ओलंपिक गेम्स के शुरुआती दिनों में भारतीय हॉकी टीम का वर्चस्व किसी कहानी-क़िस्से जैसा ही था।
उन्हें हराना ही किसी टीम के लिए मुश्किल नहीं था, बल्कि भारत के ख़िलाफ़ एक गोल भी करना प्रतिद्वंदी के लिए करिश्मे जैसा था। ज़्यादातर मौक़ों पर तो टीम इंडिया अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ 10 से ज़्यादा गोल से जीत दर्ज करती थी।
लिहाज़ा इसमें कोई आश्चर्य नहीं होता कि भारतीय हॉकी टीम ने लगातार 1928, 1932 और 1936 में लगातार तीन स्वर्ण पदकों के साथ गोल्ड की हैट्रिक लगाई थी और फिर इस सिलसिले को 1948, 1952 और 1956 में भी जारी रखा। 1936 के बाद अगला ओलंपिक 1948 में हुआ था क्योंकि इस बीच वर्ल्ड वॉर-2 की वजह से ओलंपिक को रद्द करना पड़ा था।
6 दिसंबर 1956 को भारतीय हॉकी टीम एक बार फिर अपने उसी वर्चस्व को बरक़रार रखने में क़ामयाब रही थी जब फ़ाइनल में चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को 1-0 से शिकस्त देकर लगातार छठा होल्ड मेडल हासिल किया था। यानी टीम इंडिया के नाम गोल्ड मेडल की डबल हैट्रिक लग चुकी थी।
एक आदर्श हॉकी टीम
इससे पहले भी भारत के लिए दो ओलंपिक खेल चुके बलबीर सिंह सीनियर अब एक दिग्गज बन चुके थे और मेलबर्न 1956 में उन्हें भारतीय हॉकी टीम का कप्तान नियुक्त किया गया था।
भारत को दूसरी हैट्रिक दिलाने वालों में उनके साथ लेसली क्लॉडिस, रणधीर सिंह जेंटल और रंगानाथन फ़्रांसिस शामिल थे, ये सभी अपना तीसरा ओलंपिक खेल रहे थे।
जबकि उधम सिंह, गोविंद पेरुमल और रघबीर लाल अपने दूसरे ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। तो वहीं इस टीम में शंकर लक्ष्मण , गुरदेव सिंह कुल्लर और हरिपाल कौशिक तौर पर कुछ युवा खिलाड़ी भी शामिल थे जिनका ये पहला ओलंपिक था।
मेलबर्न खेल के लिए, भारत के पास अनुभवी विजेता खिलाड़ियों का संगम था, जिन्हें मालूम था कि शीर्ष पर पहुंचने के लिए क्या करना होगा और युवा खिलाड़ी इस खिताबी दौड़ में मुकाबलों को आक्रामकता से खेलेंगे।
मेलबर्न रवाना होने से पहले भारतीय हॉकी टीम ने अंबाला और बॉम्बे में चार अभ्यास मैच खेले, जिनमें से सभी में उम्मीद के मुताबिक जीत हासिल की।
हालांकि, कुछ खिलाड़ियों की चोटें चिंताजनक थीं, ज्यादातर टीम ने फिटनेस टेस्ट पास किया। लेकिन घुटने में परेशानी की वजह से गुरसेवक सिंह एकमात्र ऐसे खिलाड़ी थे, जो ऐसा नहीं कर पाए और वह मेलबर्न में अपना ओलंपिक पदार्पण नहीं कर पाए। उनकी जगह अमित सिंह बख्शी को यह मौका मिला।
हो सकता है कि यह भारत के ओलंपिक सफर में यह छोटा झटका रहा हो, लेकिन वे अपने प्रदर्शन से प्रतिदंवदियों को हैरान करने वाले थे।
ग्रुप स्टेज में रहा था खट्टा-मीठा अनुभव
इस ओलंपिक में कुल 12 हॉकी टीमों ने शिरकत की थी, इन सभी टीमों को तीन-तीन के ग्रुप में बांटा गया था। भारत ग्रुप-ए में शामिल था जहां उनके साथ सिंगापुर, अफ़ग़ानिस्तान और यूनाइटेड स्टेट्स की टीम थी। ये सभी के सभी पांच बार के चैंपियन भारत के सामने टिकती नहीं दिखाई दे रहीं थीं।
