एक समय बॉक्सिंग छोड़ने पर मजबूर, लेकिन आज हाथ में है टोक्यो का टिकट
आशीष कुमार आर्मी में जाने की सोच रहे थे लेकिन नेशनल गेम्स जीतने के बाद उन्होंने बॉक्सिंग में झंडे गाड़ दिए।
जिन 9 भारतीय मुक्केबाज़ों ने टोक्यो ओलंपिक गेम्स के लिए क्वालिफाई किया है उनमें से एक नाम आशीष कुमार का भी है।
अम्मान में हुए एशियन ओलंपिक क्वालिफायर्स मिडलवेट भारवर्ग 75 किग्रा में आशीष कुमार (Ashish Kumar) ने इंडोनेशिया के मैखेल मुस्किता (Maikhel Muskita) को मात दे कर टोक्यो 2020 में अपनी जगह बनाई थी। यह संस्करण उनके जीवन का पहला ओलंपिक होने वाला है।
बाकी मुक्केबाज़ों की तरह आशीष ने इस खेल को बहुत कम उम्र में नहीं चुना था। 26 साल की उम्र तक आशीष कुमार के पास सरहद पर देश की रक्षा करने का मौका था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
2015 में इस बॉक्सर ने लगभग खेल को छोड़ दिया था लेकिन उसके बाद जब उन्होंने वापसी की तो दुनिया इनकी तारीफ़ करने पर मजबूर हो गखूब में बॉक्सिंग का उबाल
हिमाचल प्रदेश के गांव सुंदर नगर मिं जन्में इस मुक्केबाज़ के पास दो विकल्प थे। इस विषय पर ओलंपिक चैनल से बात करते हुए बॉक्सर ने कहा “उस समय मेरे पास रेसलिंग और बॉक्सिंग के विकल्प थे क्योंकि जहां से मैं हूं वहां यह दो खेल बहुत खेले जाते हैं। मेरे तीन बड़े भाई हैं और वह शहर के सबसे अच्छे मुक्केबाज़ों में से एक हैं। ऐसे में बॉक्सिंग से मेरा जुड़ाव बनता गया।”
“मैं बहुत पतला था और इसी वजह से मैं रेसलिंग में नहीं गया।”
आशीष ने 14 साल की उम्र में बॉक्सिंग शूर की और उस समय उन्हें एहसास हुआ कि उनके पास इस खेल का कौशल है। साथ ही उनके परिवार ने भी इस युवा का बखूबी साथ दिया जिस वजह से आज वह ओलंपिक के लिए जाने वाले हैं।
बातचीत को बढ़ाते हुए उन्होंने आगे कहा “मेरे पिता ने हमेशा मेरा साथ दिया है। उन्होंने मुझे बस एक ही बात कही थी कि मैं खुद को पूरी तरह खेल में झोंक दूं। मैंने खुद को एक प्रोफेशनल खिलाड़ी बनाने का फैसला लिया था इर मुझे इसमें अब अपना पूरा योगदान देना था।ई।
16 की उम्र में युवा आशीष ने भिवानी जाने का फैसला किया। जी हां, भिवानी वही जगह है जहां से देश के सबसे सफल मुक्केबाज़ विजेंदर सिंह (Vijender Singh) आए हैं।
सफ़र शुरू होते ही मुश्किलों का सफ़र भी शुरू हो गया।
ऐसे में स्टेट और एश्नल लेवल पर आशीष अपनी छाप नहीं छोड़ पाए। मेहनत जारी थी लेकिन यह भारतीय मुक्केबाज़ सफलता से वंचित ही रहे।
“मेरी ट्रेनिंग में कोई कमी नहीं थी। मैंने बहुत मेहनत की है, सब सही किया है लेकिन मुझे 6 सालों मेडल नहीं मिले। मैं हमेशा पहले या दूसरे राउंड में बाहर हो जाता था और अगर कभी नॉकआउट तक गया भी तब भी मेडल राउंड में हार जाता था।”
