अतीत को जाने: कैसे Abhinav Bindra के निशाने पर आया ओलंपिक स्वर्ण
ओलंपिक खेलों के फाइनल मुकाबले रोमांचक, भावुक और बेहद खूबसूरत होते हैं। हर सप्ताह हम बीते ओलंपिक खेलों के फाइनल्स मे देखे गए अद्भुत लम्हों को फिर से याद करते हैं और इस बार हम आपको बताएँगे कि कैसे भारतीय निशानेबाज़, Abhinav Bindra ने हर मुश्किल को पार कर जीता था ओलंपिक स्वर्ण।
पहले की कहानी
100 करोड़ से भी ज्यादा आबादी वाले भारत देश ने 2008 बीजिंग ओलंपिक खेलों के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण नहीं जीता था और 1980 के बाद से एक भी नहीं जीता था। एक तरफ जहाँ पूरा भारत स्वर्ण के रूप में चमत्कार की आस लगाए बैठा था, 25 वर्ष के युवा निशानेबाज़, Abhinav Bindra बिना किसी के ध्यान दिए अपने देश का ओलिंपिक इतिहास बदलने की तैयारी कर रहे थे।
भारत के देहरादून शहर में जन्मे Abhinav Bindra को लोकप्रिय खेलों में कोई रूचि नहीं थी और ज़्यादा न बोलने वाले इस युवा को निशानबाज़ी से ऐसा लगाव हो गया की आने वाले 25 सालों तक सिर्फ इसी खेल पर अपनी साड़ी ऊर्जा लगा दी। अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर Abhinav ने निशानेबाज़ी की दुनिया में नाम सिर्फ 15 साल की उम्र में कर लिया।
Abhinav Bindra भारत के 1998 कामनवेल्थ खेलों के निशानेबाज़ी समूह का हिस्सा महज़ 15 साल की उम्र में बन गए और दो साल बाद 2000 सिडनी ओलंपिक खेलों में भी 10 मी एयर राइफल प्रतियोगिता के लिए क्वालीफाई किया। धीरे-धीरे निशानेबाज़ी जगत में Abhinav BIndra का नाम छा गया और उन्होंने कामनवेल्थ खेल (2002, 2006) और विश्व चैंपियनशिप (2006) में स्वर्ण जीत कर सबको सही साबित कर दिया।
ओलंपिक खेलों में Abhinav Bindra की किस्मत बाकी प्रतियोगिताएं के मुकाबले थोड़ी ख़राब रही और 2004 एथेंस खेलों में उन्होंने क्वालीफाइंग चरण में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया पर पदक नहीं जीत पाए।
फाइनल
Bindra को 2008 बीजिंग खेलों के पहले चोट का सामना करना पड़ा लेकिन उनका निश्चय और स्वर्ण जीतने का जूनून हर मुश्किल को परास्त करने के लिए तैयार था। कहीं न कहीं उनके दिमाग में भी यह बात थी की बीजिंग खेलों में ओलंपिक स्वर्ण जीतने का सबसे अच्छा मौका था, और इस बार एथेंस, सिडनी जैसी चूक की कोई गुंजाइश नहीं थी।
एक शानदार शुरुआत के साथ Bindra ने क्वॉलिफिइंग चरण में 597 अंक प्राप्त किये और फाइनल में आसानी से अपनी जगह बना ली। उनका आत्मविश्वास बढ़ गया था पर फाइनल के कुछ मिनट पहले उन्हें पता लगा की उनकी राइफल की 'साइट' बदल दी गई है।
Bindra ने फाइनल को याद करते हुआ कहा, 'अंतिम चरण के पहले मुझे एहसास हुआ की मेरी राइफल की साइट के साथ कुछ बदलाव किया गया है और इस बात से मैं एक दम घबरा गया। उस दबाव के माहौल में मुझे याद आया की मैं इस आपातकालीन स्थिति के लिए भी तैयार था।'
एक महान खिलाड़ी की पहचान, दबाव और कठिन परिस्थितयों में ही पता चलती है और Abhinav Bindra के जीवन की यह शायद यह सबसे बड़ी चुनौती थी। उनके सामने था जीवन का एक मात्र लक्ष्य, हाथ में एक बदली हुई राइफल और उन्हें स्वर्ण जीतने से रोकने के लिए तत्पर चीन के ही ओलंपिक चैंपियन, HU Qinan.
दर्शकों से ले कर वातावरण तक, सब कुछ Abhinav Bindra के खिलाफ था पर तभी उन्होंने अपने जीवन की सबसे बेहतरीन निशानेबाज़ी करते हुए सारे प्रयासों में 10 के ऊपर अंक प्राप्त करते हुए स्वर्ण छीन लिया।
अंतिम चरण में Bindra की स्कोर श्रंखला कुछ ऐसी थी: 10.7, 10.3, 10.4, 10.5, 10.5, 10.5, 10.6, 10.0, 10.2 और 10.8.
'वह 10 शॉट हर दृष्टिकोण से जादुई थे, चाहे वह स्थिरता हो या समय की बात। वह मेरे जीवन के 10 सबसे बेहतरीन शॉट थे और मुझे पता था की इससे बेहतर करना मेरे लिए असंभव होगा।'
परिणाम
जो कमाल Abhinav Bindra ने 2008 बीजिंग खेलों में भारत के लिए कर दिखाया, वह अभी तक बराबर नहीं किया गया है। भाग्य ने हमेशा उनका साथ भले ही न दिया हो पर Bindra इस बात की मिसाल हैं की अगर आप कुछ ठान लें तो करना असंभव नहीं है।
बीजिंग में स्वर्ण जीतने के बाद Abhinav ने अपना प्रदर्शन बरक़रार रखा और बहुत सारे अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते। उनकी आखरी प्रतियोगिता रियो 2016 खेलों में थी और वहां भी वह बहुत काम अंकों से पदक गवा बैठे।
निशानेबाज़ी जैसे खेल को अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले Abhinav Bindra को अपने करीयर को ले कर कोई भी मलाल नहीं है पर वह ज़रूर जानना पसंद करेंगे की 2008 में उनकी राइफल को किसने बदला।