ग्रुप स्टेज के सभी मुक़ाबले ओलंपिक पार्क स्टेडियम में खेले गए थे जबकि सेमीफ़ाइनल और फ़ाइनल मैच मशहूर मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंंड (MCG) पर खेला गया था। इसी मैदान पर 1956 ओलंपिक गेम्स का ओपनिंग और क्लोज़िंग समारोह भी हुआ था।
भारत ने अपने ओलंपिक के अभियान का आग़ाज़ अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ किया था, जहां शुरुआत में ही टीम इंडिया ने अपने इरादे साफ़ कर दिए थे। इस एशियाई देश के ख़िलाफ़ भारत ने 14 गोलों के साथ जीत दर्ज की थी।
कप्तान बलबीर सिंह ने इस मैच में पांच गोल किए थे लेकिन उन्हें चोट लग गई थी और उनकी उंगली में फ़्रैक्चर हो गया था, जिसकी वजह से आगे के मैचों में उन्हें बाहर बैठना पड़ा था। भारत के लिए ये किसी झटके से कम नहीं था क्योंकि उनका सबसे बड़ा सितारा बाहर बैठा हुआ था।
लेकिन चैंपियन टीम के दूसरे खिलाड़ियों के लिए ये एक मौक़े की तरह ही था, क्योंकि बलबीर सिंह की अनुपस्तिथि में टीम में शामिल हुए उधम सिंह ने कमाल का प्रदर्शन किया।
उधम ने अपने पहले मैच में 4 गोल दागे, इसके बाद उन्होंने अमेरिका पर 16-0 की जीत में 7 गोल किए। इसके बाद भारत ने अपने आख़िरी ग्रुप मैच में सिंगापुर के ख़िलाफ़ 6-0 से जीत दर्ज की।
भारत की अटैकिंग रणनीति के लिए सिंगापुुर काफी सतर्क था और अपने डिफेंस को मजबूत किया, जिसके फलस्वरूप भारतीय हॉकी टीम 23वें मिनट तक सिंगापुर के डिफेंस को भेदने में असमर्थ थी। भारत ने ओलंपिक इतिहास में अपना पहला गोल करने के लिए सबसे लंबा समय लिया था।
भारतीय हॉकी टीम ने सिंगापुर को मात देने के लिए शुरुआती गोल के बाद गति पकड़ी और ग्रुप स्टेज को कुल 36 गोलों के साथ समाप्त किया, लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि इसके बावजूद मीडिया और खेल विशेषज्ञ की नज़र में भारत प्रबल दावेदार नहीं था।
हालांकि ये डर कुछ हद तक सही साबित भी हो रहा था जब सेमीफ़ाइनल में टीम इंडिया ने जर्मनी को महज़ 1-0 से मात दी थी। ये एकमात्र गोल उधम सिंह की हॉकी स्टिक से आया था। अब भारत के सामने स्वर्ण पदक के लिए चुनौती थी पाकिस्तान की जिन्होंने दूसरे सेमीफ़ाइनल में ग्रेट ब्रिटेन को हराकर फ़ाइनल में जगह बनाई थी।
भारत और पाकिस्तान के बीच भावुक ख़िताबी भिड़ंत
मेलबर्न 1956 का हॉकी फ़ाइनल भारत और पाकिस्तान की लड़ाई की एक शुरुआत थी।
1947 में हुए भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद ये पहला मौक़ा था जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत और पाकिस्तान की हॉकी टीम एक दूसरे के आमने-सामने थी। ये प्रत्येक भारतीय के लिए बेहद भावुक लम्हा था, यहां तक कि बलबीर सिंह ने इस मैच को याद करते हुए कहा था कि वह मैच से पहले की रात सो नहीं पाए थे।
बलबीर सिंह सीनियर जो चोट की वजह से पहले मैच के बाद कोई भी मुक़ाबला नहीं खेल पाए थे और इस मैच से पहले भी उनकी चोट उन्हें बाहर से ही मैच देखने की इजाज़त दे रही थी।
लेकिन भारतीय कोच हरबेल सिंह ने उन्हें टीम में इसी हाल में रखने पर ज़ोर डाला और कहा कि इससे पाकिस्तान को एक बड़ा संदेश जाएगा।
