ओलंपिक में बास्केटबॉल का इतिहास: अमेरिकी वर्चस्व की रोचक दास्तां

इस खेल को दुनिया के सामने पेश करने के बाद से इसमें कोई दो राय नहीं है कि यूएसए ने ओलंपिक बास्केटबॉल इतिहास में कई बेहतरीन लम्हें दिए हैं, जिसमें ड्रीम टीम भी शामिल है।

8 मिनटद्वारा मनोज तिवारी
The USA have dominated the Olympics basketball winners list.
(Getty Images)

साल 1891 में बास्केटबॉल खेल को अमेरिका ने जन्म दिया था। लेकिन इस खेल को लोकप्रिय होने में ज्यादा समय नहीं लगा। आज यह दुनिया में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले खेलों में से एक बन गया है।

इस खेल की जड़ों की ओर रुख करें तो ये स्प्रिंगफील्ड, मैसाचुसेट्स में एक जिम क्लास में पहली बार देखा गया था। एक पेशेवर खेल में विकसित होने से पहले हाई स्कूल और कॉलेजों में इसने अपना सफर तय किया। लेकिन, आख़िरकार इसने खेल के सबसे भव्य आयोजनों में भी अपनी जगह बना ली।

3x3 बास्केटबॉल ने टोक्यो 2020 में अपना ओलंपिक डेब्यू किया था।

ओलंपिक बास्केटबॉल के लिए कौन क्वालीफाई करता?

पुरुषों और महिलाओं की प्रतियोगिता में कुल 12 टीमें, ओलंपिक खेलों में बास्केटबॉल स्पर्धा के लिए क्वालीफाई करती हैं।

सात टीमें FIBA विश्व कप के माध्यम से क्वालीफाई कर सकती हैं, चार स्थान FIBA ओलंपिक क्वालीफाइंग टूर्नामेंट के माध्यम से निर्धारित किए जाते हैं। जबकि, बचा हुआ एक स्थान मेज़बान देश के लिए रिजर्व होता है।

बास्केटबॉल में किस देश ने सबसे अधिक ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते हैं?

ओलंपिक बास्केटबॉल के इतिहास की बात करें तो अमेरिका सबसे सफल टीम है।

ओलंपिक में यूएसए की पुरुष बास्केटबॉल टीम ने सबसे अधिक 16 स्वर्ण पदक जीते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका की टीम साल 1936 से 1968 तक अजेय भी रही थी।

वहीं, अमेरिका की महिला बास्केटबॉल टीम भी पीछे नहीं है, उन्होंने 9 बार स्वर्ण पदक जीता है। इस दौरान टीम अटलांटा 1996 से अब तक अजेय है। 

ओलंपिक बास्केटबॉल में यूएसए का दबदबा

1800 के दशक के अंत में इस खेल का आविष्कार करने के बाद से यूएसए बास्केटबॉल टीम ने साल 1936 के ओलंपिक में मेडल इवेंट में शामिल होने के बाद से इस खेल में हावी रहा है।

यंग मेंस क्रिश्चियन एसोसिएशन (YMCA) ने इस खेल को अलग-अलग देशों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बर्लिन 1936 खेलों में 21 टीमों ने शीर्ष पदक के लिए प्रतिस्पर्धा किया।

लेकिन अमेरिका को कोई भी चुनौती नहीं दे सका, क्योंकि उन्होंने अपने प्रत्येक मैच में शानदार जीत हासिल करते हुए स्वर्ण पदक पदक अपने नाम किया।

समय बीतता गया और अमेरिकी टीम बास्केटबॉल में और मजबूत होती गयी, क्योंकि उन्होंने कमांडिंग फैशन में ओलंपिक खिताब बरकरार रखा। अपने सभी अभियान में उन्हें कभी कोई दिक्कत नहीं हुई और खासकर स्वर्ण पदक मुकाबले में उनको कोई टक्कर नहीं दे सका।

साल 1948 के खेलों के फाइनल मुकाबले में यूएसए बास्केटबॉल टीम ने फ्रांस को 65-21 से हराया। इस बीच सोवियत संघ को चार संस्करणों - 1952, 1956, 1960 और 1964 में अमेरिकियों से हार का सामना करना पड़ा और चैंपियन ने टीम अपने खिताब को बरकरार रखा।

इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल परिदृश्य में सोवियत संघ भी मजबूत टीम बनकर उभरी।

