पिछली सदी में भारत के कुछ हॉकी खिलाड़ियों का दबदबा पूरे विश्व में था और हॉकी की पहचान मानो इन्हीं से थी।
फ़ील्ड हॉकी में भारत का वर्चस्व और उनके खिलाड़ियों की प्रतिभा की पूरी दुनिया क़ायल थी। यही वजह थी कि दूसरे देश के खिलाड़ी भी ख़ुद को भारतीय जैसा बनाना चाहते थे। लेकिन इसके बावजूद भारत का दबदबा सभी देशों से काफ़ी ऊपर था।
इस तरह की क़ामयाबी बिना एकजुट और कई खिलाड़ियों के रहते हुए नहीं मिल सकती थी, और भारत ख़ुशक़िस्मत था कि उनके पास एक नहीं बल्कि कई बेहतरीन खिलाड़ी मौजूद थे। हालांकि इसके बावजूद हर टीम में कोई एक ऐसा खिलाड़ी ज़रूर होता है जो दूसरों से कहीं बेहतर हो।
यहां हम आपके लिए भारतीय इतिहास के 5 बेहतरीन हॉकी खिलाड़ियों की जानकारी लेकर आए हैं:
ध्यान चंद
हॉकी इतिहास में ध्यान चंद निसंदेह सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ हॉकी प्लेयर रहे हैं।
ध्यान चंद को हॉकी का जादूगर भी कहा जाता था, अपनी स्टिक पर गेंद को चुंबक की तरह चिपका लेने की कला में माहिर थे ध्यान चंद। मैदान पर ध्यान चंद की हॉकी स्टिक से गोलों की बारिश तो मानो आम बात थी, उन्होंने दो-दो ओलंपिक के फ़ाइनल में हैट्रिक भी लगाई थी।
ध्यान चंद पहली बार सुर्खियों में तब आए थे जब 1926 में भारत के न्यूज़ीलैंड दौरे पर उन्होंने कमाल का प्रदर्शन किया था। इसके बाद 1928 ओलंपिक में टीम इंडिया के साथ ध्यान चंद ने भी अपना ओलंपिक डेब्यू किया और वहां 14 गोल दागते हुए भारत को ओलंपिक में पहला स्वर्ण पदक दिलाया।
इसके बाद अगले लगातार दो ओलंपिक में (लॉस एंजेलिस 1932 और बर्लिन 1936) भी ध्यान चंद ने अपने अद्भुत खेल की बदौलत भारत को दो और गोल्ड मेडल दिलाते हुए स्वर्ण पदक की हैट्रिक बनवाई।
बलबीर सिंह सीनियर
द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से 1940 और 1944 ओलंपिक रद्द होने के बाद 1948 में एक बार फिर ओलंपिक की वापसी हो रही थी। और तब भारत अपने नए सुपर स्टार हॉकी खिलाड़ी की तलाश में था।
तब आते हैं बलबीर सिंह दोसांझ।
जिन्हें बलबीर सिंह सीनियर के नाम से पहचाना जाता है, हॉकी इतिहास में उन्हें अब तक का सर्वश्रेष्ठ सेंटर फॉरवर्ड माना जाता है। उन्होंने आपसी मतभेद और आंतरिक राजनीति को पीछे छोड़ते हुए 1948 ओलंपिक में दो मैचों में 8 गोल दागे थे और भारत को एक बार फिर स्वर्ण पदक दिलाया था। आज़ाद हिंदुस्तान का ये पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल था।
इसके बाद के सालों में तो वह देश के सबसे अहम हॉकी खिलाड़ी बन चुके थे और उन्होंने भारत को गोल्ड मेडल की दूसरी और स्वतंत्र भारत की पहली स्वर्ण पदक हैट्रिक लगाई थी। 1952 ओलंपिक फ़ाइनल में उन्होंने 5 गोल दागे थे, ये एक ऐसा रिकॉर्ड है जो आज तक क़ायम है। उन्हें पद्मश्री से भी नवाज़ा जा चुका है जो देशा का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
खिलाड़ी के तौर पर अपना करियर ख़त्म होने के बाद वह भारतीय हॉकी टीम के मुख्य कोच और मैनेजर भी रहे, जिनकी अगुवाई में भारत ने 1975 का वर्ल्ड कप भी जीता था। भारतीय पुरुष हॉकी टीम का ये इकलौता विश्व कप ख़िताब है। इस दिग्गज भारतीय खिलाड़ी ने इसी साल (2020) मई में 96 वर्ष की उम्र में आख़िरी सांस ली थी।
मोहम्मद शाहिद
भारतीय हॉकी इतिहास में एक और कभी न भूलने वाला नाम है मोहम्मद शाहिद, जिनके बारे में कहा जाता है कि देश में उन जैसा प्रतिभाशाली हॉकी खिलाड़ी कोई दूसरा नहीं था।
1979 में उन्होंने भारतीय हॉकी जूनियर टीम में डेब्यू किया था और अपने खेल से सभी को इतना प्रभावित किया कि वह 1980 ओलंपिक में भारतीय हॉकी दल का हिस्सा बन गए।
