सुन्न पैर के साथ अंजू बॉबी जॉर्ज ने कैसे लगाई गौरवान्वित करने वाली छलांग?   

बीबीसी लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 2020 की विजेता भारतीय एथलीट ने अपनी प्रेरणादायक यात्रा को किया याद

5 मिनटद्वारा दिनेश चंद शर्मा
Anju Bobby George THUMBNAIL

अंजू बॉबी जॉर्ज (Anju Bobby George) भारतीय खेल के इतिहास में एक विशेष स्थान रखती हैं। वो विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली भारत की अकेली एथलीट हैं। लॉन्ग जम्पर ने 2005 के विश्व एथलेटिक्स के फाइनल, 2002 में बुसान के एशियाई खेल और 2005 में इंचियोन की एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने ये सभी सफलता दौड़ते समय आगे रहने वाले सुन्न पैर के साथ हासिल की।

इस सप्ताह 2020 के बीबीसी लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित अंजू ने ओलंपिक चैनल को बताया, "17 साल की उम्र में मेरा दौड़ते समय आगे रहने वाला पैर (टेकऑफ़ लेग) चोटिल हो गया था।"

उन्होंने आगे कहा, "इसके लिए मुझे कोई सही इलाज और पुनर्वसन नहीं मिला। दर्द के कारण मैं चल-फिर भी नहीं पाती थी। इसमें मैंने करीब पूरा एक वर्ष गवां दिया। फिर जब मैंने चलना शुरू किया, तो मेरा टखना अंदर की ओर मुड़ गया। मैंने टखने को कसकर बांधते हुए जॉंगिंग शुरू की और फिर धीरे-धीरे ट्रेनिंग में वापसी की।"

उन्होंने आगे कहा, "अभ्यास पहले जैसा नहीं रहा था, क्योंकि अब बहुत दर्द सहन करना पड़ता था। टखने की समस्या से भी जूझना पड़ रहा था। लंबी कूद वालों को टखने की प्रतिक्रिया बहुत जरूरी होती है, लेकिन मुझे यह नहीं मिल रही थी। मुझे एक फ्रैक्चर हुआ था, इलाज कर दिया गया था। लेकिन, इसके बाद डॉक्टर यह पता नहीं लगा पाये कि मुझे लगातार दर्द क्यों हो रहा है।"

अंजू ने अपने कोच रॉबर्ट बॉबी जॉर्ज (जिनके साथ बाद में उन्होंने शादी की) के सपोर्ट से प्रशिक्षण करने में सक्षम हुई, लेकिन अप्रतिक्रियाशील दांये टखने के साथ वह लम्बे समय तक अभ्यास नहीं कर सकती थीं।

बॉबी ने कहा, "मैंने चोट प्रबंधन और पुनर्वास को लेकर काफी अध्ययन करने के बाद अभ्यास को खुद के हिसाब से अनुकूल बनाया। क्योंकि, ज्यादा भाग और कूद नहीं सकती थी।"

प्रतियोगिताओं के दौरान भी उसे दर्द से छुटकारा पाने का दूसरा तरीका अपनाना पड़ा। क्योंकि, दर्द निवारक दवाओं से उसे एलर्जी थी।

उन्होंने कहा, "मुझे सांस लेने में तकलीफ के कारण दो-तीन बार अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके बाद पता चला कि यह इसलिए हो रहा था क्योंकि, मुझे दर्द निवारक दवाओं से एलर्जी थी।"

दिसंबर 2020 में सन्यास लेने के दस साल बाद अंजू ने एक चौंका देने वाला खुलासा किया। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, 'कोई माने या न माने, मैं बहुत भाग्यशाली लोगों में से एक हूं, जो एक किडनी के साथ दुनिया में शीर्ष पर पहुंची। दर्द निवारक दवाओं से एलर्जी और एक सुन्न पैर जैसी कई बाधाओं के साथ। आप इसे कोच जादू या उसकी प्रतिभा कह सकते हैं।'

