लंदन 2012 गेम्स में साइना नेहवाल का ओलंपिक पदक, सही मायनों में भारतीय बैडमिंटन के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।
इस भारतीय शटलर ने भारतीय बैडमिंटन इतिहास का न सिर्फ़ पहला ओलंपिक पदक जीता था बल्कि उन्होंने पीवी सिंधु के लिए एक रास्ता बना दिया था जिसपर चलती हुई सिंधु ने चार साल बाद भारत के लिए रियो 2016 में ऐतिहासिक रजत पदक हासिल किया।
लंदन के ऐतिहासिक वेम्बली एरिना में साइना नेहवाल के पोडियम फिनिश ने भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों की आगामी पीढ़ियों, ख़ासकर महिलाओं को रैकेट उठाने और बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित किया।
एक नज़र डालते हैं साइना नेहवाल के ओलंपिक पदक के सफ़र पर।
बीजिंग ओलंपिक में पदक से चूक गईं साइना नेहवाल
साल 2006 में 16 साल की उम्र में, साइना नेहवाल ने ख़ुद को पहले ही भारतीय महिला बैडमिंटन में एक उभरता हुआ सितारा साबित कर दिया था। उन्होंने जूनियर प्रतियोगिताओं में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। उन्हें भारत की 2006 एशियाई खेल के लिए बैडमिंटन टीम में भी शामिल किया गया था।
ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप के पूर्व विजेता और दिग्गज कोच पुलेला गोपीचंद के मार्गदर्शन में आने के बाद साइना के वैश्विक सुपरस्टार बनने के सपने को मज़बूती मिली और भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी याद करती हैं कि बीजिंग 2008 ओलंपिक खेल उनका पहला लक्ष्य था।
साइना ने कहा, "हमने 2008 बीजिंग खेलों के लिए क्वालीफाई करने का लक्ष्य रखा था और साल की शुरुआत तक मैं अपनी जगह को लेकर आश्वस्त थी। गोपी एक शानदार कोच हैं और मैंने ओलंपिक के लिए वास्तव में कड़ी मेहनत की।"
बीजिंग 2008 में, साइना नेहवाल ने क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बनकर इतिहास रचा।
भारतीय युवा खिलाड़ी सेमी-फाइनल में पहुंचने और पदक की दौड़ में भी प्रवेश करने की प्रबल दावेदार थीं। लेकिन, इंडोनेशिया की मारिया क्रिस्टिन युलियांती के ख़िलाफ़ क्वार्टर फाइनल मुक़ाबले के तीसरे गेम में हारकर वह प्रतियोगिता से बाहर हो गईं।
साइना ने ‘माई ओलंपिक जर्नी’ नामक किताब में ज़िक्र किया है, ‘’उस पल के बारे में सोचती हूं तो मुझे लगता है कि मैं बीजिंग में ही पदक जीत सकती थी। लेकिन आप अपने पहले ही ओलंपिक से बहुत ज़्यादा उम्मीदें नहीं रखते हैं। ज़ाहिर है आज भी उस पल को सोच कर निराश हो जाती हूं जब बीजिंग 2008 में मैं हार गई थी।‘’
लेकिन जैसे ही उस हार के बाद साइना कोर्ट से बाहर निकलीं, लंदन 2012 की तैयारियां उन्होंने शुरू कर दीं थीं।
साइना ने कहा, ‘’मैंने इरादा कर लिया था कि इस हार का बदला लंदन में होने वाले अगले ओलंपिक में लेकर रहूंगी। मुझे याद है अगले दिन सुबह 5 बजे से ही मैंने अभ्यास शुरू कर दिया था।‘’
लंदन 2012 के उस ऐतिहासिक पल की तैयारी
अगले चार सालों तक साइना नेहवाल ने कई BWF ग्रां प्री स्वर्ण पदक अपने नाम किए, पांच सुपर सीरीज़ पर कब्ज़ा जमाया जिसमें तीन इंडोनेशिया ओपन शामिल थे। साथ ही नई दिल्ली में आयोजित 2010 राष्ट्रमंडल खेल में स्वर्ण पदक जीतने के अलावा भी उन्होंने कई चैंपियनशिप अपने नाम की थी।
लेकिन, साल 2009 में अर्जुन अवार्ड और राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित साइना के लिए एकमात्र लक्ष्य लंदन 2012 ओलंपिक था।
हालांकि, ओलंपिक से पहले उनकी तबियत ख़राब हो गई। ओलंपिक से एक सप्ताह पहले, साइना नेहवाल को गंभीर रूप से वायरल बुखार हो गया, जिसके बारे में वह मानती हैं कि इसका असर उनके प्रदर्शन पर पड़ा।