एक आक्रामक विंगर के तौर पर शाहिद ने ज़फ़र इक़बाल के साथ एक लाजवाब साझेदारी बना ली थी। भारत को मॉस्को में हुए 1980 ओलंपिक में अपना आठवां स्वर्ण पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी, इसके बाद फिर देश ने ओलंपिक में कोई पदक नहीं जीता।
मोहम्मद शाहिद की प्रतिभा और उनकी कला के क़ायल 1980 ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रहे वासुदेवन भास्करण भी थे। बनारस के इस खिलाड़ी ने देखते ही देखते उस दशक में देश के सबसे शानदार खिलाड़ियों की फ़ेहरिस्त में शामिल कर लिया था। 1986 एशियन गेम्स में भी उन्होंने देश को कांस्य पदक दिलाने में अहम योगदान दिया था।
शाहिद ने 1989 में हॉकी से संन्यास ले लिया था और फिर 2016 में लीवर की समस्या के बाद वह दुनिया को अलविदा कह गए।
धनराज पिल्लै
एक ऐसा नाम जो शायद पिछले कुछ सालों में भारतीय हॉकी का पर्याय बन गया था। धनराज पिल्लै एक बड़े सुपर स्टार हॉकी प्लेयर में शुमार हैं।
धनराज ने 1989 में पहली बार भारतीय हॉकी टीम में जगह बनाई थी, उन्होंने इसके बाद आने वाले सालों में मोहम्मद शाहिद की ख़ाली जगह को भर दिया था।
पिल्लै को उनकी चपलता और रफ़्तार के लिए जाना जाता है जिनकी ताक़त बेहतरीन पास के साथ आक्रामक खेल था। 90 के दशक में वह दुनिया के बेहतरीन अटैकर में शुमार थे, उन्हें 1995 में अर्जुना अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।
1998 में उनकी कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम ने 32 साल बाद एशियन गेम्स का स्वर्ण पदक भी जीता था और फिर 2003 में उन्होंने भारत को एशिया कप का ख़िताब भी दिलाया था।
अपने समय में पिल्लै सबसे चुस्त खिलाड़ियों में से एक थे, उन्होंने 4 ओलंपिक, 4 वर्ल्ड कप , 4 एशियन गेम्स और 4 चैंपियंस ट्रॉफ़ी में भारत का प्रतिनिधित्व किया। ऐसा करने वाले वह अब तक के इकलौते खिलाड़ी भी हैं। 15 साल लंबे अंतर्राष्ट्रीय करियर के बाद आख़िरकार उन्होंने 2004 में हॉकी से संन्यास ले लिया।
पीआर श्रीजेश
एक ऐसे भारतीय हॉकी खिलाड़ी जिन्होंने स्कूल में रहने तक ये नहीं सोचा था कि उन्हें हॉकी में करियर बनाना है। लेकिन इसके बाद भारतीय गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग छाप छोड़ी।
इस दिग्गज हॉकी प्लेयर को भारतीय हॉकी सीनियर टीम में जगह बनाने के लिए लंबे समय तक इंतज़ार करना पड़ा था, लेकिन जब उन्हें पहली बार मौक़ा मिला तो 2011 एशियन चैंपियंस ट्रॉफ़ी में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ दो गोल बचाते हुए अपनी अहमियत साबित कर दी। इस प्रदर्शन से भारत ने जहां ख़िताब अपने नाम किया तो आगे चलकर श्रीजेश भी टीम की पहली पसंद बन गए।
तब से श्रीजेश टीम की दीवार बन गए और एक बेहतरीन लीडर भी, उनकी इस क़ाबिलियत ने उन्हें विश्व का सबसे बेहतरीन गोलकीपर में से एक बना दिया।
पीआर श्रीजेश ने भारतीय मेंस हॉकी टीम की कप्तानी भी की है और 2017 में लगी गंभीर चोट से भी ख़ुद को उबारते हुए टीम में वापसी की है।
FIH प्रो लीग 2020 में श्रीजेश टीम का महत्वपूर्ण अंग रहे हैं, जहां उनका टीम इंडिया की चार जीतों में अहम योगदान रहा है। इनमें से दो जीत तो पेनल्टी शूट-आउट्स में उन्होंने टीम को दिलाई।
पीआर श्रीजेश ने अपने तीसरे ओलंपिक, टोक्यो 2020 में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और उन्होंने कई मौकों पर अपने डिफेंस से टीम के लिए अहम योगदान दिया।
पीआर श्रीजेश भारतीय पुरुष हॉकी टीम के लिए टोक्यो 2020 के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे और उन्होंने ओलंपिक कांस्य पदक जीतकर भारत के 41 साल के पदक के सूखे को समाप्त किया।
श्रीजेश ने बर्मिंघम में राष्ट्रमंडल खेल 2022 और हांगझोऊ में खेले गए एशियन गेम्स 2023 में भारत के रजत पदक जीतने में भी महत्पूर्ण भूमिका निभाई।