विजय कुमार ने पिस्टल स्पर्धा में भारत को दिलाया था पहला ओलंपिक पदक

2012 के लंदन ओलंपिक खेल में भारतीय शूटर विजय कुमार का रजत पदक, पिस्टल स्पर्धा में भारत का पहला ओलंपिक पदक था।

6 मिनटद्वारा सैयद हुसैन
लंदन 2012 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल पोडियम (बाएं से दाएं): रनर-अप विजय कुमार, विजेता लेउरिस पुपो, तीसरा स्थान डिंग फेंग
(Getty Images)

लंदन 2012 में विजय कुमार के रजत पदक जीतने के पहले ही भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शूटिंग का केंद्र बन चुका था।

एथेंस 2004 में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ की रजत पदक जीत और बीजिंग 2008 के ओलंपिक खेल में अभिनव बिंद्रा के द्वारा जीते गए ऐतिहासिक ओलंपिक स्वर्ण पदक ने भारतीय निशानेबाजों के लिए शूटिंग का मंच तैयार कर दिया था।

इसके अलावा, बीजिंग ओलंपिक में पदक से चूकने के बाद गगन नारंग ने लंदन 2012 ओलंपिक खेल में व्यक्तिगत 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा का कांस्य पदक जीतकर भारत के ओलंपिक पदक विजेता शूटर की लिस्ट में अपना नाम भी शामिल कर लिया। इसके बाद विजय कुमार के ऊपर भी पदक जीतकर देश को गौरवान्वित करने और इस लिस्ट में अपना नाम जोड़ने का दबाव बढ़ गया।

हिमाचल प्रदेश के निशानेबाज ने लंदन 2012 ओलंपिक खेल में बिल्कुल ऐसा ही किया और 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल स्पर्धा के दौरान संयम बरकरार रखते हुए रजत पदक अपने नाम किया। इतना ही नहीं, विजय कुमार अपनी इस जीत के साथ ओलंपिक इतिहास में भारत के सबसे सफल प्रदर्शन का हिस्सा भी बने।

विजय कुमार का बीजिंग में निराशाजनक प्रदर्शन और लंदन तक का सफर

पूर्व आर्मी जवान के सुपुत्र, विजय कुमार का शूटिंग के प्रति जुड़ाव बहुत कम उम्र से ही दिखने लगा था। वह छोटी उम्र से ही बंदूकों के प्रति आकर्षित थे, लेकिन साल 2001 में भारतीय सेना का हिस्सा बनने के बाद ही उन्होंने शूटिंग को बतौर खेल गंभीरता से लिया।

विजय कुमार को कुछ साल बाद आर्मी मार्क्समैनशिप यूनिट में ट्रांसफर कर दिया गया, जहां उन्होंने रूसी कोच पावेल स्मिरनोव की देख-रेख में पेशेवर ट्रेनिंग शुरू की।

विजय कुमार ने कहा, "मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे सेना में अपने समय के दौरान शूटिंग में अपने करियर को आगे बढ़ाने का मौका मिला और मुझे खेल में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए उनका समर्थन मिला, जिसकी बदौलत मैं यहां तक पहुंच सका हूं।

विजय कुमार की मेहनत और प्रतिभा रंग लाई और उन्होंने जल्दी ही बड़ी सफलताएं हासिल करते हुए साल 2006 के राष्ट्रमंडल खेल में दो स्वर्ण पदक जीतने के बाद उसी साल एशियाई खेल की 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में भी कांस्य पदक अपने नाम किया।

(2006 Getty Images)

साल 2007 में हुए एशियाई चैंपियनशिप में विजय कुमार दूसरे स्थान पर रहे और साल 2008 में होने वाले बीजिंग ओलंपिक खेल के लिए तैयार दिखे। 

हालांकि, इससे पहले विजय कुमार को चिकन पॉक्स से जूझना पड़ा और वह ओलंपिक खेल में अपना डेब्यू नहीं कर सके। 

विजय कुमार ने कहा कि, "मैं लगभग दो महीने तक शूटिंग नहीं कर सका और जब मैं रेंज में लौटा, तो मेरे अंदर फिटनेस की कमी थी। ओलंपिक में खेलने से चूक जाने की निराशा को ख़त्म करना थोड़ा मुश्किल था।”

ठीक होने के बाद, भारतीय निशानेबाज विजय कुमार ने साल 2009 के ISSF विश्व शूटिंग चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर एक मज़बूत वापसी की।

नई दिल्ली में आयोजित साल 2010 के राष्ट्रमंडल खेल में, विजय कुमार ने तीन स्वर्ण पदक जीते, जिसमें रैपिड फायर और सेंटर फायर पिस्टल की एकल स्पर्धा में जीत शामिल थी।

एशियाई खेल में कांस्य पदक और साल 2011 के ISSF विश्व शूटिंग चैंपियनशिप में रजत पदक की मदद से विजय कुमार ने बेहतरीन फॉर्म के साथ ओलंपिक वर्ष में प्रवेश किया। 

