विश्व पैरा-बैडमिंटन चैंपियन मानसी जोशी (Manasi Joshi) की एक साल पहले स्विट्जरलैंड के बेसल में उनकी खिताबी जीत ने उनके आलोचकों को गलत साबित कर दिया था।
साल 2011 में हुई एक मोटरबाइक दुर्घटना में अपना बायां पैर गंवाने के बाद 31 वर्षीय ने पैरा-बैडमिंटन में अपने कदम रखे। जिसके बाद मानसी जोशी को पेशेवर स्तर पर बैडमिंटन खेलने के अपने जुनून के लिए कई आलोचना का सामना करना पड़ा।
इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर मानसी ने ओलंपिक चैनल को बताया, “अतीत में ऐसा कई बार हुआ जब लोगों ने मुझसे कहा कि शारीरिक रूप से अक्षम इंसान स्वर्ण पदक नहीं जीत सकता है। मुझे इन जैसी प्रतियोगिताओं में भाग नहीं लेना चाहिए। मुझे बैडमिंटन खेलना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि उच्च श्रेणी की विकलांगता के साथ मुश्किल होगी।”
“मैंने बैडमिंटन में करियर बनाने की अपनी इच्छा के बारे में इतनी नकारात्मक बातें सुनीं हैं कि इसने मेरे सफर को भी मुश्किल बना दिया था। उस स्वर्ण (पदक) ने एक तरह से मेरे सभी आलोचकों का मुंह बंद करने का काम किया था।”
भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी को अपना पहला विश्व खिताब जीते हुए करीब एक साल होने को है, लेकिन मानसी जोशी के लिए आज भी वो पल बिल्कुल ताज़ा हैं।
महिला एकल SL3 श्रेणी की स्वर्ण पदक विजेता मानसी ने कहा, “मुझे लगता है कि उस तरह का मौका मिलना वास्तव में मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था। मैं सौभाग्यशाली भी थी कि वर्ल्ड में मेरे साथ गोपी सर (पुलेला गोपीचंद) थे।”
"उन्होंने (गोपीचंद) शायद ही मेरे किसी मैच को नहीं देखा होगा। इसने भी एक अहम भूमिका निभाई। जब आपके पास आपके मैचों के लिए इतने बड़े कोच बैठे हों तो आपको बहुत आत्मविश्वास मिलता है।”
पैरा स्पोर्ट्स पर ध्यान आकर्षण
मानसी का मानना है कि उसकी जीत ने पैरा स्पोर्ट्स में लोगों की रुचि पैदा करने में भी मदद की है, और विशेष तौर पर पैरा-बैडमिंटन में। इसने भारत में शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को इस ओर सोचने पर भी मजबूर किया है। वह इस बदलाव को लाकर खुश हैं।
मानसी ने कहा, “अब लोग प्रोस्थेटिक्स और अन्य संबंधित विषयों पर बात कर रहे हैं, ये वो मुद्दे हैं जिनपर आपने कुछ साल पहले किसी को भी बात करते हुए नहीं सुना होगा। इसले मुझे खुशी है कि मैं इस आंदोलन का हिस्सा रही हूं।”
मानसी जोशी टोक्यो पैरालंपिक खेलों में अपनी जगह पक्की करने की उम्मीद कर रहीं थीं, लेकिन कोरोना वायरस महामारी ने उनकी योजनाओं को विफल कर दिया। लेकिन उनका हौसला अभी भी जिंदा है।
2018 पैरा एशियाई खेलों की कांस्य पदक विजेता ने कहा, "मुझे लगता है कि यह मेरे लिए मुश्किल परिस्थितियों में भी एक आशीर्वाद के जैसा है। मैंने 2020 में एक व्यस्त सीज़न के बाद कदम रखा। इसलिए, इस ब्रेक ने एक तरह से मेरी मदद की है। हां, मुझे कोर्ट पर अपने स्किल वर्कआउट की कमी खल रही है, लेकिन मुझे अपने टूटे हुए प्रोस्थेटिक्स को भी ठीक कराने का समय मिल गया है। मैं एक नया फुट शेल (पैर का कवच) ले सकती हूं। इसके अलावा मैं अपना लाइनर भी बदल सकती हूं।”
मानसी ने अपनी बात को विराम देते हुए कहा, “मेरे पास खुद को बेहतर करने और अन्य जरूरी इंतज़ाम करने के लिए बहुत समय है। इसके साथ ही मेरे पास उन क्षेत्रों पर भी काम करने के लिए पर्याप्त समय है, जिसपर मुझे पहले लगातार यात्रा और प्रतिद्वंद्विता करने की वजह से ध्यान देने का मौका नहीं मिला।