हाल के कुछ सालों में कई खेलों ने भारतीय फैंस के दिलों में जगह बना ली है, लेकिन बैडमिंटन एक ऐसा खेल है, जिसने फैंस का दिल तो जीता ही है, साथ ही देश को कई मौकों पर गौरवांन्वित भी किया है। इस काम में साइना नेहवाल, पीवी सिंधु, किदांबी श्रीकांत और इनके जैसे ही कई स्टार खिलाड़ियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
लेकिन बैडमिंटन के खेल का भारत का संबंध बहुत प्राचीन काल से रहा है। ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत ने बैडमिंटन में एक बड़ी भूमिका निभाई है जो वैश्विक रूप से लोकप्रिय खेल है।
यहां, हम भारत में बैडमिंटन का इतिहास पर एक नज़र डालते हैं और हमारे देश ने कैसे इस खेल में अपने-आप को मजबूत बनाया, जिस बैडमिंटन को आज हम जानते हैं।
भारत में बैडमिंटन का इतिहास
बैडमिंटन की शुरूआत की जानकारी अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन प्राचीन भारत, चीन और ग्रीस के ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स में शटलकॉक और रैकेट से जुड़े खेलों का संदर्भ दिया गया है। इसका उल्लेख लगभग 2000 वर्षों का है।
मध्यकाल के यूरोप में बच्चों का एक खेल हुआ करता था, जिसे बैटलडोर और शटलकॉक कहा जाता है, जिसमें खिलाड़ी एक छोटे पंख वाले शटलकॉक को लंबे समय तक हवा में रखने के लिए पैडल (बैटलेडोर) का इस्तेमाल करते थे। तब ये खेल भी लोकप्रिय था। 17वीं शताब्दी में यूरोप के रईस लोगों द्वारा खेला जाने वाला इस प्रकार का एक और गेम था, जिसका नाम था, जेउ दे वोलेंट।
हालांकि, विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त खेल बनने के लिए रैकेट खेल का दशा-दिशा भारत से शुरू हुई थी।
ब्रिटिश सेना के अधिकारियों ने 1860 के आसपास भारत में तैनात रहते हुए, सदियों से खेले जाने वाले खेल के देशी संस्करण से परिचय कराया।
उन्होंने खेल के लिए अपने अनुकूल बनाया और सबसे पहले नेट को जोड़ा और इसे पूना नाम दिया। खेल के लिए बैडमिंटन नियमों का पहला अनौपचारिक सेट 1867 में ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा भारत में बनाया गया था।
दिलचस्प बात ये है कि इस तरह का एक और खेल - बॉल बैडमिंटन के नाम से भारत के दक्षिणी हिस्सों में लोकप्रिय था। जिसमें शटलकॉक के बजाय ऊनी गेंदों को शामिल किया जाता था। भारत के ब्रिटिश सैनिकों ने हवा और नम परिस्थितियों में खेल खेलते समय शटलकॉक की बजाय गेंदों का भी इस्तेमाल किया।
भारत से लौटने वाले सैनिकों ने खेल को वापस इंग्लैंड में खेला और जल्द ही इसने ब्यूफोर्ट के ईर्स्टवाइल ड्यूक का ध्यान आकर्षित किया। 1873 में, ड्यूक ने ग्लूस्टरशायर में अपनी इस्टेट में आयोजित लॉन-पार्टी में अपने मेहमानों को इस खेल के बारे में बताया।
ड्यूक के इस्टेट का नाम बैडमिंटन हाउस था, उसी आधार पर उन्होंने इस खेल का नाम 'बैडमिंटन खेल' बताया। तब से ये खेल बैडमिंटन बन गया।
बैडमिंटन की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी और ये एक मनोरंजन के लिए खेले जाने वाले खेल बनने से आगे बढ़कर क्लबों में लोकप्रिय होने वाला खेल बन गया।
बैडमिंटन का पहला बैडमिंटन क्लब 1877 में बनाया गया था और दस साल बाद भारत में बनाए गए अनौपचारिक नियमों को फिर से लिखा। बाथ बैडमिंटन क्लब के नियमों ने आधुनिक बैडमिंटन के लिए रूपरेखा तैयार की।
बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंग्लैंड (BAE) की स्थापना के छह साल बाद 1899 में बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (BAI) की स्थापना हुई। ये दुनिया के सबसे पुराने बैडमिंटन शासी निकायों में से एक है।
अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन महासंघ (IBF) की स्थापना 1934 में खेल के लिए विश्व शासी निकाय के रूप में की गई थी। बाद में इसका नाम बदलकर बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन (BWF) कर दिया गया। भारत 1936 में इस ग्रुप में शामिल हुआ।
