सुमा शिरूर चाहती हैं कि हरेक एथलीट का सफ़र ओलंपिक तक पहुँचे 

2004 एथेंस ओलंपिक गेम्स में भाग लेने वाली शूटर सुमा शिरूर का मानना है कि हर एथलीट में एक ओलंपियन के गुण होना बहुत ज़रूरी।

3 मिनटद्वारा जतिन ऋषि राज

इंडियन जूनियर राइफल टीम की हाई परफॉर्मेंस कोच सुमा शिरूर (Suma Shirur) चाहती हैं कि अभी से उनके शूटर एक ओलंपियन के गुणों को सीखें। विंटर ओलंपियन शिव केशवन (Shiva Keshavan) के साथ इंस्टाग्राम लाइव चैट के दौरान सुमा ने कहा “एक एथलीट होने के नाते हम कभी संतुष्ट नहीं होते, हमे जीतना होता है, हम चाहते हैं कि हम ज़्यादा से ज़्यादा प्रतियोगिताएं जीतें।”

“यह चीज़ आज भी नहीं बदली है। जब यह जूनियर टीम बाहर जाती है तब भी मेरे अंदर कुछ होता है कि यह तो मुझे जीतना ही है।”

सुमा शिरूर ने आगे अलफ़ाज़ साझा करते हुए कहा “यह अलग बात है कि मेरे शूटर कल एक ओलंपियन बने या न बने लेकिन मैं चाहती हूं कि वे अभी से एक ओलंपियन के गुणों को सीखें। यह खूबी मैं अपने हर एथलीट में देखना चाहती हूं, मैं उनमें ओलंपियन के गुणों को देखना चाहती हूं, फिर चाहे कल वे ओलंपियन बनते हैं या नहीं।”
“यह सबसे बड़ा गुण है जो एक एथलीट अपने अंदर उजागर कर सकता है और उसे करना भी चाहिए। यह एक चीज़ है जो मैं अपने खिलाड़ियों में देखना चाहती हूं।”

एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में मिली सफलताओं को याद करते हुए सुमा शिरूर ने अपने करियर की उंचाइयों की बात की और उनका मानना है कि खेल एक इंसान के व्यक्तित्व को निखारने में एक बड़ा किरदार अदा करता है।

2004 एशियन शूटिंग चैंपियनशिप के 10 मीटर एयर राइफल वर्ग के क्वालिफिकेशन में वर्ल्ड रिकॉर्ड की बराबरी करने वाली सुमा ने आगे कहा “शुरुआत में ज़्यादातर शूटर शर्मीले होते हैं लेकिन कुछ समय बीतने के बाद आप उनमे बदलाव भी देख सकते हैं।”

 “जो वर्क कल्चर इन्होंने सालों में सीखा है मुझे लगता है वह इसका इस्तेमाल कर मेरी संस्था को फायदा पहुंचा सकते हैं। हमे हार्ड वर्क करने की आदत है और हमारा ध्यान केंद्रित है, ऐसी ही है हमारी ज़िन्दगी। वह किसी भी संगठन से जुड़ कर उसे मूल्यवान बना सकते हैं।”

समाज हित में

अर्जुन अवार्ड जीतने वाली सुमा ने आगे कहा “सच्च कहूं तो एक ओलंपियन हमेशा से एक संपत्ति होता है। मैं अपने अनुभव से कह सकती हूं। जब मैं इंडियन रेलवे में थी तब हम आधे दिन ही काम किया करते थे।”

“हमारे जो वरिष्ठ अधिकारी थे वे हमे कहते थे कि एक एथलीट अगर आधे दिन के लिए ही काम करता है तो भी वह एक पूर्णकालिक कर्मचारी जितना ही महत्वपूर्ण है। वे मुझे बहुत प्रोत्साहित करते थे। हम एथलीट फोकस्ड होते हैं और अपने काम में ध्यान देते हैं।”

सुमा शिरूर अपने खिलाड़ी होने के दिनों से लेकर अब तक भरतीय शूटिंग का अहम हिस्सा रही हैं और इस खेल की बढ़त में इनका बहुत बड़ा योगदान है। शूटिंग रेंज में खेलने के बाद यह खिलाड़ी प्रेरणा की प्रतीक तब बनी जब इन्होंने कोच की भूमिका निभाने के लिए दोबारा से खेल की दुनिया में कदम रखे।

इनका मानना है कि कुछ बड़ी पहल के बाद भारत शूटिंग में बहुत बड़ा नाम हासिल कर लेगा। पूर्व शूटर सुमा शिरूर ने आगे कहा “हमारा आज बहुत अच्छा है, हमारा आज इतना अच्छा है कि आने वाले 15 से 20 साल में हम सफलता को लगातार जी सकते हैं। जहां तक बात रही शूटर की अगर वे समाज को वापिस समर्थन दें तो हम और भी ज़्यादा चैंपियन निकाल सकते हैं, यह बहुत अच्छा होने वाला है।”

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