25 अगस्त 2019, भारतीय बैडमिंटन का वह पल रहा, जिसका सभी दर्शक सालों से इंतज़ार कर रहे थे। उस दिन भारत की गोल्डन गर्ल पीवी सिंधु ने जापान की नोज़ोमी ओकुहारा को मात देकर BWF वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम कर लिया था। सिर्फ नोज़ोमी ओकुहारा को हराना ही भारतीय शटलर सिंधु की खुशी का कारण नहीं था, बल्कि इस मुकाबले को जीतकर वह वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी भी बन गईं। इसके साथ ही उन्होंने दो बार की ओलंपिक चैंपियन झांग निंग के इस इवेंट में 5 पदक जीतने की बराबरी भी की।
दोनों ही खिलाड़ियों ने 1 स्वर्ण, 2 रजत और 2 कांस्य पदक हासिल किया है। बैडमिंटन चैंपियन बनने के बाद पीवी सिंधु ने कहा, “मेरे लिए हर मुकाबला और एक-एक अंक का महत्व बेहद खास था।”
इस भारतीय दिग्गज का पहला मुकाबला ताइवान की यू-पो पाई से था। सिंधु ने 21-14, 21-15 से अपने सफर की शुरुआत की। अपने शॉट्स को दिशा दिखाते हुए संभलकर खेलती भारतीय शटलर ने जीत की राह समझदारी के साथ बनाई और हमेशा अपने प्रतिद्वंदी से एक कदम आगे रहीं। खेल के कौशल का प्रमाण पेश करते हुए सिंधु ने बेसलाइन का भी ध्यान रखा और अपने हर शॉट को सटीकता से खेलते हुए अंक बटोरे।
प्रतियोगिता आगे बढती गई और सिंधु भी तैयार होती गई। इस दिग्गज ने प्री क्वार्टर-फाइनल में अमेरिकी खिलाड़ी बेईवान झांग के खिलाफअपनी शानदार लय का सबूत पेश किया। पहले ही गेम में 5-5 के बराबर स्कोर के बाद सिंधु ने अटैक करना शुरू किया और अपने घातक स्मेशों से अंक बटोर लीड हासिल की।
दूसरे गेम में तो भारतीय खिलाड़ी ने कमाल का खेल दिखाया और केवल 6 अंक गवाए। इस मुकाबले को उन्होंने 21-14, 21-6 से जीता और अपने मनोबल को दुनिया के आगे पेश किया।
पीवी सिंधु की ताई ज़ू यिंग के खिलाफ बेहतरीन वापसी
भारतीय शटलर को पहली कड़ी टक्कर क्वार्टर-फाइनल में ताई ज़ू यिंग ने दी। गौरतलब है कि ताई ज़ू यिंग वह प्रतिद्वंदी है जिनके खिलाफ सिंधु का हेड-टू-हेड स्कोर अच्छा नहीं है। यह चीनी ताइपे खिलाड़ी अपने शांत स्वरूप के लिए जानी जाती है और यही कौशल उन्होंने सिंधु के सामने भी दिखाया और 21-12 से गेम को अपने हक में करते हुए उन्होंने अपनी पहली BWF वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत के लिए एक कदम आगे बढ़ाया।
उस समय सिंधु किसी भी तरह का दबाव महसूस नहीं कर रही थी और उनकी जीत क भूख कायम थी। दूसरे गेम में रियो 2016 की रजत पदक विजेता ने आक्रामक खेल दिखाया और अपनी ताकत यानी स्मैश का उपयोग करना शुरू कर दिया। सिंधु ने ताई ज़ू यिंग के शरीर को निशाना बनाया और उन्हें कुछ अलग करने पर मजबूर किया। शानदार खेल का मुजाहिरा करते हुए पहले गेम में पिछड़ने के बावजूद पीवी सिंधु ने इस मुकाबले को 12-21, 23-21, 21-19 से अपने नाम किया।
