शीतकालीन खेलों के जूनून ने कुछ खिलाड़ियों को मिल रही है अनपेक्षित स्थानों से सहायता
चाहे वह घाना के Akwasi Frimpong हों या भारत के Vishwaraj Jadeja, कुछ खिलाड़ी ऐसा कार्य कर रहे हैं जो उनके लिए शायद आसान न हो लेकिन वह अकेले नहीं हैं। शीतकालीन खेलों में ओलंपिक सपना पूरा करने निकले इन खिलाड़ियों की कहानी olympics.com आपको बताएगा।
"फास्टर, हायर, स्ट्रांगर" वह तीन शब्द थे जो स्थापक Pierre de Coubertin ने ओलंपिक सिद्धांत के रूप में चुना और 1894 में पूरे विश्व को वह मिला जिसने खेल इतिहास को पूरी तरह परिवर्तित कर दिया। इस साल 20 जुलाई के दिन एक और शब्द उस सिद्धांत में जोड़ दिया गया - टुगेदर।
यह निर्णय खेल की एकजुट करने की शक्ति और साथ रहने के महत्त्व को बढ़ावा देने के लिए लिया गया। नव वर्ष और बीजिंग 2022 ओलंपिक शीतकालीन खेल आने वाले हैं और हम आपको दो ऐसी कहानियों के बारे में बताएंगे जो इन सिद्धांतों को दर्शाती हैं।
फ्रिम्पोंग के Akwasi Frimpong और आरओसी
प्योंगचांग 2018 में भाग लेने के बाद Akwasi Frimpong को पूरे विश्व में बहुत लोकप्रियता मिली क्योंकि वह शीतकालीन खेलों में घाना के पहले स्केलेटन खिलाड़ी अथवा पहले ब्लैक पुरुष स्केलेटन खिलाड़ी बने थे। वह चाहते तो इस बात से संतुष्ट हो सकते थे लेकिन उन्होंने अपने खेल जीवन को आगे बढ़ाने अथवा अधिक प्रयत्न करने का निर्णय लिया।
प्रतियोगिता में 30 खिलाड़ियों ने भाग लिया और वह तीसवें स्थान पर आये थे लेकिन मूल बात वह नहीं थी क्योंकि Frimpong का विचार कुछ और था। उन्होंने olympics.com से बात करते हुए 2018 खेलों के बारे में कहा, "मैं इतिहास रचना चाहता हूँ और दूसरों को प्रेरित करना चाहता हूँ।"
उन्होंने निर्णय लिया कि वह अपने आप को एक खिलाड़ी के तौर पर सुधारना चाहते थे और ओलंपिक शीतकालीन खेल बीजिंग 2022 में भाग लेना उनका नया लक्ष्य था। Frimpong का लक्ष्य साफ़ था लेकिन उन्हें यह भी पता था कि अनुभव के दृष्टिकोण से नयी चीज़ें सीखनी थी।
घाना के Frimpong आठ वर्ष के थे जब वह नीदरलैंड में जा कर बस गए थे और उसके बाद वह अपने वर्तमान निवास साल्ट लेक सिटी चले गए। यूटा में स्थित इस शहर में एक ट्रैक है जहां वह अभ्यास करते हैं लेकिन उन्हें पता था कि अन्य स्थलों में अभ्यास करना उनके लिए बहुत ज़रूरी है।
सोची 2014 खेलों के लिए बनी ट्रैक पर 2019 में खेलने के बाद उन्होंने आरओसी की टीम को संपर्क किया। रूसी बॉबस्ले संघ की अध्यक्ष Elena Anikina ने Frimpong से मुलाकात की और उन्हें वह बहुत पसंद आये जिसके बाद आरओसी की टीम ने घाना के इस खिलाड़ी की सहायता करने का निर्णय लिया। उसके बाद Frimpong और उनका परिवार 10 हफ़्तों के लिए रूस चले गए। जब वह सितम्बर 2021 में वापस आये तो उन्हें आरओसी की राष्ट्रिय टीम के समान कोच Denis Alimov अथवा संघ से सहायता मिली।
