगे बढ़ रही हूं, तो मुझे सावधानी से आगे बढ़ने की जरूरत है।"

आगे उन्होंने कहा, "मैं रात में कहीं नहीं जाती हूं। मुझे अंधेरे से डर लगता है कि कोई आप पर हमला कर दे, तो कोई भी आपको देख नहीं सकता है। हमारी त्वचा और शरीर के अन्य अंगों का उपयोग रिचुअल के लिए किया जा सकता है।"

आपको बता दें कि वह टोक्यो 2020 में जाम्बिया का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र पैरालंपियन हैं।

ऐल्बिनिज़म के साथ जीवन में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा

वह जाम्बिया की राजधानी लुसाका के उत्तर पूर्व के चिपाता की हैं। उन्होंने एक युवा लड़की के रूप में ऐल्बिनिज़म (ज़्यादातर लोगों की त्वचा और आंखें हल्के रंग की होती हैं और उन्हें धूप से परेशानी होती है) के साथ आगे बढ़ीं। वह और लोगों से बिल्कुल अलग थी।

उनकी त्वचा का रंग हल्का था, और वह अन्य बच्चों की तरह बाहर खुलकर नहीं खेल सकती थी।

मेलेनिन की कमी के कारण से उनको धूप की रोशनी से काफी परेशानी होती थी।

उन्होंने मलावी सीमा के पास सुदूर गांव में अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, "गांव में जीवन बहुत मुश्किल था।"

"मैं अपने दोस्तों के साथ खेलने के लिए बाहर (और जब मैंने कोशिश की) नहीं खेल सकती थी, वे मेरा मजाक उड़ाते थे। वे मुझ पर हंसते थे। मैं सिर्फ अपनी मां के साथ खेल सकती थी।"

अफसोस इस बात का है कि घर में उनकी सुरक्षा से भी समझौता किया गया।

यह चीज उन्हें विरासत में अपन माता-पिता से मिली।

"यह काफी मुश्किल था, मुझे मेरे पिता द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था। तब मेरी मां ने मेरी वजह से तलाक का विकल्प चुना। वह मेरी इस स्थिति के कारण टूट गईं। उन्होंने खुद से कहा, 'मैं अपनी शादी के कारण अपने बच्चे को पीड़ित नहीं होने दे सकती'।

जहां उन्हें नेत्रहीनों के एक स्थानीय बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया। जिसके कारण उनको थोड़ा राहत मिली।

"जब मैं पांच या छह साल की थी, तब मैं बोर्डिंग स्कूल गई थी। वहां, मैंने देखा कि बहुत से लोग ऐल्बिनिज़म के साथ जी रहे थे और अन्य लोग मेरे जैसे अंधे थे। मैं खुश थी क्योंकि मुझे नहीं पता था कि मेरे जैसे बहुत से लोग हैं।"

"जब मैं 12 साल की थी, तब मैं दौड़ने लगी। मैं 200 मीटर और 400 मीटर दौड़ती थी और तभी सरकार ने मेरी क्षमता को देखा।"

कुछ ऐसे शुरू हुआ पैरालंपियन बनने का सफर

मुंगा को जाम्बिया सरकार ने अपने शीर्ष एथलीटों में से एक के रूप में विदेश में ट्रेनिंग करने के लिए चुना।

22 वर्षीय ने अपनी मां के नक्शेकदम पर चलते हुए एक सेवानिवृत्त प्रांतीय धावक 400 मीटर पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया।

यह जापान में निप्पॉन स्पोर्ट साइंस यूनिवर्सिटी में रहने के दौरान था, जहां उन्होंने पैरालंपिक खेलों के वैल्यू को समझना शुरू किया, और टोक्यो में प्रतिस्पर्धा करने का सपना देखना शुरू कर दिया।

इस जाम्बियन ने तब 2019 विश्व पैरा एथलेटिक्स ग्रांड प्री दुबई में पैरालंपिक्स के लिए क्वालीफाई किया। जहां उन्हें आधिकारिक तौर पर T13 और F13 ट्रैक एथलीट के रूप में क्लासिफाइड किया गया था।

वह टोक्यो 2020 पैरालंपिक खेलों के लिए क्वालीफाई करते हुए T12/13 400 मीटर स्पर्धा में शीर्ष पर रहीं।

उन्होंने कहा, 'मुझे 400 मीटर में गोल्ड मेडल और 200 मीटर में सिल्वर मिला। मैं क्वालीफाइंग समय के अंदर अपनी रेस 1:08.40 को पूरा किया था। मैं 30 मिलीसेकंड से हार गई और 200 मीटर के लिए क्वालीफाई करने से चूक गई। फिर मुझे लुसाका आने और ट्रेनिंग के लिए आमंत्रित किया गया।

"चिपाटा में मैं अच्छी तरह से ट्रेनिंग नहीं ले सकी। मैंने रोड पर ट्रेनिंग ली, मेरे पास उचित उपकरण और सुविधाएं नहीं थीं।"

अधिकांश एथलीटों की तरह, मुंगा ने 2020 में COVID-19 महामारी के कारण कई महीनों का अपना ट्रेनिंग समय गवां दिया।

लेकिन यह एकमात्र चुनौती नहीं थी।

लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया। हालांकि, उनका ध्यान हमेशा अपने उस सफर की तरफ बना रहा, और सिर्फ सात महीने बाद वह लुसाका में नेशनल रेजिडेंशियन ट्रेनिंग कैंप में पहुंची। जहां उनके पास पैरालंपिक सपने को साकार करने के लिए दृढ़ संकल्प था।

क्रिस्पिन मावले-कोच एथलीट ने मुस्कुराते हुए कहा, "अगर यह कोरोना वायरस के लिए नहीं होता, तो मैं टोक्यो की यात्रा नहीं कर पाती। इसलिए यह मेरे लिए एक बड़ी बात थी।"