सोवियत ने साल 1951 से 1971 के बीच हर दो साल पर आयोजित होने वाली यूरोपीय बास्केटबॉल चैंपियनशिप का खिताब 10 बार अपने नाम किया और 1972 में FIBA वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब जीतकर कॉन्टिनेंटल स्टेज पर अपनी एक अलग पहचान बनाई।

वहीं, 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में सोवियत टीम का लक्ष्य बास्केटबॉल गोल्ड जीतना ही एकमात्र सपना था।

म्यूनिख ओलंपिक में USA को लगा झटका

म्यूनिख ओलंपिक में अमेरिकी टीम गोल्ड की प्रबल दावेदार थी। लेकिन इसका परिणाम बिल्कुल उल्टा हुआ।

वे 1970 विश्व विश्वविद्यालय खेलों के फाइनल में सोवियत संघ से हार गए थे और 1971 के पैन अमेरिकी खेलों में बिना पदक के ही बाहर हो गए थे।

इस दौरान उनकी टीम की सबसे बड़ी कमजोरी ये रही कि उनके पास अंतरराष्ट्रीय अनुभव की कमी थी। ओलंपिक प्रतियोगिता को अमेच्योर खेलों में शामिल होने पर प्रतिबंधित किए जाने के कारण अमेरिका में सर्वश्रेष्ठ हूपस्टर्स को ओलंपिक टीम से बाहर रखा गया था। क्योंकि वे सभी खिलाड़ी एनबीए में खेलने के समर्थन में थे।

हालांकि बीते संस्करणों में अमेरिका के पक्ष में ये सारी बातें रहती थीं, लेकिन इस बार सोवियत संघ ने अपने खिलाड़ियों को अमेरिकी टीम की कमजोरी का फायदा उठाने का एक तरीका खोजा था। जिससे उन्हें अमेच्योर नियमों का उल्लंघन करने की अनुमति मिली।

इसका मतलब यह था कि USA में हाई स्कूल के छात्र डग कॉलिन्स और उत्तरी कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के टॉमी बर्लसन उनके सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे, तब सोवियत संघ की टीम अनुभवी खिलाड़ी सर्गेई बेलोव, मोडेस्टस पॉलौस्कस और अलेक्जेंडर बेलोव से सजी थी।

हालांकि USA को गोल्ड मेडल मैच खेलने से पहले अनुभव की कमी का ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।

बिना एक भी मैच हारे USA ने गोल्ड मेडल मुकाबले में जगह बनाई, फाइनल में एक करीबी मुकाबला होने की उम्मीद थी। लेकिन सोवियत संघ अपनी एक अलग योजना के साथ उतरा था।

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सोवियत संघ की बास्केटबॉल टीम ने स्मार्ट बॉल प्ले के साथ मैच को अपने नियंत्रण में रखा। अक्सर कोर्ट की लंबाई का उपयोग करके अमेरिकी डिफेंस अंक हासिल करते थे। सोवियत संघ ने पहला अंक हासिल किया और हाफ टाइम तक स्कोर 26-21 के साथ उनके पक्ष में रहा।

न्यूयॉर्क टाइम्स से बात करते हुए माइक बैंटम, '72 टीम के सदस्य, जो अब एनबीए प्लेयर डेवल्पमेंट के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट हैं ने बताया, "हम विशेष रूप से रूसियों के खिलाफ संघर्ष करते दिखे क्योंकि वे गति को नियंत्रित करने में माहिर थे।"

खेल के आखिरी छह मिनट पहले अमेरिका ने वापसी की, लेकिन इससे रूस को किसी प्रकार की मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा।

आठ अंकों से पीछे चल रहे अमेरिकियों ने दबाव डाला और सोवियत संघ लड़खड़ाती नजर आयी। घड़ी में महज़ छह सेकेंड ही बचे थे और उन्हें इस अंतर को कम करने के लिए एक अंक की दरकार थी।

गोल्ड मेडल के लिए डग कॉलिन्स अपनी टीम के प्रमुख खिलाड़ियों में से एक थे। एक फाउल का मतलब था कि अमेरिकियों को मैच को सील करने के लिए दो फ्री थ्रो दिए गए। जबकि कोलिन्स ने अपनी टीम को आगे रखने के लिए दोनों फ्री को गंवा दिया और सोवियत ने टाइम-आउट लेने का फैसला किया।

