जब भारतीय हॉकी टीम ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में ओलंपिक स्वर्ण पदक (1948, 1952, 1956) की दूसरी हैट्रिक हासिल की, तो इसने एक ऐसी विरासत बनाई, जिसके बारे में आने वाले दशकों तक बात की गई। वो भी क्या दिन थे जब बलबीर सिंह सीनियर, केडी सिंह बाबू, लेस्ली क्लॉडियस और केशव दत्त जैसे दिग्गज खिलाड़ी भारत के लिए मैदन पर उतरते थे।
24 जुलाई, 1952 की तारीख भारतीय हॉकी के इतिहास में दर्ज हो गया। भारतीय टीम ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक के फाइनल में नीदरलैंड्स को हराकर जीत हासिल की और कुल मिलाकर पांचवीं बार स्वर्ण पदक जीता।
देखा जाए तो फ़िनलैंड का सफर कैसा भी रहा हो, लेकिन भारतीय हॉकी टीम के लिए आदर्श था, जिसे फेवरेट माना जा रहा था।
पांचवें गोल्ड से पहले की कहानी
1952 के ओलंपिक से एक महीने पहले समर ओलंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी केडी सिंह बाबू के नाम सौंपी गई, जबकि बलबीर सिंह सीनियर को उपकप्तान बनाया गया।
हालांकि, भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) को क्रमशः उत्तर प्रदेश और बंगाल राज्य हॉकी संघों से सेंटर हाफ ओपी मल्होत्रा और स्ट्राइकर सीएस गुरुंग को टीम में शामिल करने के लिए दबाव का सामना करना पड़ा। इस हस्तक्षेप ने टीम के संयोजन को प्रभावित किया।
भारतीय हॉकी टीम को मद्रास में अपने अभ्यास मैच में एक स्थानीय टीम के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा। इससे भी बदतर ये हुआ कि इस मैच में केडी सिंह बाबू घायल हो गए, मद्रास इलेवन के खिलाड़ी से टकराने के बाद उनके सामने के कुछ दांत टूट गए।
इसने भारतीय हॉकी टीम की तैयारियों पर सवाल खड़े किए, जो तैयारी करने के लिए डेनमार्क के कोपेनहेगन गए थी। यहां भेजने का एक ही मकसद था कि टीम ठंडे मौसम में भी अपनी तेज़ हॉकी को बरकरार रखे और वो हेलसिंकी में मुकाबले के लिए विदेशी परिस्थितियों के अनुकूल हो जाएं।
21 जून के बाद फिनलैंड को ‘लैंड ऑफ द मिडनाइट सन’ के रूप में जाना जाता है, जहां लगभग 70 दिनों तक 24 घंटे के लिए दिन जैसा उजाला होता है और इसके बाद 1952 के ओलंपिक का आयोजन होना था।
सबसे बेहतरीन बात ये थी कि भारतीय हॉकी टीम के 18 में से 10 खिलाड़ी अपना पहला ओलंपिक खेलने वाले थे, जिनको इस बारे में पता ही नहीं थी। समय का अंतर और सूर्य के प्रकाश का टीम के सोने के पैटर्न को बूरी तरह प्रभावित कर रहा था।
कबीर सिंह, बलबीर सिंह सीनियर के पोते ने ओलंपिक चैनल को बताया कि," नानाजी ने मुझे बताया कि टीम हर समय पर्दे को खींच कर रखती थी और यहां तक कि बेडशीट का इस्तेमाल करके रोशनी को रोकने की कोशिश करती थी, ताकि कमरे में पूरी तरह से अंधेरा करके कुछ नींद ले सकें।"
ऐसे शुरू हुआ जीत का अभियान
भारतीय हॉकी टीम को पहले राउंड में ग्रेट ब्रिटेन और पाकिस्तान के साथ एक बाय दिया गया था और इसलिए उन्होंने क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रिया के खिलाफ अपने अभियान की शुरुआत की।
कप्तान और उप-कप्तान दोनों ने एक-एक गोल किया और रघबीर लाल शर्मा और रणधीर सिंह जेंटल ने गोल करके भारत को ऑस्ट्रिया पर 4-0 से जीत दिला दी।
विषम परिस्थितियों को अनुकुल बना चुकि भारतीय टीम ने ऑस्ट्रिया के खिलाफ 4-0 से जीत हासिल का उत्साहित ज़रूर थी लेकिन भारत इस मैच के बाद सुस्त लग रहा था। इसके अलावा नम परिस्थितियों ने भारतीयों को बड़े-बड़े घास पर अपनी कलात्मकता प्रदर्शन करना मुश्किल हो रहा था। दूसरी ओर खिलाड़ियों की अपर्याप्त नींद अपनी भूमिका अलग ही निभा रही थी।
