रेसलिंग का अगला बड़ा नाम बनने की ओर आगे बढ़ रही हैं भारत की अंशु मलिक

नई दिल्ली के पास के एक गौरवशाली कुश्ती परिवार से ताल्लुक़ रखने वालीं 19 वर्षीय अंशु मलिक ने जापानी पहलवानों को अपना आइडल माना और अब वो टोक्यो 2020 से पहले 57 किलोग्राम भार वर्ग में बड़ी उम्मीद के तौर पर देखी जा रही हैं।

6 मिनटद्वारा रितेश जायसवाल
Anshu Malik

भारतीय फ्रीस्टाइल पहलवान अंशु मलिक (Anshu Malik) हाल ही में 19 वर्ष की हो गई हैं, लेकिन काफी पहले से ही उन्हें भविष्य की संभावित ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता के तौर पर देखा जा रहा है।

2019 में जूनियर एशियन चैंपियन का ताज पहनने से पहले उन्होंने विश्व और एशियाई कैडेट चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर अपने सुनहरे सफर की शुरुआत की थी।

कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी की वजह से प्रतियोगिताओं पर विराम लगने से पहले ही उन्होंने साल 2020 की शुरुआत में सीनियर वर्ग में अपने कदम रखे और अपनी प्रतिभा से सभी का दिल जीतने वाली इस पहलवान ने किसी को भी निराश नहीं किया। हरियाणा में जन्मी यह पहलवान रोम में स्टैक्ड माटेओ पेलिकोन मेमोरियल मीट में 57 किग्रा के फाइनल में पहुंची।

अंशु ने अपने इस शानदार प्रदर्शन के दौरान कनाडा की दिग्गज 59 किलोग्राम विश्व चैंपियन लिंडा मोरेस (Linda Morais) और नॉर्वे की 2014 यूथ ओलंपिक गेम्स चैंपियन ग्रेस बुलेन जैसी अनुभवी और दिग्गज पहलवानों पर जीत हासिल की।

अंत में गोल्ड मेडल मैच अंशु के लिए काफी मुश्किल साबित हुआ, जिसमें वह नाइजीरियाई वर्ल्ड नंबर-2 पहलवान ओडुनायो एडेकुओरॉय (Odunayo Adekuoroye) से 10-0 से बुरी तरह हार गईं। हालांकि, भारत की इस युवा पहलवान ने इतना कुछ कर दिया था कि दुनिया का ध्यान उनकी ओर चला ही गया।

अंशु मलिक के खून में कुश्ती

अंशु का जन्म हरियाणा राज्य के निडानी गांव में हुआ था। भारत की इस मिट्टी से कई दिग्गज पहलवानों ने जन्म लिया है, जैसे कि 2019 विश्व कांस्य पदक विजेता विनेश फोगाट आदि।

भारत की शीर्ष महिला पहलवान के साथ उनकी तुलना यहीं खत्म नहीं होती है, क्योंकि दोनों महिला रेसलर एक समृद्ध पहलवानों के खानदान से ताल्लुक रखती हैं।

अंशु के पिता धरमवीर एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगी थे, जबकि उनके चाचा पवन ने दक्षिण एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था।

हालांकि, उनके ही नक्शेक़दम पर चलने के लिए उनके परिवार का अंशु पर कोई दबाव नहीं था। कुश्ती में भविष्य का स्टार बनने की शुरुआत पूरी तरह से उनकी मर्ज़ी के साथ ही शुरू हुआ।

उनके पिता ने ईएसपीएन को बताया, "जब वह 11 साल की थी तो उन्होंने अपने भाई को कुश्ती अभ्यास के लिए जाते देखा और उन्होंने खुद ही ज़ोर देते हुए कहा कि वो भी जाना चाहती है। हम पहलवानों के परिवार से हैं इसलिए मुझे लगा कि यह एक अच्छा विचार रहेगा।”

अपने कई कुश्ती साथियों के विपरीत अंशु ने इस खेल में दिलचस्पी होने की वजह से अपने ही शहर में कई बेहतरीन कुश्ती के अवसरों का भुनाने का काम किया, जिसमें चौधरी भारत सिंह मेमोरियल स्कूल भी शामिल रहा।

मलिक के पिता ने आगे कहा, "हमें उसकी अच्छी कोचिंग और खेल में मदद करने के लिए कभी भी बहुत दूर नहीं जाना पड़ा। उसके पहले कोच एक जॉर्जियाई पहलवान थे, जिन्होंने उसे कुश्ती की बहुत ही ठोस मूल बातें सिखाईं और उसे खुद को भारत के साथ ही साथ दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पहलवानों से तुलना करने के लिए प्रोत्साहित किया।”

जापानी कुश्ती से हुईं प्रेरित

अंशु ने अपने शुरुआती कोच की सलाह का पालन किया और जापानी पहलवानों की कुश्ती का अध्ययन करना शुरू कर दिया, जिन्होंने ओलंपिक में महिलाओं की कुश्ती के इतिहास में 18 स्वर्ण पदकों में से 11 स्वर्ण जीतने वाले शानदार प्रदर्शन किए है।

चार बार की ओलंपिक चैंपियन इको काओरी को अपना हीरो मानने वाली अंशु ने याद करते हुए कहा, "जब भी मुझे जापानी पहलवानों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिला तो मैं हमेशा उनसे पूछूंगी कि वे वास्तव में क्या करती हैं। मैं हमेशा जानना चाहती थी कि उन्होंने कैसे प्रशिक्षण लिया। यहां तक ​​कि जब मैंने उन्हें हराया तब भी यही सवाल था।”