कुछ सेकेंड बचा था और खेल दोबारा आरंभ हुआ, अमेरिकी खिलाड़ियों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी।

कुछ ही क्षण भर बाद FIBA अध्यक्ष कोर्ट में आए और उन्हें आखिरी तीन सेकेंड को रेफरी की गलती बताते हुए उसे दोबारा पूरा करने को कहा।

इस बार सोवियत संघ ने सुनिश्चित किया कि उन्हें इस अवसर कोा भरपूर फायदा उठाना है, अलेक्जेंडर बेलोव ने बाजी पलटते हुए अमेरिका को ओलंपिक में पहली हार की ओर धकेल दिया।

अमेरिकी टीम ने इस फैसले के खिलाफ अपील किया, लेकिन उसे ठुकरा दिया गया और इस तरह सोवियत संघ ने ओलंपिक में बास्केटबॉल का पहला स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

ड्रीम टीम

आने वाले वर्षों में कई देशों ने ओलंपिक में अमेच्योर प्लेयर रूल की खामियों का खूब फायदा उठाया और शीर्ष प्रतिभाओं को मैदान में उतारा।

हालांकि 1992 में FIBA द्वारा बार्सिलोना ओलंपिक के लिए पेशेवरों को शामिल करने का निर्णय लिया और चीजें बदल गईं।

इसने USA को सबसे बेहतरीन खेल टीम चुनने की आजादी दी, जो वह पहले करने से चूक रहे थे।

इस टीम में NBA सुपरस्टार माइकल जॉर्डन, लैरी बर्ड, मैजिक जॉनसन, पैट्रिक इविंग, स्कॉटी पिपेन और कार्ल मेलोन जैसे अन्य खिलाड़ी शामिल थे।

दो बार के NBA चैंपियन चक डेली इस ड्रीम टीम के कोच चुने गए, जिसका इवेंट से पहले मोनाको में कैंप लगा था और फिर खेल के दौरान ये टीम बार्सिलोना के एक लक्जरी होटल में ठहरी थी।

ड्रीम टीम ने ओलंपिक प्रतियोगिता में अपना दबदबा बनाया और गोल्ड मेडल जीता। वे हर मैच में 100 अंक हासिल करने वाली पहली टीम थी। जिसको लेकर उनके मुख्य कोच ने कहा, "यह एल्विस और बीटल्स की तरह था।"

हालांकि यह वह विरासत है जिसे टीम ने पीछे छोड़ दिया है, जिसका आज बास्केटबॉल की लोकप्रियता पर स्थायी प्रभाव पड़ा है।

बार्सिलोना 1992 के बाद याओ मिंग और एंड्रिया बरगनानी NBA में विदेशी खिलाड़ी के रूप में सबसे प्रमुख ड्रा रहा। ये दोनों क्रमशः (2002) और (2006) में नंबर एक ड्राफ्ट साबित हुए। इस बीच डर्क नोवित्जकी और जियानिस एंटेटोकोनम्पो ने NBA MBV पुरस्कार भी जीता।

ओलंपिक में महिला बास्केटबॉल

ओलंपिक गेम्स में पुरुष टीम का इतिहास जितना शानदार रहा है, उसी तरह ही महिला बास्केटबॉल का इतिहास भी बेहतरीन है।

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मॉन्ट्रियल में हुए साल 1976 के खेलों में महिला बास्केटबॉल की शुरुआत हुई थी। तब से ओलंपिक में लगातार यह खेल शामिल रहा है।

सोवियत संघ ने 1976 के ओलंपिक खेल के फाइनल में संयुक्त राज्य अमेरिका को हराकर महिला ओलंपिक का ख़िताब का पहला गोल्ड जीता था। जबकि सोवियत संघ ने 1980 में घरेलू मैदान पर हुए ओलंपिक खेलों में अपना ताज बरकरार रखा और उसके बाद के दो ओलंपिक खेलों में अमेरिका ने स्वर्ण पदक हासिल किया।

साल 1992 में पूर्व सोवियत रिपब्लिक की एक एकीकृत टीम ने स्वर्ण पदक मुक़ाबले में चीन को हराया था।

हालांकि अमेरिकियों ने अटलांटा में हुए 1996 के ओलंपिक में दोबारा स्वर्ण पदक जीता और तब से आज तक उनका स्वर्ण पर कब्जा रहा है।

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