हालांकि, भारतीय हॉकी टीम ने सेमीफाइनल में बेहतर प्रदर्शन करते हुए, ग्रेट ब्रिटेन को 3-1 से हरा दिया। जहां बलबीर सिंह सीनियर ने अपने तीन ओलंपिक हैट्रिक में से दूसरा स्कोर किया। उपकप्तान विशेष रूप से इसिलिए खुश थे कि उन्होंने ब्रिटिश डिफेंस को तोड़ा। मैच के बाद बलबीर सिंह ने कहा था कि हमने ब्रिटिश खिलाड़ियों के चक्रव्यूह को तोड़ दिया था।
“हम ब्रिटेन के खिलाफ सेमीफ़ाइनल में पूरी तरह से बदल गए थे। हम तेज़ी से और आसानी से आगे बढ़ रहे थे और अपनी कॉपी-बुक स्टाइल के साथ अपने डिफ़ेंस को आगे बढ़ाया।”
भारत ने फाइनल के लिए अपना स्थान पक्का कर लिया और फाइनल में नीदरलैंड को 6-1 से हराया।
बलबीर सिंह सीनियर ने इस मैच में पांच गोल किए, जो पुरुषों के ओलंपिक फिल्ड हॉकी टूर्नामेंट के फाइनल में एक रिकॉर्ड था जो आज तक बरकरार है, और कप्तान केडी सिंह बाबू ने अपना नाम भी स्कोरशीट में शामिल किया।
भारतीय हॉकी टीम ने अपने ही अंदाज में पांचवां ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता था। भारत ने कुल 13 गोल किए । बलबीर सिंह सीनियर भाग्यशाली साबित हुए और इस महान हॉकी खिलाड़ी ने नौ गोल किए।
हालाँकि बलबीर सिंह सीनियर का ये भी मानना था कि भारत को ईश्वरीय वरदान भी प्राप्त था।
कबीर सिंह ने खुलासा किया कि, “उन्होंने हेलसिंकी में कोच हरबेल सिंह के साथ एक कमरा साझा किया और नानाजी ने उन्हें टीम की जीत के लिए रात भर प्रार्थना करते सुना। उन्होंने महसूस किया कि इसने जीत में कुछ भूमिका निभाई।”
बलबीर सिंह सीनियर और कप्तान केडी सिंह बाबू के अलावा रणधीर सिंह जेंटल, लेस्ली क्लॉडियस, रंगनाथन फ्रांसिस और ग्राहनंदन सिंह के लिए ये लगातार दूसरा स्वर्ण पदक था।
जीत के बाद मनाया गया शानदार जश्न
जब खिलाड़ी अपने देश लौटे, तो भारतीय हॉकी टीम का भव्य स्वागत हुआ, यहां तक कि एक प्रदर्शनी मैच भी खेला गया, जिसको देखने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी मौजूद थे।
पंजाब के फैंस ने ट्रेन में ही भीड़ लगा दी, क्योंकि पंजाब पुलिस के चार खिलाड़ी - बलबीर सिंह सीनियर, उधम सिंह, धर्म सिंह और रघबीर लाल शर्मा घर लौट रहे थे।
“जब हम ट्रेन से निकले, तो उन्होंने हमें गले लगाने और अपना प्यार जताने के लिए लगभग हमें कुचल दिया। जालंधर में एक विशाल जुलूस में हमें खुली जीपों में ले जाया गया।“ बलबीर सिंह सीनियर ने लेखक बोरिया मजूमदार और नलिन मेहता की किताब, ड्रीम्स ऑफ अ बिलियन: इंडिया एंड द ओलंपिक गेम्स में बताया है।
“हज़ारों लोगों ने सड़कों पर लाइन लगाई और कइयों ने पेड़ पर चढ़कर, तो कइयों ने घर की छत पर से हमारा स्वागत किया। हमें छोटे-छोटे उपहार, फलों और मिठाइयों और मालाओं की टोकरियां दी गईं।- इन लोगों ने अपना प्यार जताने का सरल तरीका अपनाया।”- बलबीर सिंह सीनियर
भले ही चार साल बाद मेलबॉर्न में इससे भी बड़ा पल भारतीय हॉकी टीम के साथ जुड़ गया, जहां भारत ने लगातार छठा ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता। ये भारत को हॉकी महाशक्ति बनाने के लिए पर्याप्त था, ये वो टैग है, जो अभी भी भारतीय पुरुष हॉकी टीम के साथ बना हुआ है।
1952 ओलंपिक की भारतीय हॉकी टीम: के.डी. सिंह बाबू (कप्तान), लेस्ली क्लॉडियस, मेलड्रिक डलुज़, केशव दत्त, सिन्नादोराय देशमुथु, रंगनाथन फ्रांसिस, रघबीर लाल, गोविंद पेरुमल, मुनिस्वामी राजगोपाल, बलबीर सिंह सीनियर, रणधीर सिंह जेंटल, उधम सिंह खुल्लर, स्वरूप सिंह, जसवंत सिंह, सी.एस. दुबे, चमन सिंह गुरुंग, धरम सिंह, ग्रहनंदन सिंह