पैरालिंपिक में भारतः एक संक्षिप्त इतिहास

कई पैरा-एथलीट पैरालंपिक में पदक जीत कर विश्व रिकॉर्ड बनाते हुए बढ़े हैं आगे

4 मिनटद्वारा दिनेश चंद शर्मा
पदक जीतने के बाद देवेंद्र झाझड़िया

कई पैरालिंपियन ने कल के लिए कामयाबी के निशान पीछे छोड़ते हुए विकलांगों के लिए खेलों में दुनिया के सबसे बड़े मंच पैरालिम्पिक्स में भारत के लिए ख्याति दिलाई है।

कुछ पैरा-एथलीट पैरालंपिक में पदक जीत कर विश्व रिकॉर्ड बनाते हुए आगे बढ़ गए। पैरालंपिक में भारत यात्रा 1968 गेम्स से शुरू हुई। 1976 और 1980 को छोड़कर भारत ने इसके सभी संस्करणों में भाग लिया।

2016 रियो पैरालंपिक खेलों में भारत ने चार पदक पर कब्जा जमाया, जो 1984 में आयोजित इस आयोजन के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले खिलाडियों के बराबर था।

पैरालम्पिक्स की शुरूआत

यह इंटरनेशनल स्टोक मैंडविले गेम्स फेडरेशन के तत्वावधान में आयोजित किया जाता है। 1948 और 1952 में युद्ध लड़ने वाले पुराने सैनिकों के लिए स्टोक मैंडविले गेम्स आयोजन के बाद 1960 में रोम में पहली बार पैरालिम्पिक्स गेम्स आयोजित किए गए।

रोम में पहली बार पैरालिम्पिक्स में 18 देशों के 209 एथलीटों की भागीदारी रही लेकिन भारत ने 1960 और 1964 के आयोजन में हिस्सा नहीं लिया।

पैरालिंपिक्स शब्द को सियोल में 1988 में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) द्वारा अनुमोदित किया गया, यह 24 साल में पहली बार ओलंपिक के रूप में इसी शहर में आयोजित किया गया था।

पैरालिंपिक में भारत की शुरुआत

भारत ने 1968 में इजरायल के तेल अवीव में पैरालिंपिक में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की। भारतीय प्रतिनिधि मंडल में 10 एथलीटों को भेजा गया जिनमें आठ पुरुष और दो महिलाएं शामिल थीं। हालांकि, भारत इस आयोजन से खाली हाथ लौटा, लेकिन बड़े मंच पर प्रदर्शन करना भारत के पैरा-एथलीटों के लिए पहला अनुभव था।

चार साल बाद 1972 में जर्मनी के हीडलबर्ग गेम्स में भारत ने पैरालिंपिक में अपना पहला पदक जीता। पैरा-तैरामुरलीकांत पेटकर ने 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में स्वर्ण पदक हासिल करते हुए 37.331 सेकंड का विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। आयोजन में भाग लेने वाले 42 देशों की तालिका में भारत एक पदक के साथ 24वें स्थान पर रहा।

1972 में पहला स्वर्ण पदक जीतकर भारत ने पैरालिंपिक में पहला धमाका किया। हालांकि इसके बाद 1976 और 1980 के गेम्स में भारत ने हिस्सा नहीं लिया और इसके बाद सीधे 1984 के गेम्स में उपस्थिति हुई।

**1984 के पैरालिम्पिक्स में पदकों की दौड़**

1984 के समर पैरालिम्पिक्स दो अलग-अलग स्थानों पर आयोजित किए गए। स्टोक मैंडेविले, UK, ने रीढ़ की हड्डी की चोट वाले एथलीटों के लिए व्हीलचेयर प्रतियोगिता जबकि न्यूयॉर्क के लॉन्ग आईलैंड कीमिचेल एथलेटिक कॉम्प्लेक्स और हॉफस्ट्रा यूनिवर्सिटी में सेरेब्रल पाल्सी, एम्प्यूटेस और लेस ऑट्रेस के साथ व्हीलचेयर और एंबुलेंसरीज प्रतियोगिता निर्धारित की गई थी।

भारत के प्रतिनिधिमंडल ने अभी तक के सर्वाधिक चार पदक हासिल कर दक्षिण कोरिया के साथ संयुक्त रूप से 37वें स्थान पर कब्जा जमाया।

संयोग से इस प्रतियोगिता में जोगिंदर सिंह बेदी भी शामिल थे जिन्होंने देश को यह उपलब्धि हासिल करने में मदद की। बेदी ने पुरुषों के शॉट पुट में रजत पदक जीता और फिर डिस्कस और जेवलिन थ्रो में कांस्य पदक अपने नाम किया। भीमराव केसरकर ने जेवलिन में रजत पदक पर कब्जा जमाकर भारत के लिए चौथा पदक दिलाया।

1988 से 2000 तक पदक का सूखा

1984 में अपने सर्वाधिक पदक जीतने के बाद पैरालिंपिक में भारत का भाग्य पलट गया। भारतीय प्रतियोगियों ने 1988 से 2000 तक पोडियम में स्थान पाने के लिए संघर्ष किया। एथेंस में 2004 गेम्स में भारत के लिए पदकों का सूखा खत्म हुआ। इसमें भारत ने एक स्वर्ण और एक रजत पदक जीत 53वां स्थान हासिल किया।

2004 में देवेंद्र झाझड़िया ने जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीता जबकि राजिंदर सिंह ने 56 किलोग्राम भारवर्ग में पॉवरलिफ्टिंग के लिए कांस्य पदक जीता। चार साल बाद बीजिंग में भी भारत के हाथ खाली रहे।

2012 और 2016 के पैरालिंपिक में भारत का बेहतर प्रदर्शन

2012 में लंदन में भारत के HN गिरीशा ने पुरुषों की ऊंची कूद F42 श्रेणी में रजत पदक जीता। इस संस्करण में भारत एकमात्र पदक ही हासिल कर पाया था।

2016 में भारत ने रियो गेम्स में चार पदक के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। एथलेटिक्स में मिले ये पदक भारतीय पैरालिम्पियन को मजबूत करने के लिए जरूरी थे।

मरियप्पन थंगावेलु और देवेंद्र झाझरिया ने क्रमशः ऊंची कूद F42 और जेवलिन F46 में एक-एक स्वर्ण पदक जीता, जबकि दीपा मलिक ने भी शॉट पुट में रजत पदक पर कब्जा जमाया। वरुण सिंह भाटी ने ऊंची कूद F42श्रेणी में कांस्य पदक अपने नाम किया।

टोक्यो पैरालिम्पिक्स

भारत ने टोक्यो पैरालंपिक 2020 में पहले से ही तीरंदाजी, एथलेटिक्स और निशानेबाजी की 14 स्पर्धाओं में 20 स्थानों पर जगह पक्की कर रखी है। विशेष रूप से हरविंदर सिंह और विवेक चिकारा पैरालंपिक गेम्स के लिए क्वालीफाई करने वाले देश के पहले पुरुष तीरंदाज बने। 2016 में स्वर्ण पदक विजेता मरियप्पन थंगावेलु भी टोक्यो के लिए नेतृत्व करने वाले दल का हिस्सा होंगे।

भारत को जितनी कामयाबी रियो में मिली उतने ही बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद आगे भी की जा रही है।क