उन्होंने लंदन में 2012 के लिए भारतीय निशानेबाजों की टीम में जगह बना ली, लेकिन सबसे कठिन समय आना अभी बाकी था।

विजय कुमार के लिए गौरव का पल

25 मीटर पिस्टल में विजय कुमार को महारत हासिल हो चुकी थी और यह उनकी पसंदीदा प्रतियोगिता बन चुकी थी क्योंकि उनके सभी अंतरराष्ट्रीय पदक इसी श्रेणी में आए थे। इसलिए, अनुमान के मुताबिक वह 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में कोई खास छाप नहीं छोड़ पाए।

लंदन 2012 में भी इस शूटर ने बेहतरीन अंदाज़ में आग़ाज़ किया और प्रारंभिक राउंड में उन्होंने 600 में 585 अंक हासिल कर छह सदस्यीय फाइनल राउंड के लिए क्वालीफाई किया और चौथे स्थान पर रहे।

हालांकि, इस स्कोर का कोई मतलब नहीं था अगर विजय कुमार फाइनल में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते।

दरअसल, इंटरनेशनल स्पोर्टस शूटिंग फेडरेशन (ISSF) ने उस साल के नियमों में बदलाव करते हुए यह कहा था कि प्रारंभिक और फाइनल के स्कोर को जोड़ने के बजाय सिर्फ अंतिम चरण के स्कोर को ही पदक तालिका के लिए गिना जाएगा।

इस बदलाव की वजह से एलेक्सी क्लिमोव प्रारंभिक राउंड में रिकॉर्ड-ब्रेकिंग 592 अंक हासिल करने के बावजूद मुक़ाबले से बाहर हो गए थे। लेकिन यहां पर विजय कुमार ने अपने ऊपर दबाव नहीं हावी होने दिया और अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत अच्छे प्रदर्शन के साथ पदक की दावेदारी में बने रहे।

विजय कुमार ने कहा, "मैंने पिछले डेढ़ साल से इस पल के लिए ट्रेनिंग ली थी, जब से नियम बदले गए। यह मेरी ताकत थी और मुझे पता था कि मैं अच्छा प्रदर्शन कर सकता हूं।"

भारतीय निशानेबाज ने पहले राउंड में अच्छी शुरुआत की, लेकिन बाद में क्यूबा के लेउरिस पुपो ने बढ़त हासिल कर ली।

छठे राउंड के बाद क्लिमोव के बाहर होने से विजय कुमार का पदक पक्का हो गया, लेकिन वह 24 अंकों के साथ चीन के निशानेबाज डिंग फेंग के साथ दूसरे स्थान पर थे।

(Lars Baron/Getty Images)

रोमांचक सातवें दौर में, विजय कुमार ने फेंग के तीन की तुलना में चार का स्कोर बनाकर रजत पदक हासिल किया और पुपो से दो अंकों से पीछे रहते हुए फाइनल राउंड में पहुंचे। निर्णायक गेम में क्यूबा के खिलाड़ी ने चार के स्कोर के साथ स्वर्ण पदक हासिल किया और कुमार ने अपना रजत पदक पक्का कर लिया।

हालांकि, पहले ओलंपिक खेल में हिस्सा लेते हुए पहला ओलंपिक पदक जीतना उनके आजीवन सपने के साकार होने का प्रतीक था। लेकिन, पोडियम पर विजय कुमार का शांत व्यवहार यह नहीं दर्शाता था कि उन्होंने अभी-अभी क्या हासिल किया है।

विजय कुमार ने पदक समारोह में ही अपनी उपलब्धि स्वीकार की और उसके बाद उनका पहला विचार इस जीत की ख़ुशी का जश्न परिवार के साथ मनाने का था।

भारतीय शूटर ने इस ऐतिहासिक जीत के बाद कहा, "इससे पहले भी मैंने कई पदक जीते हैं, लेकिन यह मेरे पदकों के संग्रह में नहीं था। ओलंपिक पदक जीतना सबसे बड़ी बात है और अब मैं अपने परिवार के पास लौटकर इसका जश्न मनाना चाहता हूं।"

विजय कुमार की ज़िंदगी इस पदक जीतने के बाद भी बेहद साधारण रही। उन्हें सेना में सूबेदार मेजर बना दिया गया था। इसी पद पर रहते हुए उन्होंने साल 2017 में अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए भारतीय सेना से रिटायरमेंट ले ली।

अब उनके पास बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक की डिग्री है और वह हिमाचल प्रदेश पुलिस में बतौर डीएसपी कार्यरत हैं।

विजय कुमार के नए करियर ने उन्हें प्रतिस्पर्धी शूटिंग से दूर कर दिया। लेकिन, अनुभवी निशानेबाज ने हाल ही में खेल में वापसी की और उनकी नज़रें पेरिस 2024 ओलंपिक में पदक हासिल करने पर हैं।

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