43 वर्षीय अब समस्याओं को लेकर स्पष्टवादी हैं। क्योंकि, वो इनके माध्यम से एथलीटों की नई पीढ़ी को प्रेरित करना चाहती हैं।

उन्होंने कहा, "सबसे चुनौतीपूर्ण टूर्नामेंटों में से एक विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप (पेरिस, 2003) से ठीक पहले मुझे इसके बारे में (रेनल एगेनेसिस, जिसमें व्यक्ति एक किडनी के साथ जन्म लेता है) में पता चला।"

उन्होंने आगे कहा, "यह सब मेरे प्रशिक्षण बेस पर जाने से पहले पता चला था। एक एथलीट रूप में यह छोटी सी बात बड़ा झटका थी। हमें हमेशा अपने प्रदर्शन के शिखर पर रहना होता है। इस चिकित्सा स्थिति के कारण मैं सही तरह से रिकवरी नहीं कर पा रही थी और यह पीड़ादायक भी था। प्रशिक्षण के बाद कई समस्या और थी। यह हमारे नियंत्रण से परे था। हमें इस बारे में सोचना था कि खेल को जारी रखना है या नहीं। मैं डॉक्टर नहीं हूं, इसलिए नहीं पता कि यह शरीर को कैसे प्रभावित करेगा। कई डॉक्टरों के साथ चर्चा की और फिर फैसला लिया कि अगर कुछ होता है तो देखा जाएगा।"

इस झटके के बावजूद अंजू ने रिकॉर्ड 6.70 मीटर की छलांग लगाते हुए ऐतिहासिक कांस्य पदक जीता। इस तरह वो विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली अकेली भारतीय एथलीट बनीं। हालांकि, इन तकलीफ देने वाली मुश्किलों ने अंजू के करियर को और प्रभावशाली बना दिया है, लेकिन उनकी इच्छाओं का एक पहलू ये भी है कि उन्नत चिकित्सा विज्ञान और सूचना हासिल करने लिहाज से पिछड़े युग में प्रतिस्पर्धा की थी।

उन्होंने कहा, "उन दिनों में बीमारी का सही पता लगाने में भी लंबा समय लगता था। इस सब के बावजूद मेरे पास केवल बॉबी का सपोर्ट था। मेरी हालत, रिकवरी, मालिश, चोट-प्रबंधन के लिए हम विदेशों से सहायता हासिल करने की कोशिश कर रहे थे। जबकि देश में कुछ भी उपलब्ध नहीं था। लेकिन, अब हम विदेशों से कोच नियुक्त कर रहे हैं। अब सब कुछ आसान और सुलभ है। जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जाती है, जबकि उन दिनों ऐसा नहीं था।" 

उन्होंने आगे कहा, "अब युवाओं को वैसी ही समस्याओं का सामना नहीं करना पड़े इसके लिए अंजू ने कर्नाटक में अंजू बॉबी जॉर्ज स्पोर्ट्स फाउंडेशन नाम से अपनी अकादमी शुरू की है। अकादमी ने अभी 13 से 18 वर्ष की आयु के 13 बच्चों को भर्ती किया गया है। यहां उनके स्वास्थ्य, प्रशिक्षण के साथ-साथ शिक्षा की व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा, “यह उनके दूसरे परिवार की तरह है। उनका जीवन अब हमारी जिम्मेदारी है।" 

अंजू एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया में वरिष्ठ उपाध्यक्ष के पद पर भी हैं। उनका मानना ​​है कि एक एथलीट के रूप में उनका अनुभव युवा एथलीटों की जरूरतों और समस्याओं को समझने में मदद करेगा। 

उन्होंने कहा, "लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार प्राप्त करना किसी अन्य खेल पुरस्कार से अलग है। यह सिर्फ मेरे करियर के लिए नहीं है, बल्कि इसके बाद भी मेरे योगदान को देखकर दिया गया है। यह मेरी कठोर मेहनत का सम्मान है, जो मैंने अपने करियर में की और फिर अपने देश और खेल के लिए वापस लौटाई। यह सम्मान हमें और कठोर मेहनत के लिए प्रेरित करता है।"