पीवी रमण, विजया: पीवी सिंधु की सफलता के सफ़र के दो मज़बूत स्तम्भ

एक एथलीट के घर में जन्मी भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु को एक ऐसे परिवार का साथ मिला जिसने एथलीट की शुरुआती जरूरतों को समझते हुए उन्हें आगे बढ़ाया।

5 मिनटद्वारा रितेश जायसवाल
PV Sindhu parents
(PV Sindhu / Instagram)

भारत की सबसे सफल बैडमिंटन खिलाड़ियों में से एक पीवी सिंधु का पूरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है। उन्होंने अपनी उपलब्धियों से इस खेल को देश में नई ऊंचाइयों तक ले जाने में मदद की है।

रियो 2016 में उनके ओलंपिक रजत पदक और बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप में हासिल किए गए पदक ने उन्हें देश में इस खेल के नए स्तर पर पहुंचा दिया।

हालांकि, उनकी इन उपलब्धियों का श्रेय उन्हें लंबे समय से प्रशिक्षण दे रहे कोच पुलेला गोपीचंद के समर्थन और योगदान को भी जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को ही इस बात की जानकारी होगी कि पीवी सिंधु के माता-पिता के समर्पण और प्रयासों ने ही उन्हें इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।

पीवी सिंधु के रगो में दौड़ता है खेल

पूरी दुनिया भले ही आज पीवी रमण को शीर्ष भारतीय शटलर पीवी सिंधु के पिता के रूप में जानती है, लेकिन एक पीढ़ी पहले वह आंध्र प्रदेश के एक बेहतरीन स्पाइकर थे। जिन्होंने भारतीय वॉलीबॉल टीम को उसके बुरे दिनों में कई सफलताओं को हासिल करने में मदद की।

वह एक बहुत ही विनम्र और बड़े परिवार से ताल्लुक़ रखते हैं, लेकिन उन्हें यह सब अपने पिता के बिना ही करना पड़ा। क्योंकि उनके पिता उनके बचपन में ही गुजर गए थे।

सिकंदराबाद में भारतीय रेलवे के एक कर्मचारी के तौर पर कार्यरत 6 फुट 3 इंच के पीवी रमण ने 1984 के एशियन जूनियर वॉलीबॉल चैंपियनशिप में 20 साल की उम्र पहली बार भारत के लिए वॉलीबॉल खेला था। उन्हें यह मौका उनके कॉलेज के दिनों से शुरू होने वाले जूनियर सर्किट में अपने खेल प्रदर्शन से प्रभावित करने के बाद मिला।

अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में तीन साल बिताने की वजह से उन्हें भारतीय वॉलीबॉल टीम के महान खिलाड़ियों जैसे जिमी जॉर्ज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेलने का मौका मिला। उन्होंने उस टीम में एक ब्लॉकर की भूमिका निभाई, जिसने भारत के लिए 1986 के एशियाई खेलों में कांस्य पदक हासिल किया।

प्रतिस्पर्धा और प्रशिक्षण के दौरान भले ही रमण को अपने खेल के दिनों में व्यस्त रखा हो, लेकिन यह उन्हें अपनी बेटी को सफलता के मार्ग में आगे बढ़ाने में मदद करने से कभी नहीं रोक सका।

वास्तव में उन्हें भारतीय वॉलीबॉल टीम के लिए कोच की भूमिका की पेशकश भी की गई थी, लेकिन उनकी प्राथमिकता हमेशा उनकी बेटी का भविष्य ही रहा।

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Happy fathers day dad☺️😘

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पीवी सिंधु के करियर के शुरुआती दिनों में पिता-पुत्री की यह जोड़ी रोज़ाना दिन में दो बार मारेडपल्ली में उनके घर से कुछ 30 किलोमीटर का सफर तय कर गाचीबोवली में स्थित बैडमिंटन अकादमी जाती थी। उनके पिता हमेशा यह कोशिश करते थे कि कभी भी पीवी सिंधु की ट्रेनिंग न छूटे।

बीते कई वर्षों में रमण किसी न किसी रूप में पीवी सिंधु की टीम का एक जरूरी हिस्सा रहे हैं।