सेमी-फाइनल में भारतीय खिलाड़ी ने चेन युफेई के खिलाफ वही रणनीति अपनाई जिससे वह अभी तक जीतती आईं थी। क्वार्टर-फाइनल से सीख लेकर सिंधु ने पहले ही अंक से आक्रामकता दिखाई और अपने प्रतिद्वंदी को ज़्यादा कुछ करने का मौका नहीं दिया।
पीवी सिंधु के स्टाइल और आक्रामक रवैये ने चेन युफेई को रणनीति तक बनाने का मौका नहीं दिया और भारतीय शटलर हमेशा उन पर हावी रही। चीनी प्रतिद्वंदी ने हर वो हथियार आज़माया जिससे वह जीत की ओर जा सके लेकिन वह हर बार नाकाम रही। हालांकि दूसरे गेम में चेन युफेई ने बेहतर प्रदर्शन दिखाया और कुछ अंक भी अपने नाम किए। कहते है न कि जब आपके हौंसलों में जान हो तो आप जीत की देहलीज़ लांग ही लेते हैं और ऐसा ही कुछ सिंधु के साथ हुआ। उन्होंने चेन युफेई को 21-7, 21-14 से मात देकर फाइनल में अपने कदम रखे।
नोज़ोमी ओकुहारा को हराकर गोल्डन गर्ल बनीं पीवी सिंधु
अब पीवी सिंधु की लड़ाई उस खिलाड़ी से थी जो फाइनल को फतह करने के लिए जाने जाती हैं। पिछले कई वर्षों में सिंधु ने भी कई बार फाइनल में प्रवेश किया था लेकिन आखिरी मौके पर वह जीत से वंचित रही थी। अगर एक नज़र डाले सिंधु के कारवां पर तो उन्हें कैरोलिना मरीन ने रियो 2016 में रजत पदक तक सीमित रखा और साथ ही 2018 BWF वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी उन्होंने सिंधु को जीतने नहीं दिया। 2018 एशियन गेम्स में भी ताई ज़ू यिंग ने इस दिग्गज को मात दी थी और इसके बाद 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय शटलर साइना नेहवाल के खिलाफ वह जीत नहीं सकी। इतना ही नहीं 2017 BWF वर्ल्ड चैंपियनशिप में नोज़ोमी ओकुहारा ने सिंधु को शिकस्त देते हुए स्वर्ण पदक पर अपने नाम की मुहर लगाई थी।
सिंधु को ‘सिल्वर सिंधु’ कहा जाने लगा था और वह इस टैग को मिटाना चाहती थी। इस मुकाबले के बाद सिंधु ने कहा था, “मैं वह फाइनल हर कीमत पर जीतना चाहती थी। मुझे यह नहीं पता था कि मैं कैसे जीतूंगी लेकिन मुझे यह पता था कि मुझे यह जीतना ही है।”
सिंधु का फाइनल मुकाबला उनकी योजना के हिसाब से शुरू नहीं हुआ लेकिन ख़त्म ज़रूर हुआ। शुरू में लड़खड़ाती सिंधु ने अपनी लय को पकड़ा और नोज़ोमी ओकुहारा पर धावा बोल दिया। इसके बाद जापानी शटलर ने मुकाबले को बचाने की पुरज़ोर कोशिश की लेकिन सभी मानो नाकाम होती जा रही थी। भारतीय शटलर पीवी सिंधु ने महज़ 38 मिनट में खेल समाप्त कर 21-7, 21-7 से मुकाबला और स्वर्ण पदक दोनों ही अपने नाम किए। यह कहानी केवल एक खिलाड़ी की जीत की नहीं थी बल्कि हार कर जीतने की थी, इरादों को हर मुकाबले के बाद पक्का करने की थी और बड़े मंच पर अपने नाम का परचम लहराने की थी।
इस तरह बनी पीवी सिंधु एक वर्ल्ड चैंपियन और इसी के साथ वह लगातार अपने प्रशंकों को तोहफा देती आईं हैं और लाखों युवा लड़कियों की प्रेरणा भी बनती आईं हैं।