जापानी पहलवानों के बारे में अंशु मलिक ने आगे कहा, "वो अपने शरीर को नहीं तोड़ती हैं, जैसा कि हम भारत में करते हैं। वे भले ही उतने मजबूत न हों जितने कि आप हैं, लेकिन उनकी तकनीक एकदम सही होती है। यही बात उन्हें इतना बेहतर बनाती है।"

ट्रेनिंग में अपने समर्पण की वजह से वो कुछ बड़ा उलटफेर करने की क्षमता रखती हैं।

2018 में एशियाई कैडेट चैंपियनशिप में 60 किग्रा का स्वर्ण पदक जीतने के दौरान अपने धैर्य का एक चौंका देने वाला प्रदर्शन करने के बाद यह उनकी जापानी प्रतिद्वंद्वी नतामी रुका ही थीं जिन्होंने नई चैंपियन के पास आकर पूछा “आप कैसे ट्रेनिंग करती हैं?” इस जीत के दौरान किया गया प्रदर्शन ही उनकी पहचान बन गया।

टोक्यो 2020 ओलंपिक के लिए पूजा ढांडा के साथ टक्कर

जहां एक ओर अंशु का किसी उल्का पिंड की तरह भारतीय कुश्ती में आगे बढ़ना एक बहुत अच्छी बात है, वहीं यह शायद हरियाणा में जन्मी पहलवान पूजा ढांडा के लिए उतनी अच्छी नहीं है।

पूजा ढांडा के 2018 विश्व चैंपियनशिप में 57 किग्रा का कांस्य जीतने के बावजूद चोट लगने के बाद 2019 में उनकी जगह लेने वाली अंशु साल 2021 में होने वाले टोक्यो ओलंपिक खेलों में इस भार वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए पसंदीदा पहलवान बन गई हैं।

चोट से उबरने के बाद 2020 में कुश्ती में वापसी करने के साथ ही ढांडा एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप के लिए हुए भारतीय ट्रायल में एक किशोरी से हार गईं।

वहीं, अंशु ने ओलंपिक की अपनी उम्मीदों को और मजबूत करने के लिए समावेश के लिए अपने मामले को और मजबूत करने के लिए नई दिल्ली के इवेंट में उज़्बेकिस्तान की सेवारा एशमूरतोवा पर 4-1 के कड़े मुक़ाबले में हराकर कांस्य पदक जीता

पूजा ढांडा

भारत
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हालांकि, कोरोना वायरस महामारी की वजह से एशियाई ओलंपिक क्वालिफायर को स्थगित कर दिया गया था, अब चोट से पूरी तरह उबर चुकी ढांडा को विश्वास है कि वह अपनी सबसे अच्छी फॉर्म को एक बार फिर से हासिल कर सकती हैं।

उन्होंने कहा, "पिछले साल मुझे लगातार दो चोटें लगी थीं, इसलिए उससे उबरने में थोड़ा समय लगा। मेरे दिमाग में अब विश्व चैंपियनशिप है। मुझे खुशी है कि ओलंपिक खेलों को स्थगित कर दिया गया, इससे मुझे एक और मौका मिल गया है।”

उन्होंने आगे कहा, "जब प्रतियोगिता होगी तो हम अपने प्रतिद्वंद्वियों की क्षमता को देख सकते हैं, इसलिए प्रतिस्पर्धाओं का न होना निश्चित रूप से खेल को प्रभावित कर रहा है।"

दोनों महिला पहलवानों को उत्तर भारत के लखनऊ शहर में सितंबर में राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में बुलाया गया है।

ऐसे में जो भी पहलवान जापान के लिए उड़ान भरेगा, उसके लिए भारत में अब दो विश्व स्तर की एथलीट आमने-सामने होंगी।

टोक्यो 2020 और उसके बाद

57 किग्रा में टोक्यो 2020 में ओलंपिक स्वर्ण जीतने की सबसे बड़ी उम्मीदवार जापान की ही कावाई रिसाको (Kawai Risako) होंगी।

मौजूदा 63 किग्रा ओलंपिक चैंपियन वर्तमान में 57 किग्रा विश्व चैंपियन भी है, रियो 2016 के बाद उन्होंने अपने भार वर्ग को कम कर लिया है।

25 साल की इस पहलवान को उसके घरेलू मैदान में हराने के लिए कड़ी टक्कर देने की जरूरत होगी।

महिला फ्रीस्टाइल 63 किग्रा के फाइनल में जापान के लिए रिसाको कावाई ने स्वर्ण पदक जीता था।

लेकिन अंशु ने एक बात साबित कर दी है कि उन्हें कमतर नहीं आंका जा सकता है। अब उनके पास एक अतिरिक्त साल का अनुभव भी होगा, ऐसे में कौन जानता है कि वह क्या करने में सक्षम हैं?

भले ही वह टोक्यो के लिए टीम जगह न बना पाएं, लेकिन भारत में यह पहलवान एक चमकते हुए हीरे के तौर पर तैयार हो रही है। ऐसे में वह पहली वरीयता प्राप्त खिलाड़ी के तौर पर पेरिस 2024 और लॉस एंजिल्स 2028 ओलंपिक में हिस्सा ले सकती हैं।

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