भारत के अनुभवी और दिग्गज खिलाड़ी लिएंडर पेस को इतिहास में एक बेहतरीन खिलाड़ी के तौर पर जाना जाता है, उन्होंने 1996 के अटलांटा ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा था। वहीं, लिएंडर पेस ने Olympics.com से एक्सक्लूसिव बातचीत की और अपने तमाम अनुभवों को साझा किया। इसके साथ ही अटलांटा में उस यादगार रात के बारे में भी जिक्र किया।
उन्होंने कहा कि सभी एथलीटों का एक समय आता है और वह सामान रूप से एक पंक्ति में रहते हैं ताकि कोई गलती न हो। दरअसल, यह एक ऐसा ज़ोन होता है, जिसे एथलीटों के लिए उनका सही समय जाना जाता है। ठीक ऐसा ही 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस ने पदक हासिल करते हुए साबित किया था।
लिएंडर पेस ने ओलंपिक चैनल से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा, "उस मुकाबले में पहला सेट हारने के बाद, जब मैं दूसरे सेट में 1-2 और 30-40 से पीछे था तभी मेरे साथ कुछ जादू सा हुआ। उस वक्त मैं अपने 'द ज़ोन' में था। हालांकि मुझे वास्तव में याद नही है कि उस 45 मिनट की अवधि में क्या हुआ था।"
लिएंडर पेस ने 44 वर्षों में भारत का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक मेडल का किस्सा साझा किया। बता दें कि 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस ब्राज़ील के फ़र्नान्डो मेलीगेनी को मात देकर कांस्य पदक हासिल किया था।
उन्होंने आगे कहा, "जब मैंने मुकाबले में ब्रेक-पॉइंट को सुरक्षित किया तो उस गेम को 2-2 से हासिल किया और दूसरा सेट भी हासिल किया। वहीं, तीसरे सेट में 5-4 से मुकाबले में आगे रहते हुए मैं फिर लय हासिल कर चुका था।" लिएंडर पेस ने कहा कि मैं अभी भी अटलांटा की उस जादुई रात को समझने की कोशिश करता हूं कि आखिर वह हुआ कैसे।
उन्होंने उस मुकाबले के बारे में आगे बात करते हुए कहा, "मैं इस पल को याद नहीं करता क्योंकि मैं 1.4 अरब लोगों के लिए खेलता हूं।“ उन्होंने आगे कहा, “जब आप डेविस कप या ओलंपिक खेलने के लिए बाहर जाते हैं तो यह आपके लिए पूरी तरह से एक अलग एहसास होता है।"
पेस ने कहा कि जब कोई खिलाड़ी अपने खेल के स्वर्णिम दौर में होता है तो वह ज्यादा प्रतिस्पर्धा करने की चुनौती को आसानी से संभाल सकता है। उस दौर में खिलाड़ी ज्यादा फोकस होता है।
जब पेस या कोई और एथलीट अपनी लय में होता है तो वह पूरी तरह अपनी ही दुनिया में रहता है। उस समय खिलाड़ी अपने लक्ष्य को निर्धारित कर उसे हासिल करने की कोशिश करता है। पेस के अनुसार ऐसे मौके बार-बार नहीं आते, लेकिन जब भी ऐसा होता है तो यह काफी महत्वपूर्ण होता है, जैसा कि 1996 अटलांटा ओलंपिक में हुआ था।
इस दिग्गज ने कहा, “जब मैं सेमीफाइनल में आंद्रे अगासी से हार गया था तो 24 घंटों तक परेशान रहा, लेकिन कांस्य पदक के मैच के समय हालात बदल गए थे। फ़र्नान्डो मेलीगेनी के खिलाफ उस मैच से पहले मुझे लगा कि मुझे अब दिमाग शांत कर इस मैच पर ध्यान लगाना चाहिए।"
कड़ी मेहनत के साथ अटलांटा ओंलपिक की तैयारी
लिएंडर पेस ने 1996 ओलंपिक गेम्स के लिए अपनी मानसिक शक्ति और दृढ़ संकल्प के साथ तैयारी की थी। लिएंडर ने कहा, "आपको मालूम होगा कि मैंने अटलांटा ओलंपिक के लिए काफी तैयारी की थी और जैसे ही 1992 में बार्सिलोना मकुाबला खत्म हुआ तो मैंने उसके बाद ही तैयारी करना शुरु कर दी थी और मैंने अटलांटा के लिए तकरीबन चार साल की तैयारी की।
उन्होंने आगे कहा, “मैं उन टूर्नामेंटों में खेलने के लिए प्रो टूर से भी समय निकाल चुका था। यह उन परिस्थितियों से मिलता-जुलता था, जो अटलांटा में माउंटेन है। मैं दक्षिण अमेरिका के उन सभी कठिन कोर्ट में मुकाबले खेले, जहां खेलना अपने आप में एक चुनौती होती है।" बता दें कि जब वह अटलांटा में मुकाबले खेलने के लिए गए तो वहां उनके लिए कुछ आसान नहीं था।
तैयारी के अवसर मिलते ही एक जादू हुआ
लिएंडर ने कहा, "वहां उस दौरान मेरे लिए कुछ जादुई और रहस्यमय जैसा हुआ था, जो मुझे अपने शब्दों में बयां करना बहुत मुश्किल है, लेकिन पीट सम्प्रास ने उन्हें बाहर खींचा, जिसे इतिहास हमेशा याद रखेगा, और फिर रिचे रेनेबर्ग को मैंने तीन सेटों में मात दी थी।"
लिएंडर पेस का सिंगल्स मुकाबलों में उस साल ओलंपिक का देश का पहला कांस्य पदक था, जो करोड़ो भारतीयों के लिए खुशी की बात थी। जिसे आज भी यादगार लम्हे के तौर पर याद किया जाता है।
सात बार के ओलंपियन खिलाड़ी ने कहा, "उस पल को याद करने की कोशिश करते हुए ऐसा लगता है जैसे एक गर्म कमरे में भी आपके रोंगटे खड़े हो जाएं।"
लिएंडर पेस को अपने टेनिस करियर के आखिरी वर्ष में एक बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद है। लेकिन इस साल क्या होता है और कैसा होता है, उन्हें छोड़ भी दिया जाए तो भारत के अरबों फ़ैंस के लिए पेस ने जो लम्हें दिए हैं वे हमेशा यादगार रहेंगे।