Exclusive! आखिर क्यों पुलेला गोपीचंद करना चाहते थे अपना कोचिंग करियर खत्म?

पुलेला गोपीचंद ने 2012 में साइना नेहवाल के ओलंपिक कांस्य पदक जीतने के बाद कोचिंग छोड़ने पर विचार किया था, लेकिन उनकी मां ने उन्हें जारी रखने के लिए प्रेरित किया।

3 मिनटद्वारा लक्ष्य शर्मा
2016 रियो ओलंपिक में पी वी सिंधु के कोच थे पुलेला गोपीचंद
(Getty Images)

जब ऑल इंग्लैंड चैंपियन पुलेला गोपीचंद (Pullela Gopichand) ने 2004 में अपनी कोचिंग यात्रा शुरू की, तो उनका अंतिम उद्देश्य ओलंपिक पदक विजेता तैयार करना और भारत को वैश्विक मंच पर एक ताकत बनाना था।

उनका ये सपना साल 2004 में पूरा हुआ, जब साइना नेहवाल (Saina Nehwal) ने 2012 बीजिंग ओलपिंक के वूमेंस सिंगल्स में कांस्य पदक जीता। यह कारनामा करने वाली वह भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी थी।

यह देश के लिए एक सपने के सच होने जैसा था लेकिन पुलेला गोपीचंद के लिए यह और भी खास था। यह कांस्य पदक अगली पीढ़ी को कोचिंग देने के लिए वर्षों की कड़ी मेहनत और समर्पण का परिणाम था।

स्वाभाविक रूप से, पुलेला गोपीचंद को लगा कि उन्होंने अपने लिए जो लक्ष्य निर्धारित कर रखा है, वह अब उन्होंने हासिल कर लिया है। इसी वजह से उन्होंने सोचा कि क्या उन्हें कोचिंग बंद कर देनी चाहिए।

गोपीचंद ने ओलंपिक चैनल के नए शो द एकेडमी: फोर्जिंग इंडियाज बैडमिंटन चैंपियंस (The Academy: Forging India’s Badminton Champions) में बताया कि "जब साल 2012 में ये पदक आया, तो मुझे लगा कि जो मुझे करना था, वह मैं कर चुका हूं।"

भारतीय दिग्गज ने कहा कि “इस बारे में मैंने अपनी मां से बात की। मैंने उनसे पूछा कि जो मैंने किया क्या वह पर्याप्त है, उस समय उन्होंने मुझे सपोर्ट किया लेकिन अगले ही दिन सुबह उन्होंने मुझसे कहा कि मैं अब तक घर में क्या कर रहा हूं। इसके बाद उन्होंने मुझे एकेडमी जाने के लिए कहा।“

पुलेला गोपीचंद की मां **पुलेला सुब्बारावम्मा (**Pullela Subbaravamma) को अंदर ही अंदर मालूम था कि उनके बेटे ने अपने लिए क्या लक्ष्य बनाए हैं और वह चाहती थी कि उनका बेटा देश को गौरवान्वित करता रहें।

सुब्बारावम्मा ने शो में कहा, "जब हमने पदक जीता तो हम बहुत खुश थे - क्योंकि पूरे देश के साथ एकेडमी और हम सभी इसका इंतजार कर रहे थे। ओलंपिक पदक प्राप्त करना उस एकेडमी के निर्माण की प्रेरणा थी। इसलिए, मैंने हमेशा गोपी से कहा कि एक पदक पर्याप्त नहीं है, मुझे हमारी एकेडमी से अधिक से अधिक पदक विजेता चाहिए।“

पुलेला गोपीचंद ने कोच के रूप में काम करना जारी रखा और उनका ये फैसला चार साल बाद सही साबित हुआ, जब पीवी सिंधु  (PV Sindhu) ने रियो 2016 में अपने ओलंपिक पदार्पण में रजत पदक जीता। इसके बाद सिंधु भारत की पहली BWF विश्व चैम्पियनशिप विजेता भी बनी।

द एकेडमी: फोर्जिंग इंडियाज़ बैडमिंटन चैंपियंस ओलंपिक चैनल द्वारा बनाई गई छह-एपिसोड की ऑरिजनल सीरीज है।

इस दौरान हमने हैदराबाद में पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी के पीछे के पर्दे की कहानी भी जानी। हमने जाना कि जिस एकेडमी से 2-2 ओलंपिक मेडल आए हों, वहां किस तरह की सुविधा दी जाती है।

 आप सभी एपिसोड यहां देख सकते हैं।

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