विजय कुमार ने राठौर के ओलंपिक मेडल को बताया भारतीय शूटिंग की सफलता की नींव 

राज्यवर्धन सिंह राठौर की तरह ही विजय कुमार ने भी अपनी विजय गाथा की शुरुआत भारतीय आर्मी में रहकर की।

4 मिनटद्वारा जतिन ऋषि राज
लंदन 2012 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल पोडियम (बाएं से दाएं): रनर-अप विजय कुमार, विजेता लेउरिस पुपो, तीसरा स्थान डिंग फेंग
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भारतीय शूटर विजय कुमार (Vijay Kumar) का मानना है कि 2004 एथेंस ओलंपिक गेम्स में राज्यवर्धन सिंह राठौर (Rajyavardhan Singh Rathore) द्वारा जीते गए मेडल ने भारतीय शूटिंग के भविष्य को उज्जवल कर दिया। ये वह दौर था जब शूटिंग के खेल ने भारत में अपनी पकड़ बनानी शुरू की थी और आज इस खेल को बाकी ही खेलों जितना सम्मान दिया जाता है।

फेसबुक पेज ‘द मेडल ऑफ़ ग्लोरी’ शो के दौरान विजय कुमार ने कहा “एथेंस 2004 में कर्नल राज्यवर्धन द्वारा जीता हुआ सिल्वर मेडल भारत के लिए शूटिंग का पहला व्यक्तिगत मेडल साबित हुआ। उन्हीं से प्रेरणा बाकी खिलाड़ियों में भी शूटिंग में मेडल जीतने की आस जग गई। इसी वजह से भारतीय शूटरों ने ज़्यादा मेहनत करना शुरू कर दिया था नतीजन हमने और भी मेडल जीते।”

राठौर का सिल्वर मेडल केवल शूटिंग में भारत के लिए पहला व्यक्तिगत मेडल ही नहीं साबित हुआ बल्कि ओलंपिक इतिहास में भारत द्वारा जीता हुआ ये पहला सिल्वर मेडल बन गया।

इस कीर्तिमान से पहले भारत की झोली में व्यक्तिगत तौर पर तीन ब्रॉन्ज़ मेडल थे और उन्हें केडी जाधव (KD Jadhav) ने रेसलिंग (1952), लिएंडर पेस Leander Paes (1996) ने टेनिस और कर्णम मल्लेश्वरी (Karnam Malleswari) (2000) ने वेटलिफिटंग में जीता था। यह कहना गलत नहीं होगा कि एथेंस ने भारतीय शूटिंग की नींव रखी थी और इसके बाद अगले तीन संस्करणों में भारत ने कुल 11 व्यक्तिगत मेडल अपने नाम किए और इनमे तीन शूटिंग में आए थे।

ग़ौरतलब है कि इसमें अभिवन बिंद्रा ( Abhinav Bindra) का एतिहासिक गोल्ड भी शामिल है जो उन्होंने 2008 में जीता था। इनके अलावा विजय कुमार ने 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल में सिल्वर मेडल पर अपने नाम की मुहर लगाई और गगन नारंग ने 10 मीटर एयर राइफल में ब्रॉन्ज़ मेडल पर निशाना साधा। विजय कुमार और गगन नारंग (Gagan Narang) ने साल 2012 में इस कारनामे को अंजाम दिया था।

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आर्मी का तजुर्बा

राज्यवर्धन सिंह राठौर और विजय कुमार के करियर में एक बात अहम है और वह है कि यह दोनों ही दिग्गज इंडियन आर्मी का हिस्सा रह चुके हैं और इस वजह से इनके खेल में बेहतरी देखी गई। मध्यम परिवार से ताल्लुक रखने वाले विजय की दिलचस्पी शूटिंग में तब आई जब वे आर्मी का हिस्सा बन चुके थे और देखते ही देखते उन्होंने इस खेल को अपनाया और दुनिया भर में अपना और देश का नाम रोशन किया।

इस दिग्गज ने आगे बताया “मैं भाग्यशाली रहा कि आर्मी के दौरान मुझे शूटिंग करने का मौका मिला और साथ ही इस खेल में आगे बढ़ने का बढ़ावा और सपोर्ट भी। आर्मी में आपको शारीरिक ट्रेनिंग, वेपन ट्रेनिंग जैसी चीज़ें करनी होती हैं। आप कह सकते हैं कि इन सभी चीज़ों को करने का हुनर मुझमे प्राकृतिक था और इसे मैंने आर्मी के दिनों के दौरान और ज़्यादा मज़बूत बनाना शुरू कर दिया। आर्मी के ट्रेनरों ने मुझे बढ़ावा दिया और इससे जुड़ी चीज़ें मोहैया कराई।”

सपोर्ट सिस्टम का सहयोग महत्वपूर्ण

विजय कुमार की विजय गाथा में केवल आर्मी का ही योगदान नहीं है बल्कि इस खिलाड़ी का मानना है कि सिस्टम ने भी इनका साथ बखूबी निभाया। इस दिग्गज शूटर ने आगे कहा “फ़ाउंडर द्वारा, कोच द्वारा और ट्रेनिंग पार्टनर द्वारा मिले सहयोग ने मदद की। उनका नाम लेना आवश्यक है क्योंकि किसी भी खिलाड़ी के जीवन में सभी जगह से मिला हुआ सहयोग अहम होता है।

ओलंपिक गेम्स में विजय कुमार की विजय गाथा

विजय कुमार की उपलब्धियों की बात की जाए तो कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) ISSF वर्ल्ड शूटिंग चैंपियनशिप और एशियन गेम्स (Asian Games) जैसी बड़ी स्तर की प्रतियोगिताओं में भी उन्होंने काफी नाम कमाया है। किसी भी एथलीट के तौर पर विजय कुमार के लिए भी ओलंपिक गेम्स में जीता हुआ उनका मेडल सबसे ख़ास है।विजय कुमार ने आगे कहा “आपको ओलंपिक में खेलने के लिए कड़ी मेहनत करनी होती है। खेल की दुनिया में यह सबसे बड़ा है और हर खिलाड़ी इसका हिस्सा होना चाहता है। मैंने इसमें मुश्किल कदम उठाए हैं और सफलता हासिल की है।”

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