भारतीय हॉकी टीम के खेमे भी पिछले कुछ समय से खुशियों ने ज़रा ज़्यादा आना शुरू कर दिया है। वजह है खिलाड़ियों और कोच की मेहनत, आत्मविश्वास और जीत की ललक। लेकिन इसी के साथ भारतीय मेंस हॉकी टीम को कुछ खामियों को भी खेमे में रख उनसे जूझना पड़ता है। इस टीम की सबसे बड़ी कमज़ोरी मुकाबले के आखिरी समय पर गोल खाना है।
अगर ओलंपिक गेम्स 2016 के आंकड़े उठा कर देखें तो नीदरलैंड, जर्मनी और कनाडा जैसी टीमों ने फ़ाइनल क्वार्टर में भारतीय डिफ़ेंस को तोड़ते हुए गोल चुराए। इतना ही नहीं 2018 एशियन गेम्स में मलेशिया ने 59वें मिनट में गोल दाग हारे हुए मुकाबले को ड्रॉ कर दिया। 2019 सुल्तान अज़लान शाह कप के फाइनल में साउथ कोरिया ने 57वें मिनट में प्रहार कर भारत की झोली से जीत छीन ली और मुकाबले को ड्रॉ की ओर ले गए।
सीज़न 2020 की बात करें तो भारतीय मेंस हॉकी टीम ने इन सभी कमज़ोरियों को हटाने के संकेत ज़रूर दिए हैं। अब देखना यह है कि आने वाली चुनौतियों में इस टीम की रणनीति क्या होती है।
भारतीय हॉकी की बदलती तस्वीर
एफआईएच प्रो लीग के पहले दो मुकाबलों को देखा जाए तो भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने गस्टो की उपस्थिति में अपने डिफ़ेंस को बहुत ज़्यादा मज़बूत किया है। मनप्रीत सिंह की अगुवाई में इस टीम ने एक नया साहस दिखाया है और लगभग हर मुकाबले के अंत तक लड़ते रहे।
नीदरलैंड के खिलाफ पहले मुकाबले में भारतीय हॉकी टीम ने अप्रम पार प्रदर्शन दिखा कर मुकाबले को अपने हक में किया। वह मुकाबला सिर्फ जीत ही नहीं लाया बल्कि हौंसलों को एक नई उड़ान देने में भी सफल रहा है। दूसरे मुकाबले में यही भारतीय टीम 1-3 से पीछे चल रही थी लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी और मुकाबले को जीत की दहलीज़ तक ले गए।
भारतीय हॉकी की इस तस्वीर में बदलाव लाने वाला सबसे बड़ा नाम है ग्राहम रीड। रीड के कोच बनने के बाद इस टीम के रवैय में एक अलग सकारात्मकता दिखी और इस वजह से परिणाम भी उनके हक में गए। इसी रणनीति या यूं कहें कि नज़रिए में परिवर्तन की बदौलत एफआईएच प्रो लेग के दूसरे मुकाबले में टीम ने शानदार वापसी की और भारतीय टीम मुकाबले को शूटआउट तक ले गई।
इस ऑस्ट्रेलियाई कोच के टीम से जुड़ने के बाद भारतीय हॉकी टीम की बढोतरी में निरंतरता दिखी है। जिस मुल्क से रीड आते हैं वहां अच्छे प्रदर्शन के साथ निरंतरता का महत्व भी बहुत ज़्यादा है और इसी आदत को वे भारतीय हॉकी टीम में ज़रूर घोलना चाहेंगे।
निरंतरता के साथ रीड ने खिलाड़ियों की मानसिक और शारीरिक फिटनेस पर भी काफी ध्यान दिया है। ओलंपिक चैनल से बात करते हग्राहम रीडने कहा “हेड कोच की हैसियत से देखूं तो उस समय इस टीम में काफी ज़्यादा समस्याएं थी, जिसमें पहली शारीरिक फिटनेस थी। हालांकि हमने फिटनेस के सुधार के लिए टेस्ट भी किए हैं और इस दौरान 80-90 प्रतिशत खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ हासिल किया। हम इस समय फिटनेस के मामले में सही चल रहें है और अब यह हमारी चिंता का विषय नहीं है।”
उन्होंने आगे बताया “मैं खिलाड़ियों के मानसिक संतुलन को लेकर चिंतित हूं। मेरे ख्याल में मानसिकता का मज़बूत होना बहुत अहम है। जापान में रेडी स्टेडी टोक्यो इवेंट के दौरान हमे एक अच्छा अनुभव हुआ। हालांकि न्यूज़ीलैंड के खिलाफ आखिरी समय में हमने गोल ज़रूर खाया लेकिन यह एक सीख का सबब बना। हमने 2-3 घंटे निवेश कर अपनी खामियों को दूर करने की कोशिश की।”
रीड की सोच बनी टीम की ढाल
हालांकि रीड के ज़हन में इन सभी प्रश्नों के उत्तर हैं और वे खिलाड़ियों के साथ रणनीति पर काम करने में जुटे हैं। उन्होंने आगे बताया “एक इंग्लिश रग्बी यूनियन कोच ने टीसीयूपी का ज़िक्र किया है, जिसका मतलब है: थिंकिंग क्लीयरली अंडर प्रेशर। इस कारण उनके और मेरे ख्यालात मिलते हैं।”ुए
हॉकी के हवाले से भारत के 2020 ओलंपिक गेम्स के कारवां को कोच ग्राहम रीडके साथ ऑस्ट्रेलियन पूर्व ड्रैग-फ्लिकर क्रिस सिरिलो भी अपना बहुमूल्य समय और कौशल प्रदान कर रहे हैं। वर्ल्ड चैंपियन और 2012 ओलंपिक गेम्स के ब्रॉन्ज़ मेडल विजेत क्रिस सिरिलो भारतीय हॉकी टीम के साथ एक एनेलीटीकल कोच की हैसियत से जुड़ें हैं।
रीड ने क्रिस सिरिलो के लिए कहा “क्रिस का मेरे साथ होने का मतलब है मेरा काम आसान होना है।”
खेल में बहुत बार देखा गया है कि सबकी सोच एक जैसी नहीं होती, जो कि चर्चा का विषय बन जाता है। लेकिन इस भारतीय टीम की ख़ास बात यह है कि किसी भी असहमति को यह टीम सकरात्मक बना देती है जो कि सफलता का राज़ भी है। टोक्यो 2020 के साथ यह भारतीय हॉकी टीम आने वाली बाकी चुनौतियों की ओर बढ़ रही है और कोच समेत सभी खिलाड़ी एकजुट हो कर खेल रहे हैं।