1992 के बार्सिलोना खेलों में बैडमिंटन के मेंस सिंगल्स, मेंस डबल्स, वुमेंस सिंगल्स और वुमेंस डबल्स के मुकाबलों को शामिल करके, ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों का हिस्सा बनाया गया। 1996 में, मिक्स्ड डबल्स को भी सूची में जोड़ा गया।
दीपांकर भट्टाचार्य और यू विमल कुमार बार्सिलोना 1992 में ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले पुरुष शटलर थे। इस आयोजन में मधुमिता बिष्ट भारत की एकमात्र महिला प्रतिनिधि थीं।
2016 में भारत में शुरू हुई प्रीमियर बैडमिंटन लीग (PBL) के साथ बैडमींटन फ्रेंचाइजी-आधारित खेल भी बन गया।
भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी
भारत के हर खेल में स्टार खिलाड़ियों की अपनी अपनी भूमिका रही है और बैडमिंटन में भी ऐसे कई खिलाड़ी हैं। ये शटलर अपने देश को वैश्विक बैडमिंटन मानचित्र पर रखने में महत्वपूर्ण रहे हैं।
प्रकाश पादुकोण
प्रकाश पादुकोण शायद भारत में बैडमिंटन के इतिहास के पहले सुपरस्टार हैं। पादुकोण 1980 में प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने वाले पहले भारतीय हैं और पुरुषों की बैडमिंटन विश्व रैंकिंग में नंबर 1 पर पहुंचे थे।
वो बैडमिंटन में भारत के पहले राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदक विजेता भी हैं, जिसने 1978 में पुरुषों की सिंगल्स स्पर्धा में जीत हासिल की थी। दिग्गज शटलर ने कई अन्य पुरस्कार भी जीते हैं, जिनमें 1983 विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य और सिंगापुर में 1981 विश्व कप में स्वर्ण पदक शामिल है।
पुलेला गोपीचंद
प्रकाश पादुकोण से प्रेरित होकर पुलेला गोपीचंद 90 के दशक और 2000 के दशक की शुरुआत में उनके कदन पर चले। गोपीचंद ने 2001 में ऑल इंग्लैंड जीता और बैडमिंटन के भारतीय इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया।
जैसे प्रकाश पादुकोण ने किया, वैसे ही पुलेला गोपीचंद ने भी भारतीय बैडमिंटन के मशाल वाहक की अगली पीढ़ी को ढालने के लिए खुद को समर्पित कर दिया।
साइना नेहवाल
पुलेला गोपीचंद के स्टार शिष्यों में से एक साइना नेहवाल बैडमिंटन में भारत की पहली ओलंपिक पदक विजेता हैं। नेहवाल ने 2012 के लंदन ओलंपिक वुमेंस सिंगल्स स्पर्धा में कांस्य जीता। वो 2015 में दुनिया में नंबर 1 स्थान पाने वाली एकमात्र भारतीय महिला भी हैं।
पीवी सिंधु
साइना नेहवाल से पांच साल छोटी, पीवी सिंधु ने तूफान की तरह विश्व बैडमिंटन में तकद रखा और समर ओलंपिक खेलों में नेहवाल के कांस्य को रियो 2016 में रजत में बदल दिया। मतलब उन्होंने 2016 में भारत के लिए बैडमिंटन इतिहास का पहला रजत पदक जीता। 2019 में, वो BWF विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय बन गईं और वर्तमान में वो महिला विश्व चैंपियन हैं।
पीवी सिंधु विश्व चैंपियनशिप में लगातार अच्छा प्रदर्शन करती रही हैं और उन्होंने गोल्ड के अलावा टूर्नामेंट में दो सिल्वर और दो कांस्य पदक भी जीते हैं। साइना नेहवाल की तरह, पीवी सिंधु को भी पुलेला गोपीचंद ने ही ट्रेनिंग दी है।
किदांबी श्रीकांत
पुलेला गोपीचंद के संन्यास के बाद से किदांबी श्रीकांत भारत के शीर्ष पुरुष बैडमिंटन खिलाड़ी रहे हैं। श्रीकांत की झोली में छह BWF सुपरसीरीज और तीन BWF ग्रां प्री हैं और उन्हें 2018 में दुनिया के नंबर 1 पुरुष खिलाड़ी का स्थान दिया गया था।
प्रकाश पादुकोण के शीर्ष पर पहुंचने के बा से वो एकमात्र भारतीय पुरुष शटलर हैं।
इनके अलावा सैयद मोदी, परुपल्ली कश्यप, अपर्णा पोपट, ज्वाला गुट्टा कुछ अन्य नाम हैं, जिन्होंने बैडमिंटन में अपना योगदान दिया है।
दिलचस्प बात ये है कि भारत के अधिकांश बैडमिंटन दिग्गज आंध्र प्रदेश (अब आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) से हैं – भारत देश का ये क्षेत्र बैडमिंटन खिलाड़ियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है।