आज के समय कि बात करें तो यह पिता अपनी बेटी के खेल को काफी अच्छी तरह से समझता है। यही वजह है कि उनके 2019 BWF विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के अभियान में रमण खुद उनके कंडीशनिंग और स्ट्रेंथ कोच बन गए थे। यह कुछ ऐसा था जिसने पीवी सिंधु को आगे बढ़ाने में काफी मदद की थी।

सिंधु के कोच पुलेला गोपीचंद और किम जी ह्यून के प्लान पर काम करने के बाद रमण ने तेलंगाना टुडे से बात करते हुए कहा, “यह बेहद जरूरी था और अन्य कोई विकल्प नहीं था।”

पीवी सिंधु ने अपना पहला विश्व खिताब जीता, और भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी ने भी इस बात को स्वीकार किया कि एक एथलीट के सफर को समझने वाले परिवार ने उन्हें आगे बढ़ने में कई तरीकों से मदद की है।

पीवी सिंधु ने हाल ही में एक वेबिनार में अपने अल्फाज़ साझा करते हुए कहा, "माता-पिता एक एथलीट की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, क्योंकि वे एक बच्चे के मन को दूसरों से बेहतर समझते हैं। मैं अपने पिता के साथ अपने और अन्य खिलाड़ियों के मैच देखने और उनके खिलाफ रणनीति तौयार करने में बहुत समय बिताती हूं।"

सिंधु की मां विजया का उनके करियर में योगदान

जहां पीवी सिंधु के पिता उनके करियर के शुरुआती दिनों से उनके साथी रहे हैं, वहीं उनकी मां विजया ने हमेशा यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि उनकी बेटी को मानसिक और शारीरिक दोनों तौर पर बड़े होने के लिए एक सही माहौल मिले।

उनके पिता की तरह पीवी सिंधु की मां भी एक वॉलीबॉल खिलाड़ी थीं, जिन्होंने अपने करियर के दिनों में प्रसिद्ध रेलवे टीम का प्रतिनिधित्व किया था और चेन्नई से होने के बावजूद इस खेल की वजह से ही दोनों की मुलाकात हुई थी।

दोनों ने अक्सर अंतर-रेलवे और अखिल भारतीय टूर्नामेंट में एक साथ हिस्सा लिया और 1986 के एशियाई खेलों के तुरंत बाद शादी कर ली।

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Mommy❤️❤️

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हालांकि विजया खेल में उन ऊंचाइयों तक नहीं पहुंच सकीं, जहां तक उनके पति पहुंचने में कामयाब रहे। लेकिन उन्होंने कभी इस बात को लेकर कोई शिकायत नहीं की।

पीवी सिंधु के करियर में उनकी मदद करने के लिए उन्होंने भारतीय रेलवे की अपनी नौकरी से वॉलेंटरी रिटायरमेंट ले लिया। विजया हमेशा अपनी बेटी की जरूरत के समय में चट्टान की तरह खड़ी रहीं।

विजया हमेशा अपनी बेटी का पक्ष लेती रही हैं और भगवान से प्रार्थना करती हैं कि कोर्ट के अंदर और बाहर उन्हें हमेशा सफलता मिले।

हालांकि, विजया जिस बात पर गर्व करती हैं वह यह है कि महिला एथलीटों के प्रति अब समाज का नज़रिया बदला है।

न्यूज़ 18 की वेबसाइट से बात करते हुए उन्होंने कहा, “जब मैं बड़ी हो रही थी, तो उस दौरान लड़कियों को बाहर जाकर खेलने की इजाज़त नहीं थी। अधिकतर खेलने की अनुमति लेना काफी मुश्किल काम हुआ करता था। हमेशा यही डर होता था कि पड़ोसी कहेंगे, 'वह बाहर क्यों जा रही है और पढ़ाई के दौरान खेल क्यों रही है?"

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि अगस्त 2019 में पीवी सिंधु ने विश्व चैंपियन बनने के बाद अपना यह खिताब अपनी मां को समर्पित करने के लिए क्यों चुना।

भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी ने स्पोर्टस्टार वेबसाइट से बात करते हुए कहा, "मेरी मां की भूमिका को तोला और मापा नहीं जा सकता है। सीधे शब्दों में कहें तो अगर वह नहीं होतीं, तो मेरा करियर भी ऐसा नहीं होता।”

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