टोक्यो 2020 पर होगा तीरंदाज़ बोम्बायला देवी का निशाना
कुल 13 आर्चरी वर्ल्ड कप मेडल, अर्जुन अवार्ड, पद्मा श्री अवार्ड और सालों के तजुर्बे के साथ बोम्बायला का अगला निशाना 2020 ओलंपिक गेम्स में जीत दर्ज करना होगा।
भारत में आज तक 61 खिलाड़ियों को पद्म श्री अवार्ड ने नवाज़ा गया है। बात करें अगर इन सब विजेताओं की तो इनमें से कुछ खिलाड़ियों ने साल 2019 में एक बार फिर अपने नाम का डंका बजाया। उनमें से एक नाम है, बोम्बायला देवी।
तीन ओलंपिक गेम्स का हिस्सा रह चुकी बोम्बायला ने आज तक 13 आर्चरी वर्ल्ड कप मेडल जीते हैं। 12 साल पहले भारत के लिए डेब्यू करने वाली बोम्बायला ने अपने करियर में लगभग हर ऊंचाई को देखा है, लेकिन आज तक इनका तीर कभी भी ओलंपिक गेम्स के मेडल पर नहीं लग।
कुछ ऐसे हुई शुरुआत
बोम्बायला की माँ, जामिनी देवी एक लोकल आर्चरी कोच हैं और उन्हीं की सीख ने बोम्बायला को आज अपने देश की अगुवाई करने का मौका दिया। बचपन में माँ को आर्चरी के करीब देख, खेल में बोम्बायला की रूचि कम उम्र से बढ़ने लगी और माँ के कोच होने की वजह से उन्हें लगातार प्रोत्साहन मिलता रहा।
हुनर तो था ही, लेकिन अभी उसे निखारने की ज़रूरत थी। इसी के चलते उनकी ट्रेनिंग खुमान लम्पक स्टेडियम में शुरू कराई गई। रोज़ाना सुबह और शाम को वह अभ्यास के लिए निकल जातीं और साथ में स्कूल के बस्ते का भार भी उस 11 साल की युवा खिलाड़ी के जीवन का अहम हिस्सा था। एक समय पर एक साथ इतना सब कर पाना उस युवा के लिए काफी मुश्किल हो रहा था, जिस वजह से उन्होंने खेल को छोड़ने की ठान ली। लेकिन कहते हैं ना कि अगर हुनर है तो समय उसे खुद तराश कर रास्ता दिखा देता है।
हालांकि माँ के अनुशासन ने बोम्बायला के अभ्यास में कोई कमी नहीं आने दी। इसके बाद बोम्बायला ने इम्फाल में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया में दाखिला लिया और अपने जौहर को निखारने की जद्दोजहद में जुट गईं।
सफलता की सीढ़ी
समय तेज़ी से बीत रहा था और इस खिलाड़ी के पास दिखाने को बहुत कुछ था। साल 2006 में बोम्बायला ने बांग्लादेश की सरज़मीं पर एक साउथ एशियन आर्चरी चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और वह उनका पहला अंतरराष्ट्रीय मंच बना।
उस चैंपियनशिप से मिले तजुर्बे का इस खिलाड़ी ने भरपूर फायदा उठाया और साल 2007 में इरान में एशियन आर्चरी ग्रां प्री में वूमेंस रिकर्व गोल्ड मेडल जीतते हुए अपने नाम का आगाज़ किया। इसके बाद उनके निशाने और पुख्ता होते चले गए और डोवेर में उनके हाथ आया आर्चरी वर्ल्ड कप का पहला मेडल।
एंटाल्या में आयोजित 2019 आर्चरी वर्ल्ड कप के दौरान उनके करियर में एक और ब्रॉन्ज़ मेडल जुड़ गया। उसी साल के अंत तक उन्होंने वर्ल्ड रैंकिंग के 14वें पायदान पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था।
बोम्बायला का दबदबा
बोम्बायला, बेनर्जी और दीपिका कुमारी ने अब नई दिल्ली में आयोजित 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स पर अपना निशाना साधा। इस तिकड़ी पर खेल प्रेमियों की उम्मीदों का दबाव दिख रहा था। मलेशिया के खिलाफ हुए सेमीफाइनल में 213–185 के स्कोर के साथ भारतीय तिकड़ी ने फाइनल की ओर अपने कदम बढ़ा लिए थे। फाइनल की चुनौती आसान नहीं थी क्योंकि अब सामना इंग्लैंड से होना थदर्शकों को आर्चरी की दुनिया का सबसे दिलचस्प फाइनल देखने को मिला जहां दोनों ही टीमों के खेल में जीत की ललक झलक रही थी। आख़िर में भारत की टीम ने 207–206 का बेहतरीन स्कोर अर्जित कर गोल्ड मेडल अपने हाथ किया।
अगले 5 सालों में भारतीय आर्चरी ने बहुत से सुनहरे पल देखें और वर्ल्ड कप प्रतियोगिताओं में कुल मिलाकर 11 मेडल जीते जिनमें 4 गोल्ड मेडल हैं। बोम्बायला सहित बाकी भारतीय खिलाड़ियों ने भी आर्चरी के खेल की मान्यता भारत में बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 2012 में बोम्बायला को अर्जुना अवार्ड से सम्मानित किया गया।
ओलंपिक गेम्स पर निशाना
इतने सालों की मशक्कत के बाद बोम्बायला ने बहुत नाम कमा लिया है। उनके शानदार करियर में अगर कोई एक कमी है तो वह ओलंपिक मेडल का न होना है। 2008 बीजिंग ओलंपिक के दौरान चीन के खिलाफ मिली हार की वजह से वह मेडल जीतने की रेस से बाहर हो गईं। फिर साल 2012 में आया लंदन ओलंपिक जहां उन्हें आइदा रोमन के हाथों हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर इस तीरंदाज़ के हाथ ओलंपिक गेम्स में खाली रह गए।
एक खिलाड़ी के लिए ओलंपिक में जीत का मतलब कुछ और ही होता है औ बोम्बायला इस बात को काफी अच्छे से समझ सकतीं हैं। साल 2016 में हुए रियो ओलंपिक में महिलाओं के व्यक्तिगत रिकर्व इवेंट के दौरान बोम्बायला ने पहले और दूसरे राउंड को अच्छे अंकों से पार किया। अभी सफ़र लंबा था और राउंड ऑफ़ 16 में उन्हेअलेजांद्रा वालेंसिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर ओलंपिक गेम्स में उनके हाथ निराशा ही आई।
इस 34 वर्षीय खिलाड़ी का अब अगला निशाना टोक्यो 2020 है। सालों का तजुर्बा लिएबोम्बायला देवी 2020 ओलंपिक गेम्स में हमें प्रतिस्पर्धा करते हुए दिख सकतीं हैं। ऐसे में उम्मीद तो यही होगी कि ओलंपिक में मेडल न जीत पाने का उनका जो ख़्वाब अधूरा रह गया है, वह इस दफा सही निशाने पर जाकर लगेगा।