मुंगा ने आगे कहा, "मैंने पिछले साल प्रतिस्पर्धा शुरू की थी, जब बच्चे ने सात महीने में स्तनपान करना बंद कर दिया था। मैं तब से अपना समय कम करने और यहां तक ​​कि अपने रिकॉर्ड में सुधार करने में सक्षम रही। मैं अब 1:04 से एक मिनट का लक्ष्य रख रही हूं।"

ऐल्बिनिज़म महज़ एक रंग है

बताते चलें कि मुंगा खेलों में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने वाली चौथी पैरालंपियन और दूसरी महिला एथलीट हैं।

वहीं, नैन्सी कलाबा ने सिडनी 2000 में 100 मीटर T12 में जाम्बिया की पहली महिला पैरालंपियन थीं।

दक्षिणी अफ्रीकी राष्ट्र ने अटलांटा 1996 में पैरालंपिक में डेब्यू किया और एथलीटों को खेलों के चार संस्करणों में भेजा।

"मैं वहां रहने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हूं ताकि हमारे साथ और अधिक लोग आ सकें - मोनिका मुंगा

उन्होंने Tokyo 2020 से कहा, "मुझे और अधिक विकलांग एथलीटों के लिए खुशी होगी।"

"टूर्नामेंट में अकेले नहीं हूं बल्कि चार या पांच अन्य लोगों के साथ हूं। तब लोग यह भी कह सकते हैं कि जाम्बिया ने ऐल्बिनिज़म के साथ रहने वाले एथलीट पैदा किए हैं। यहां कई हैं, लेकिन डरे है।"

ऐल्बिनिज़म से पीड़ित लोगों को सामाजिक और चिकित्सकीय रूप से एक अलग नज़र से देखा जाता है। यहां तक कि कई बार ऐसा देखा गया है कि लोगों को दुनिया भर में भेदभाव का सामना करना पड़ा है।

अधिकांश तौर पर उप-सहारा अफ्रीका में इसको लेकर अक्सर एक अलग ही नजरिए से देखा जाता है। जिसे आमतौर पर अंधविश्वासी मान्यता का नाम दिया जाता है। इससे न केवल सामाजिक बहिष्कार को बढ़ावा मिलता हैं, बल्कि विभिन्न प्रकार के कलंक भेदभाव और हिंसा को भी जन्म देते हैं।

मुंगा ने अपने बचपन के दिनों का याद करते हुए कहा, "जब मैं 18 वर्ष की थी, तब भी मैं कभी अकेली नहीं रही। जहां मुझे मेरे माता-पिता द्वारा ले जाया गया, मैं वहीं गई। क्योंकि यह हमेशा से था, 'वहां मत जाओ, वे तुम्हें मार डालेंगे!"

"अब भी मुझे डर है (बाहर जाने के लिए) जब अंधेरा होता है, क्योंकि कोई भी मुझे नहीं देख सकता है और न ही जान सकता है।"

"यह (डर) माता-पिता को अपने बच्चों को छोड़ने के लिए अनिच्छुक बनाता है। इसलिए, कोच घर-घर जाकर अनुरोध कर रहे हैं कि माता-पिता अपने बच्चों को प्रशिक्षित करने दें। वे उनसे कुछ कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए कहते हैं।"

जाम्बियन केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय का अनुमान है कि ऐल्बिनिज़म से पीड़ित लगभग 30,000 से अधिक लोग हैं।

"मीडिया में आप अक्सर सुनते हैं कि किसी की उंगलियां, हाथ या पैर कट गए हैं। उन्हें लगता है कि हमारी खाल और (शरीर) के अंगों का इस्तेमाल रिचुअल के लिए किया जा सकता है।"

"ज्यादातर लोगों को हमारे बारे में जानकारी की कमी है। उनके पास हमारे बारे में मिथक भी हैं कि अल्बिनो मरते नहीं हैं, वे गायब हो जाते हैं। कम से कम अब सरकार लोगों का समझाने की कोशिश कर रही है। लोगों का जानना चाहिए कि अल्बिनो को टार्गेट करना आपकी हत्या करने जैसा है, दोस्त हम सब बराबर हैं बस रंग का फर्क है।"

मुंगा की टोक्यो यात्रा पर अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (आईपीसी) के समर्थन से अफ्रीकी पैरालंपिक नायकों पर आधारित एक टीवी सीरीज पर उनकी इस प्रेरणाभरी जिंदगी के बारे में बताया गया है।"

Against All Odds नाम की टीवी सीरीज़ 'अफ्रीका में विकलांग लोगों के बारे में गलत धारणाओं के बदलने पर आधारित है'।

वहीं, टोक्यो में उनका मैसेज उम्मीद और समावेशन पर होगा, क्योंकि वह झूठी मान्यताओं और अफवाहों को दूर करना चाहती हैं।

"मैं एक जीती जागती उदाहरण हूं.. मैं यह संदेश फैलाना चाहती हूं कि खेल सभी के लिए है न कि केवल विकलांगों के लिए। मुझे देश के आधे हिस्से के लोग जानते हैं। अगर आप किसी से पूछें तो क्या आप मोनिका को जानते हैं? वे तुमसे कहेंगे, 'अरे हां! मोनिका एथलीट, जो अल्बिनो है...'"

जाम्बिया की इस स्टार एथलीट को देखना न भूलें!

पैरालंपिक खेलों को लाइव कहां देख सकते हैं?

आप चाहे कहीं भी हों, लेकिन पैरालंपिक गेम्स टोक्यो 2020 को लाइव यहां देख सकते हैं।

से अधिक