“यह हताश और निराशापूर्ण था। क्रिसेंड़ो 2014 नेशनल में चीज़ें सही जा रही थी और मैंने मेहनत भी की थी लेकिन मैं फिर हार गया था। उस से मुझे ऐसा लगा कि मुझे कुछ और कर लेना चाहिए, जैसे वह कहते हैं कि सेटल हो जाबेहतरीन मोड़एक समय पर आशीष कुमार ने आर्मी या पोलिस में जाने का मन बना लिया था। उन्होंने बॉक्सिंग के अलावा कभी कुछ और करने की नहीं सोची।
उसके 1 महीने आबाद ही केरला में नेशनल गेम्स का आयोजन हुआ।
मुक्केबाज़ ने अलफ़ाज़ साझा करते हुए कहा “मैं उसके लिए क्वालिफाई कर चुका था तो मैंने सोचा कि इसे छोड़ने से पहले एक कोशिश कर चुका हूं। उस प्रतियोगिता ने मेरा जीवन बदल दिया।”
या तो दबाव की कमी थी या आशीष अपने निर्णय से संतष्ट लेकिन उस समय उनके प्रदर्शन में कुछ उम्दा चीज़ें देखने को मिली।
यह कोई फिल्म नहीं थी लेकिन मानों आशीष इसकी कहानी खुद लिख रहे थे। जिस नेशनल चैंपियन से वह एक महीने पहले हारे थे इस बार उन्होंने उसी मुक्केबाज़ को मात दी।
“मुझे बॉक्सिंग से दोबारा प्यार ही गया। यह मेरे सच और मेरे पिता के बिना मुमकिन नहीं था।”
“मेरे पिता ने हमेशा मुझे सकारात्मक रहने के लिए कहा, हालांकि तब भी जब मैं हार रहा रहा था। मैंने देखा है कि वह अपने लिए चीज़ें नहीं लेते थे और उस पैसे को मेरी ट्रेनिंग और डाइट में लगा देते थे। उन्होंने मेरे लिए बहुत त्याग किए हैं और मैं इसके लिए उनका आभारी हूं।”
करिश्माई पल
उस पल के बाद आशीष कुमार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अम्मान में उन्हें सफलता भी मिली।
भारतीय बॉक्सर आशीष कुमार ने मैखेल मुस्किता को मात देते हुए टोक्यो ओलंपिक गेम्स की जगह पुख्ता की। इस जीत का श्रेय उन्होंने अपने पिता को दिया जो उस बाउट से एक महीना पहले ही गुज़र गए थे।
“मैं उस मुकाबले के इए तैयार था। मैं जनता था कि अगर मैं जीत गया तो यह एक और पल बनेगा जो मेरी ज़िन्दगी बदल देगा। उस स्तर पर सबकी प्रेरणा एक ही होती – सब ओलंपिक का हिस्सा बनना चाहते हैं।”
ओलंपिक में जगह बनाने के बाद उनका सामना सेमीफाइनल में टॉप सीड के मुक्केबाज़ यूमीर मारियाल (Eumir Marcial) से हुआ। हालांकि वह उस बाउट को जीत न सके।
उन्होंने बातचीत को बढ़ाते हुए कहा “मुझे लगता है कि वह एक अच्छा मुकाबले था। तब तक यूमीर मारियाल अपने प्रतिद्वंदियों को दबा रहे थे लेकिन मैं उनके सामने जा कर खड़ा हो गया।”
“मुकाबले के बाद मैंने उन्हें कहा कि इस बार भले ही तुम जीत गए हो लेकिन अगली बार तुम्हारे लिए इतना आसान नहीं होने वाला है। हम एक दूसरे को बहुत समय से जानते हैं, तो हम अच्छे दोस्त हैं और हम यह सब एक दूसरे को मज़ाक में कहते हैं।”
जीवन में हार का सामना करते करते आशीष कुमार ने ओलंपिक गेम्स का सफ़र बहुत ही मेहनत और सकारात्मक रवैये से तय किया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि टोक्यो ओलंपिक गेम्स में इस मुक्केबाज़ की रणनीति क्या होती है।ज़बाज़ा