साइना नेहवाल के करियर के सर्वश्रेष्ठ मैच, सही मायने में ये उनके करियर को करते हैं परिभाषित

पूर्व विश्व नंबर-1 और ओलंपिक कांस्य पदक विजेता साइना नेहवाल के कुछ बेहद ही यादगार मैच हैं, जिनमें से एक राष्ट्रमंडल खेलों में पीवी सिंधु के ख़िलाफ़ जीत भी शामिल है।

7 मिनटद्वारा रितेश जायसवाल
2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में पीवी सिंधु पर जीत का जश्न मनाते हुए साइना नेहवाल
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भारतीय बैडमिंटन के लिए आदर्श बन चुकी साइना नेहवाल ने बीते कई वर्षों में भारतीय प्रशंसकों को कुछ यादगारों पलों का आनंद लेने का मौका दिया है।

लंदन 2012 ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने और बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन रैंकिंग में नंबर-1 पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला एकल खिलाड़ी बनने के अलावा हैदराबाद की यह बैडमिंटन खिलाड़ी कुछ अविस्मरणीय मैचों की नायिका रही हैं।

यहां हम उनके करियर के दौरान बैडमिंटन कोर्ट पर किए गए कुछ सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों के ख़ास पलों पर आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं।

साइना नेहवाल की शानदार जीत: 2006 फ़िलीपींस ओपन क्वार्टर-फ़ाइनल

साइना नेहवाल के करियर में साल 2006 काफी सफल साबित हुआ था।

उन्होंने राष्ट्रीय टीम के कोच विमल कुमार के नेतृत्व में 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और उस वर्ष अंडर-19 नेशनल चैंपियनशिप भी जीती।

लेकिन इस साल फिलीपींस ओपन में उनकी जीत ने ख़ासतौर पर सभी का ध्यान आकर्षित किया। इस सफलता के बाद वह उस समय चार-सितारा बैडमिंटन प्रतियोगिता जीतने वाली सबसे कम उम्र की एशियाई खिलाड़ी बन गईं।

उस समय 16 साल की साइना नेहवाल ने इस टूर्नामेंट में कई प्रतिद्वंदियों के खिलाफ जीत दर्ज की, लेकिन उनकी सबसे बड़ी जीत उस समय की शीर्ष वरीयता प्राप्त और विश्व नंबर-4 खिलाड़ी जू हुइवेन के खिलाफ रही।

चीन में जन्मी इस जर्मन खिलाड़ी के खिलाफ पहले गेम में नेहवाल 21-12 से हार गईं थीं, लेकिन अगले दो गेम 21-17, 21-17 से जीतकर साइना नेहवाल ने शानदार वापसी की और क्वार्टर-फाइनल के इस मैच में जू के प्रशंसकों को बड़ा झटका दिया था।

साइना नेहवाल के कोच और ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप के विजेता पुलेला गोपीचंद ने मनीला में उनकी इस जीत को आने वाले भारतीय शटलरों के लिए सही प्रेरणा बतया था।

गोपीचंद ने कहा था, “उनकी जीत युवाओं को प्रेरणा देने का काम करेगी और दुनिया के शीर्ष खिलाड़ियों का सामना बिना किसी डर के करने का आत्मविश्वास देगी।

मैच का परिणाम: साइना नेहवाल ने जू हुईवेन को 12-21, 21-17, 21-17 से हराया।

करियर के पहले ओलंपिक में टूटा दिल: बीजिंग 2008 क्वार्टर-फ़ाइनल

साइना नेहवाल 18 साल की उम्र में अपने पहले ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने जा रहीं थीं।

उन्होंने कुछ अविश्वसनीय प्रदर्शनों के दम पर क्वार्टर-फाइनल में जगह बना ली, इस दौरान नेहवाल ने पूर्व एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता वांग चेन को भी हराया।

क्वार्टर-फाइनल में उन्होंने इंडोनेशिया की मारिया क्रिस्टिन युलिआंति का सामना किया, जो कि उनसे पांच साल सीनियर थीं।

पहला गेम कांटे की टक्कर वाला रहा। युलिआंति ने अच्छी शुरुआती की, लेकिन साइना नेहवाल ने गेम में वापसी करने के लिए लगातर सात अंक बटोर लिए और और अंत में बढ़त बना ली।

भारतीय ने एक गेम प्वाइंट हासिल किया, लेकिन काफी लम्बी मैराथन के बाद 28-26 से पहला गेम जीत लिया।

नेहवाल को दूसरे गेम में 21-14 से हराकर युलिआंति ने बराबरी कर ली।

तीसरे गेम में साइना नेहवाल ने शानदार अटैकिंग प्रदर्शन के बाद 11-3 की बढ़त बना ली, लेकिन जल्द ही बाजी पलट गई और थकावट ने उनकी लय को बाधित कर दिया। युलिनाती ने इसका पूरा फायदा उठाया और गेम 21-15 से जीतकर मैच को अपने नाम कर लिया।

इस हार के बाद बात करते हुए युवा साइना ने कहा, “मुझे नहीं पता कि क्या हुआ। शायद मैंने बहुत ग़लतियाँ की। मैं अगली बार ज्यादा तैयार रहूंगी। अब मुझे पहले से ज्यादा अनुभव है।”

उन्होंने अपने वादे को चार साल बाद लंदन के ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीतकर पूरा किया, लेकिन वह बीजिंग ओलंपिक खेलों से बाहर होने को कभी नहीं भुला पाईं।

उन्होंने इस जीत के बाद कहा, मैं बहुत खुश हूं कि मैंने पदक जीता, लेकिन मैं उस मैच (बीजिंग) को नहीं भूल सकती। उसे भूलना बहुत मुश्किल है, क्योंकि मैं अपने पहले प्रयास में ही सेमी-फाइनल तक पहुंच सकती थी और मैंने इस मौके को खो दिया।”