फ़िजी टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में बलबीर सिंह सीनियर ने कोच के बारे में कहा था, “उन्होंने मुझसे कहा था कि अगर मैं पूरी तरह से ठीक नहीं हूं और सही से नहीं खेल पाऊं तो भी मुझे टीम में रहना चाहिए। क्योंकि इससे पाकिस्तान मेरे ख़िलाफ़ दो खिलाड़ियों को लगाएगा और इससे दूसरे फ़ॉरवर्ड के लिए अतिरिक्त जगह मिल जाएगी।“
“मेरी चोट के बारे में प्रतिद्वंदी टीम को कुछ नहीं बताया गया था और मैं किसी से भी हाथ नहीं मिला रहा था। सिर्फ़ हाथ हिलाता था, मैच शुरू होने से पहले और हाफ़-टाईम के समय मैंने दर्द न होने वाले इंजेक्शन लिए थे।“
फ़ाइनल मुक़ाबला कांटे की टक्कर वाला था, जहां भारत और पाकिस्तान के बीच एक उच्च कोटि की हॉकी देखने को मिल रही थी। पहला हाफ़ बिना किसी गोल के समाप्त हुआ, लेकिन दूसरे हाफ़ में भारत ने जल्दी ही बढ़त ले ली थी।
दूसरे हाफ़ के शुरुआती मिनट में ही टीम इंडिया को पेनल्टी कॉर्नर मिला था जिसे उधम सिंह ने ही पुश किया था। रघुबीर लाल गेंद को आगे ले गए और उन्होंने रंधीर सिंह को पास दे दिया और फिर उन्होंने उसे शॉट में तब्दील करते हुए गेंद को पाकिस्तानी गोल पोस्ट में पहुंचा दिया।
इसके बाद अपना पहला ओलंपिक खेल रहे गोलकीपर शंकर लक्ष्मण ने पाकिस्तानी आक्रमण का दीवार की तरह सामना किया और उन्हें कोई गोल नहीं करने दिया।
इस तरह से भारत ने लगातार छठी बार ओलंपिक के ताज पर कब्ज़ा किया और लगातार दूसरी गोल्ड की हैट्रिक लगाई। आज़ादी के बाद भारत की ओलंपिक में ये पहली स्वर्ण हैट्रिक थी।
भारत ने कुल 5 मैचों में 38 गोल दागे जो आज तक ओलंपिक इतिहास में भारत के ही नाम है, इस दौरान भारत ने एक भी गोल खाया नहीं। उधम सिंह ने इस ओलंपिक में 15 गोल किए जो किसी एक ओलंपिक संस्करण में किसी भी खिलाड़ी का सबसे ज़्यादा है।
यह बलबीर सिंह सीनियर के लिए एक विशेष जीत थी, जो मेलबर्न ओलंपिक में भारत के ध्वजवाहक रहे थे।
इस ऐतिहासिक जीत के बारे में बलबीर सिंह सीनियर ने ड्रीम्स ऑफ़ ए बिलियन: इंडिया एंड द ओलंपिक के लेखक बोरिया मजुमदार और नालिन मेहता के साथ अपनी याद ताज़ा की थी, जो उन्होंने अपनी पुस्तक में प्रकाशित भी की है।
“उस दिन जब मैंने अपनी टीम को ख़िताबी जीत दिलाई थी, मैं गर्व से फूले नहीं समा रहा था। दर्शक हमारी जीत का जश्न मना रहा थे और ये एक अद्भुत एहसास था। भारत का राष्ट्रगान बेहद सुरीला लग रहा था और तिरंगा हवा में शान से लहरा रहा था, ये नज़ारा देखने लायक़ था।“
खेल विशेषज्ञों ने ग्रुप स्टेज में भारत के प्रदर्शन के बाद कहा था कि ये टीम अब दुनिया पर राज नहीं कर पाएगी। और उनकी ये बात चार साल बाद सच साबित हुई जब रोम 1960 ओलंपिक में भारत रजत पदक ही जीत पाया था।
इसके बावजूद 1956 ओलंपिक में भारत का लगातार छठी बार स्वर्ण पदक जीतना और चैंपियनशिप की डबल हैट्रिक लगाना एक ऐसा रिकॉर्ड है जो आजतक क़ायम है। इसे आगे कोई भी तोड़ पाए ये फ़िलहाल तो बेहद कठिन मालूम पड़ता है।
1956 ओलंपिक भारतीय हॉकी टीम: बलबीर सिंह सीनियर (कप्तान), लेसली क्लॉडियस, रंगनाथन फ्रांसिस, हरि पाल कौशिक, अमीर कुमार, रघबीर लाल, शंकर लक्ष्मण, गोविंद पेरुमल, अमित सिंह बख्शी, रघबीर सिंह भोला, हरदयाल सिंह गार्चे, रणधीर सिंह जेंटल , बालकिशन सिंह ग्रेवाल, गुरदेव सिंह खुल्लर, उधम सिंह खुल्लर, बख्शीश सिंह, ओ.पी. मल्होत्रा, चार्ल्स स्टीफेन