Olympic Games Helsinki 1952
हेलिंसकी 1952द टॉर्च
रूट डिजाइन और विवरण
ओलंपिया से लौ को एथेंस तक ले जाया गया। इसे जर्मनी में दो जगहों म्यूनिख और डसेलडोर्फ में रोका गया था फिर वहां से डेनमार्क में अलबोर्ग के लिए उड़ान भरी। डेनमार्क, स्वीडन और फिनलैंड में इसे पैदल और परिवहन के अन्य साधनों से ले जाया गया।
4 जुलाई 1952: लौ स्टॉकहोम पहुंची और 1912 खेलों के ओलंपिक स्टेडियम में पंहुची, जहां वो रात भर जलती रही।
17 जुलाई: फिनलैंड के हेमेनलिनना शहर में फ्लेम 1952 के खेलों के आधुनिक पेंटाथलॉन इवेंट पर पहुंचा। फ्लेम को टाउन हॉल से यह प्रतियोगिता स्थल पर लाया गया और पूरे कार्यक्रम में वहाँ जलाया गया।
19 जुलाई: ओपनिंग सेरेमनी में तीन ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों (1920, 1924 और 1928) में नौ स्वर्ण पदक और तीन रजत पदक जीतने वाली प्रसिद्ध धावक पावाओ नुरमी ने स्टेडियम में अस्थायी दो मीटर ऊंचा टॉर्च जलाया। चार हेलसिंकी फ़ुटबॉल खिलाड़ी तब फ्लेम को स्टेडियम के टॉवर के शीर्ष पर ले गए, जहां एक अन्य प्रसिद्ध धावक हेंस कोलेहमैन ने मुख्य कॉउल्ड्रॉन को जलाया।
मैप ऑफ़ द रूट
तथ्य और आंकड़े
आरंभ तिथि: 25 जून 1952, ओलंपिया (ग्रीस)
अंतिम तिथि: 19 जुलाई 1952, ओलंपिक स्टेडियम, हेलसिंकी (फिनलैंड)
पहला टॉर्चबियरर: क्रिस्टोस पनागोपोलोस
अंतिम टॉर्चर: हेंसे कोलेमेनेन, एथलेटिक्स में ओलंपिक में भा लेने वाले (1912, 1920, 1924), स्टॉकहोम 1912 में तीन बार स्वर्ण पदक विजेता और एंटवर्पर्स 1920 में स्वर्ण पदक विजेता।
टार्चर की संख्या: 3,042: ग्रीस में 342, डेनमार्क में 650, स्वीडन में 700, फिनलैंड में 1,350।
दूरी: 7,492 किमी (गैर-ओलंपिक रिले को छोड़कर): ग्रीस में 342 किमी, डेनमार्क में 505 किमी (नाव से 55 किमी कोपेनहेगन-माल्मो लेग सहित), स्वीडन में 2,392 किमी, फिनलैंड में 1,128 किमी, 3,125 किमी एथेंस-ऑल्बॉर्ग तक उड़ान से दूरी तय की गई।
देशों का दौरा: ग्रीस, डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड
मशाल का विवरण
विवरण: ऊपरी धातु के हिस्से पर, XV Olympia Helsinki 1952” और “Helsinki Helsingfors”लिखा हुआ था। ओलंपिक के रिंग बने हुए थे। उसके नीचे का भाग सन्टी लकड़ी से बना था।
रंग: भूरा, चांदी, बेज
ऊंचाई: 59 सेमी
रचना: चांदी, धातु, लकड़ी
ईंधन: तरल गैस, कार्टेज के जलने का समय कम से कम 21 मिनट है।
डिजाइनर / निर्माता: औकुस्ती तुह्का / कुल्टाकेसकुस ओए
क्या आप जानते हैं?
मशाल का ईंधन जल्दी से बदला जा सकता था। इस वजह से आयोजकों ने सिर्फ 22 मशालों और 1,600 कार्टेज को बनवाया था। रास्ते में मशाल का फिर से उपयोग किया गया।
जमीन से ऊपर ओलंपिक स्टेडियम टॉवर 72 मीटर की ऊंचाई पर 1.5 मीटर चौड़ी और 4 मीटर तक ऊंची लौ जलती थी।
1952 में हेलसिंकी में खेलों के लिए रिले को पहली बार विमान से ले जाया गया था। पहली यात्रा एथेंस से ऑलबर्ग के हुई थी। इसे एक सुरक्षित लैंप में रखा गया था।
6 जुलाई 1952 को लैपलैंड के पल्लास्टंटुरी फ़ॉल्स में एक गैर-ओलंपिक रिले की शुरूआत हुई। इसमें एक ऐसे लौ का उपयोग किया जो कि आधी रात में सूर्य की किरणों से जलाया गया था। स्वीडन से सटे सीमावर्ती शहर तोरणियो में 378 किमी से अधिक दूरी के 330 धावक इसे ले कर गए। 8 जुलाई को ये ओलंपिक मशाल रिले फ्लेम के साथ मिला दिया गया। जिसे एंटवर्प 1920 में डिस्कस ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता और लॉस एंजेलिस 1932 में हैमर प्रतियोगिता में रजत पदक विजेता इसे लेकर फिनलैंड लेकर पहुंचे। दोनों आग की लपटों को एक साथ मिलाया गया, जो खेलों में दक्षिणी और उत्तरी देशों के एक साथ आने का प्रतीक है।
1952
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द ब्रांड
ओलंपिक खेलों के प्रत्येक संस्करण के पहचान के रूप में प्रतीक बनाई जाती है।ब्रांड
पदक
ओलिव व्रिथ से शुरुआत करने के बाद हम उस सदी में पहुंचे जहां पदक डिजाइन होते हैं।पदक
द टॉर्च
प्रत्येक मेजबान अपना अनूठा संस्करण पेश करता है, जो ओलंपिक खेलों का एक प्रतिष्ठित हिस्सा माना जाता है।टॉर्च