कॉमनवेल्थ गेम्स: जब मिल्खा सिंह ने गोल्ड मेडल जीतकर पूरी दुनिया में लहराया था भारत का परचम

मिल्खा सिंह ने कार्डिफ के वेल्स में 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों में 440 यार्ड की रेस में भारत का पहला गोल्ड मेडल जीता था।

4 मिनटद्वारा रौशन कुमार
Milkha Singh
(2005 prpix.com.au)

भारतीय स्प्रिंटर मिल्खा सिंह की रेस ट्रैक पर यह जीत दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध है।

इसके साथ ही ‘द फ्लाइंग सिख’ की जीत की लंबी सूची में कॉमनवेल्थ गेम्स 1958 की ऐतिहासिक जीत भी शामिल है।

मिल्खा सिंह कार्डिफ 1958 में 440 यार्ड की रेस को जीतकर कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय भी बने थे।

मिल्खा सिंह की उन सफलताओं की वजह से ही आज भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स में एक पावरहाउस देश के तौर पर जाना जाता है।

मिल्खा सिंह की जीत से पहले भारत कॉमनवेल्थ गेम्स में पोडियम पर पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहा था। तब कॉमनवेल्थ गेम्स को ब्रिटिश एम्पायर गेम्स के रूप में जाना जाता था, और तीन इवेंट में भारत ने सिर्फ एक ब्रॉन्ज़ मेडल हासिल किया था।

हालांकि मिल्खा सिंह की जीत के बाद भारत की किस्मत बदल गई।

मिल्खा सिंह की कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी

वेल्स के कार्डिफ में कॉमनवेल्थ गेम्स 1958 में हिस्सा लेने से पहले मिल्खा सिंह ने पहले ही भारतीय सर्किट में अपना नाम बना लिया था। उस वर्ष की शुरुआत में उन्होंने कटक में आयोजित हुए नेशनल गेम्स के 200 मीटर और 400 मीटर इवेंट में नेशनल रिकार्ड को तोड़ा था।

मिल्खा सिंह ने 1958 के एशियन गेम्स में भी दो गोल्ड मेडल अपने नाम किए थे, लेकिन कॉमनवेल्थ गेम्स में जीत हासिल करना एक अलग ही बात थी।

महान स्प्रिंटर ने बीबीसी को काफी सालों दिए गए एक इंटरव्यू में बताया, "कॉमनवेल्थ गेम्स में मिल्खा सिंह के बारे में किसी ने नहीं सुना था, उस इवेंट में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा, युगांडा, केन्या और जमैका के एथलीटों ने भाग लिया था और वह विश्व स्तरीय एथलीट थे।"

कठिन चुनौतियों के बावजूद मिल्खा सिंह क्वार्टरफाइनल और सेमीफाइनल में जगह बनाने के बाद कार्डिफ 1958 में 440 यार्ड फाइनल के छह धावकों में जगह बनाने में कामयाब रहे थे।

मिल्खा सिंह ने याद करते हुए कहा, "जब कोई व्यक्ति फाइनल में पहुंचता है, तो वह इतना तनाव में होता है कि वह सो नहीं पाता है। वह बहुत कठिन रात थी।"

छह फाइनलिस्टों में से मिल्खा सिंह दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस नाम के एक व्यक्ति से थोड़ा डरे हुए थे, जो 1956 के समर ओलंपिक में छठे स्थान पर रहे थे। इस इवेंट में मिल्खा पहले ही बाहर हो गए थे।

लेकिन एक टैक्टिकल रणनीति और उनके अमेरिकी कोच डॉ आर्थर डब्ल्यू हॉवर्ड से मिले प्रेरणा के कुछ शब्दों ने मिल्खा सिंह को इस मानसिक बाधा से पार पाने में मदद मिली।

"मेरे कोच ने मुझे आश्वस्त किया और उन्होंने मेरे दिमाग में डाल दिया था कि मैं रेस जीत सकता हूं, भले ही मैल्कम स्पेंस एक विश्व स्तरीय और विश्व रिकॉर्ड धारक स्प्रिंटर है। अगर मैं अपनी रेस को योजना के अनुसार दौड़ता हूं तो वह मेरे सामने कुछ भी नहीं है।"

CWG 1958 में मिल्खा सिंह की ऐतिहासिक जीत

24 जुलाई 1958 को खचाखच भरे कार्डिफ आर्म्स पार्क में मिल्खा सिंह इतिहास रचने के लिए तैयार थे।

स्कॉटलैंड के जॉन मैकिसाक, कनाडा के क्लाइव टोबैको, इंग्लिश धावक जॉन सैलिसबरी और जॉन राइटन के साथ मैल्कम स्पेंस के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए मिल्खा सिंह ने 440 यार्ड के फाइनल में सबसे बाहरी लेन में अपना स्थान लिया।

मिल्खा सिंह ने कहा, "मैंने अपनी प्रार्थना की, मैंने अपने माथे से जमीन को छुआ और भगवान से कहा, 'मैं अपनी पूरी कोशिश करने जा रहा हूं लेकिन भारत का सम्मान आपके हाथों में है।"

आखिरी लेन में, मिल्खा सिंह तेजी से ब्लॉक से उतरे और कोच की योजना को पर ध्यान दिया और शुरू से ही जितनी तेजी से दौड़ सकते थे उतनी तेजी से दौड़ना शुरु किया।

मिल्खा सिंह ने पहले 350 यार्ड में एक बड़ी बढ़त बना ली और वह लगातार अपनी पूरी क्षमता से रेस में दौड़ रहे थे।

इस बीच, मैल्कम स्पेंस ने अंदरूनी लेन से वापसी की और भारतीय स्प्रिंटर को लगभग पकड़ लिया। मिल्खा सिंह ने कहा, "जब मैं दौड़ रहा था, मैंने एक नज़र बगल में डाली और स्पेंस को अपने कंधे के ठीक पीछे देखा।"

हालांकि, मिल्खा सिंह ने बेहतरीन दौड़ लगाई और दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस को 0.3 सेकंड से हराकर कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बन गए।

भारतीय धावक ने 46.6 सेकंड में रेस पूरी की और एक नया नेशनल रिकॉर्ड बनाया, जबकि स्पेंस ने अपनी दौड़ 46.9 सेकंड में पूरी की।

"मैं खुशी से रो रहा था और अपने आप में सोच रहा था, मिल्खा सिंह आज आपने सचमुच भारत को गौरवांवित किया है।"

भारत लौटने पर मिल्खा सिंह का भव्य स्वागत हुआ और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने धावक के अनुरोध पर अगले दिन सार्वजनिक अवकाश भी घोषित कर दिया।

इस जीत के साथ मिल्खा सिंह ने न केवल इतिहास की किताबों में अपना नाम दर्ज कराया बल्कि एक चलन भी शुरू किया जो आज तक जारी है।

1958 से भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स के जिस भी इवेंट में भाग लिया है सभी संस्करणों में गोल्ड मेडल जीता है