इतनी परिश्रम करने के बाद Frimpong आशा करते हैं कि वह एक ऐसा कार्य कर पाएंगे जो उन्होंने चार वर्ष पहले किया था - शीतकालीन खेलों में खेलने का सपना पूरा करना। उन्हें 16 जनवरी तक पता चल जायेगा कि उनकी मेहनत सफल हुई है या नहीं और अगर वह खेलों में भाग लेते हैं तो उनके सहयोग के लिए आरओसी की टीम तैयार होगी।
Vishwaraj Jadeja, भारतीय स्पीड स्केटर
जब आपके पास जीवन में कोई साफ़ रास्ता न हो तो अपना पथ खुद निर्धारित करना होता है लेकिन अन्य लोगों की सहायता अथवा सहयोग इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। भारत के स्पीड स्केटर Vishwaraj Jadeja ने अपने पिछले कुछ वर्षों के सफर में इस बात को बहुत अच्छे से समझ लिया था।
पश्चिमी भारत के अहमदाबाद में जन्मे Jadeja एक सफल इनलाइन स्केटर थे लेकिन उन्हें पता था कि यह एक ओलंपिक खेल नहीं है और इसी कारण से वह अपने सपने को पूरा करने के लिए यूरोप में बस गए।
यूरोप में रहने के पीछे कारण के बारे में olympics.com से बात करते हुए उन्होंने कहा, "लॉन्ग ट्रैक आइस स्केटिंग नीदरलैंड में बिलकुल वैसा है जैसे भारत में क्रिकेट है। यह एक बड़ा कारण है कि मैं नीदरलैंड में थोड़े समय के लिए बस गया क्योंकि आपको अगर क्रिकेट खेलना है तो आप भारत जाइये, फुटबॉल खेलना है तो ब्राज़ील जाइये और अगर आपको लॉन्ग ट्रैक स्केटर बनना है तो यहां आइये।"
स्थानीय खबरों में आने अथवा थोड़ी लोकप्रियता मिलने के बाद उन्हें महान डच कोच Wim Nieuwenhuizen ने अपने संरक्षण में लेने का मन बनाया क्योंकि वह Jadeja की मेहनत अथवा लगन से बहुत प्रसन्न थे।
Jadeja के कोच Nieuwenhuizen ने उन्हें कहा था, "अगर तुम्हारे अंदर भारत से इतनी दूर आने अथवा खेल सीखने का जज़्बा है तो मेरे अंदर भी तुम्हे सिखाने का जूनून है।"
इतनी मेहनत के बाद भी Jadeja का सपना पूरा नहीं हुआ क्योंकि एक चोट के कारण 2018 प्योंगचांग खेलों में भाग नहीं ले पाए।
उन्हें इस बात से इतना दुःख हुआ कि Jadeja ने कुछ समय न खेलने का निर्णय लिया। उन्होंने हिमालय की चोटियों में जाने का निर्णय लिया लेकिन स्केटिंग हमेशा की तरह उनके दिल के करीब रही और Jadeja ने अपने खेल का अभ्यास जमी हुई झीलों पर करने का फैसला लिया।
लेह के कुछ स्थानीय निवासियों से सहायता लेने के बाद Jadeja ने बर्फ से ढकी हुई सोमोरिरी झील में अभ्यास करना शुरू किया। अभ्यास करते समय उन्हें यह भी पता चला कि एक छोटा गाँव है जिसमे 500 आइस हॉकी खिलाड़ियों को हॉकी फाउंडेशन का सहयोग था और वह एनएचएल द्वारा दिए गए उपकरणों का उपयोग कर रहे थे।
खेल से अपने प्रेम के बारे में बात करते हुए Jadeja ने कहा, "मैं चाहता हूँ की आने वाले सालों में पूरे विश्व के खिलाड़ी आये तो स्केटिंग करें क्योंकि यह खेल बिलकुल नया है।"
अपने सपनों का पीछा करते हुए Jadeja ने कई अन्य खिलाड़ियों को शीतकालीन खेलों में करियर बनाने की प्रेरणा दी है और इतना ही नहीं, उन्होंने कई लोगों की सहायता की है और यह दिखाया है कि एकता में ही शक्ति है।