मैच का परिणाम: साइना नेहवाल 28-26, 14-21, 15-21 से मारिया क्रिस्टिन यूलिआंति से हार गईं।

संघर्ष की लड़ाई: 2012 इंडोनेशिया ओपन क्वार्टर-फ़ाइनल

उसी इवेंट में और उसी स्थान पर तीन साल बाद साइना ने फिर इतिहास रचने का काम किया।

जकार्ता के इस्तोरा सेनावन में अपना तीसरा खिताब हासिल करने का रास्ता तय करने के दौरान साइना नेहवाल ने क्वार्टर-फाइनल में एक और चीनी शीर्ष शटलर वांग शिक्सियन के खिलाफ जीत हासिल की थी।

साइना नेहवाल के पति और साथी भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पारुपल्ली कश्यप ने बाद में खुलासा करते हुए कहा, "यह साइना के करियर में सबसे दिलचस्प मैच था।"

इस वर्ष की शुरुआत में स्विस ओपन और थाईलैंड ओपन जीतने के बाद साइना नेहवाल इस टूर्नामेंट में अपनी शानदार फॉर्म में थीं। यह इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि लंदन में होने वाले 2012 ओलंपिक खेलों से पहले यह आखिरी बड़ा टूर्नामेंट था।

शीर्ष रैंक वाली चीनी शटलर के खिलाफ 97 मिनट के इस मुकाबले में साइना नेहवाल ने पहला गेम 21-17 से अपने नाम कर लिया, लेकिन दूसरे गेम में वह 23-21 से पीछे हो गईं।

साइना नेहवाल ने तीसरे गेम को 21-19 से जीतने के लिए अपनी प्रतिद्वंदी को कड़ी टक्कर दी और यह मुकाबला वास्तव में काफी लम्बी रैलियों वाला रहा।

कश्यप ने याद करते हुए कहा, "दोनों के खेलने की शैली समान थी, कांटे की टक्कर चल रही थी। दोनों का कोई भी जीत वाला फिनिशिंग शॉट नहीं था। वे दोनों तब तक लड़ते रहे जब तक किसी ने दम नहीं तोड़ दिया। मैं उन्हें देखकर हैरान रह गया था।”

मैच का परिणाम: साइना नेहवाल ने वांग शिक्सियन को 21-17, 21-23, 21-19 से हराया।

“कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 और 2018 स्वर्ण पदक मैच

साइना नेहवाल ने राष्ट्रमंडल खेल 2010 और 2018 दोनों ही संस्करणों में स्वर्ण पदक जीता।

दोनों के ही फाइनल मैच आपका दिल थामने की कुव्वत रखते हैं।

2010 के फाइनल में साइना नेहवाल ने नई दिल्ली में मलेशिया के मेव चू वोंग के खिलाफ खेला।

वह शुरुआत में अपनी फॉर्म को बरकरार रखने में नाकामयाब रहीं और पहला गेम 21-19 से हार गई और दूसरे गेम में 20-21 से पीछे थीं।

एक मैच प्वाइंट पर अपने प्रतिद्वंदी के साथ साइना नेहवाल ने शानदार वापसी की और वोंग को ऐसा लगा कि शटल बाहर जा रही है। हालांकि, शटल बाहरी रेखा के अंदर ही गिर गई।

सानिया ने इसका पूरा फायदा उठाया और अगले दो अंक हासिल कर दूसरा गेम 23-21 से अपने नाम कर लिया। इससे बाद तीसरे गेम में 21-13 से जीतकर उन्होंने स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया।

उन्होंने कहा, "यह मेरे करियर का सबसे कठिन मैच था। यह मेरे लिए एक बड़ी परीक्षा थी क्योंकि मैंनें कभी भी मैच प्वाइंट डाउन करके जीत हासिल नहीं की थी। लेकिन मुझे खुशी है कि मैं अपनी घरेलू सरज़मी पर प्रशंसकों के सामने अपने देश के लिए जीत हासिल कर सकी।"
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2018 के राष्ट्रमंडल खेलों में तेजी से आगे बढ़ते हुए भारतीय बैडमिंटन प्रशंसकों के लिए यह फाइनल मैच रोमांचक हो गया, क्योंकि यह साइना नेहवाल और पीवी सिंधु के बीच हुआ।

ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में हुए इस फाइनल मैच में पीवी सिंधु रियो 2016 में रजत और 2017 में विश्व चैंपियनशिप रजत पदक जीतकर आत्मविश्वास से भरी हुईं थीं। वह भी धीरे-धीरे साइना नेहवाल के साथ भारतीय बैडमिंटन को आगे बढ़ाने की टॉर्च-बियरर के रूप में उभर रहीं थीं।

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साइना नेहवाल ने पहला गेम 21-18 से अपने नाम किया, लेकिन दूसरे में सिंधु के आक्रामक अंदाज़ ने बाज़ी को पलट दिया और उन्होंने ब्रेक तक 11-8 की बढ़त बना ली। हालांकि, इस कड़े मुकाबले के बाद भी साइना ने दूसरा गेम 23-21 से अपने नाम कर लिया।

2016 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित की गई साइना नेहवाल ने कहा, “मैं इसे अपने ओलंपिक पदक और वर्ल्ड नंबर-1 रैंकिंग (महत्व के संदर्भ में) के साथ देखती हूं। तो मैं इसे वहीं रखूंगी।”

मैच के परिणाम: साइना नेहवाल ने पीवी सिंधु को 21-18, 23-21 से हराया।

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