पूरी तरह से फिट नहीं होने के बावजूद, साइना नेहवाल ने ओलंपिक के ग्रुप चरण में अपने दो मैच सीधे गेम में जीते, जहां उन्होंने स्विट्जरलैंड की सबरीना जैकेट को 21-9, 21-4 से और बेल्जियम की लियान टैन को 21-4, 21-14 से हराया।
राउंड ऑफ़ 16 में भारतीय शटलर के सामने याओ जिए की चुनौती थी लेकिन चीन में जन्मीं इस डच खिलाड़ी ने साइना को ख़ास परेशान नहीं किया और साइना नेहवाल ने 21-14, 21-16 से जीत दर्ज की।
क्वार्टर फाइनल में, भारतीय खिलाड़ी को 'पुरानी दुश्मन' टाइन बाउन के ख़िलाफ़ काफ़ी कठिन चुनौती का सामना करना पड़ा।
तीन बार की ऑल इंग्लैंड विजेता के ख़िलाफ़, साइना नेहवाल को परेशानी का सामना करना पड़ा। लेकिन अंततः क्वार्टर फाइनल में भारत की युवा खिलाड़ी ने 21-15, 22-20 से जीत हासिल की।
सेमी-फाइनल में साइना नेहवाल की टक्कर चीन की वांग यिहान के खिलाफ हुई जहां भारतीय शटलर को प्रतियोगिता में अंततः रजत पदक जीतने वाली चीनी बैडमिंटन खिलाड़ी ने हरा दिया।
"बदक़िस्मती से उस अहम मौक़े पर मैं अपना खेल बेहतर नहीं कर पाई, ये शायद वायरल फ़ीवर का असर था। यिहान ने ये देख लिया था कि मैं असहज हूं और उन्होंने मुझे कोर्ट के चारों तरफ घुमाया।"
उन्होंने कहा, ‘’स्टेमिना की कमी की वजह से मैंने घुटने टेक दिए थे और मैं निराश थी, क्योंकि मैं फ़ाइनल में जाना चाहती थी और स्वर्ण जीतना चाहती थी।‘’
वेंबले में साइना नेहवाल का ओलंपिक पदक
लेकिन उनका सफ़र अभी ख़त्म नहीं हुआ था। कांस्य पदक के लिए अब उन्हें एक और चीनी शटलर वांग शिन का सामना करना था।
साइना ने पदक तो जीत लिया लेकिन शायद उस तरीक़े से नहीं जैसी उन्होंने कल्पना की होगी।
पहले ही गेम में अपने प्रतिद्वंदी को बाहर करने के इरादे से उतरी आक्रामक साइना ने इस कोशिश में कई गलतियां की और पहला गेम 18-21 से हार गईं।
दूसरे गेम में 1-0 से पिछड़ने के बाद भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी ने वापसी का इरादा किया लेकिन तभी शिन का घुटना मुड़ गया और चोट इतनी गंभीर थी कि उन्हें मैच छोड़ना पड़ा। जिसके बाद साइना नेहवाल को कांस्य पदक हासिल हुआ।
‘’मैं बिल्कुल अचंभित थी, मैं उन्हें हराकर पदक जीतना चाहती थी। मैं उन्हें हताश और दर्द में देखकर निराश भी थी और मैंने जाकर उन्हें सांत्वना भी दी।‘’
पदक जैसे भी मिला हो, ये साइना नेहवाल और पुलेला गोपीचंद दोनों के लिए ही एक न भुलाने वाला पल था। भारतीय बैडमिंटन ने ओलंपिक में इतिहास रच दिया था और पहली बार पदक के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी।
साइना नेहवाल के पति पारुपल्ली कश्यप, जो ख़ुद भी एक बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, उन्होंने ESPN के साथ बातचीत में कहा, "ये बहुत बड़ा पल था, पोडियम पर उन्हें देखना बेहद भावुक करने वाला था।"
"कांस्य पदक मैच के बाद उनकी भावनाएं और जिस तरह से यह समाप्त हुआ, वह भ्रम की स्थिति थी लेकिन साथ ही, उन्होंने इसे यह हासिल किया और पदक जीता।"
कश्यप ने कहा, "साइना हमेशा एक बहुत बड़ी प्रेरक रही हैं। उनकी उपलब्धियों, उनके परिणामों ने शुरुआत में उस समय के सभी बैडमिंटन खिलाड़ियों की मानसिकता को बदल दिया"। आपको बता दें कि पारुपल्ली कश्यप ने पुरुषों के क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई थी और ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय थे।
रियो 2016 में साइना नेहवाल दूसरे दौर में हारकर बाहर हो गईं। वह घुटने की चोट के साथ खेलीं और बाद में उन्हें रियो जाने के फैसले पर अफसोस भी जाहिर किया। COVID-19 के प्रकोप के कारण टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाइंग स्पर्धाओं पर बड़ा प्रभाव पड़ा और दुर्भाग्य से साइना नेहवाल जापान में होने वाले आगामी ग्रीष्मकालीन खेलों के लिए जगह बनाने में असफल रहीं।