जहां अधिकांश एथलीटों के लिए ओलंपिक गेम्स में पहुंचना एक सपना होता है।
कराटे स्टार हैमून डेराफशिपौर कोई अपवाद नहीं है, लेकिन उनकी एक खास इच्छा थी, जिसके लिए एक बदलाव की आवश्यकता थी।
उन्होंने TheRecord.com (सदस्यता जरूरी है) से बात करते हुए कहा, "मैं चाहता था कि मेरी पत्नी मेरी कोच बने, जहां मौजूदा नियमों के कारण घर वापस जाना संभव नहीं था।"
वहीं, डेराफशिपौर ने अपनी मातृभूमि ईरान का प्रतिनिधित्व किया, और मैड्रिड में 2018 विश्व चैंपियनशिप में कुमाइट में कांस्य पदक अपने नाम किया था।
एक साल बाद, वो कनाडा के लिए रवाना हो गए ताकि उनकी पत्नी उन्हें टोक्यो 2020 खेलों से पहले ट्रेनिंग दे सकें।
इस दौरान उस कांस्य पदक और विश्व रैंकिंग में सुधार के कारण उन्होंने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया। फिलहाल वो IOC Refugee Olympic Team के हिस्से के रूप में शामिल होंगे।
फिलहाल इस 28 वर्षीय एथलीट के पास अपनी ट्रेनिंग की फीस नहीं है और वर्तमान में टोक्यो में स्वर्ण पदक हासिल करने की सूची में हैं। इसको लेकर ये एथलीट इस्तांबुल में छह सप्ताह के ट्रेनिंग कैंप में हिस्सा लेने के लिए धन जुटा रहा है।
हैमून डेराफशिपौर ने TheRecord.com से बात करते हुए कहा, "आपके कोच को मानसिक रूप से आपका पूरा समर्थन करना होगा, और वो मुझे किसी और से भी बेहतर जानती हैं।"
अपना एक सपना पूरा किया
आपको बताते चलें कि डेराफशिपौर का जन्म और पालन-पोषण इराक के बॉर्डर के नजदीक कर्मांशाह में हुआ था।
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करते हुए, साल 2010 एशियाई खेलों में कांस्य पदक विजेता मालेकिपुर से मुलाकात की, जो अपनी घुटने की इंजरी के बाद ईरान की महिला राष्ट्रीय टीम को कोचिंग दे रही थी। हालांकि इसके बाद उनका प्रतिस्पर्धी करियर खत्म हो गया।
वहीं, इस जोड़ी को एक दूसरे से प्यार हो गया और 2017 के आखिरी में अपने गृहनगर में कराटे अकादमी खोली।
हैमून डेराफशिपौर ने जनवरी 2018 में पेरिस ओपन में शानदार प्रदर्शन करते हुए तीसरा स्थान हासिल किया था। वहीं, वो विश्व चैंपियनशिप के लिए नेशनल ट्रायल में भी सफल रहे।
यही नहीं हैमून मैड्रिड में मुकाबला करते हुए अपने 67 किग्रा सेमीफाइनल में पहुंचे। हालांकि उन्हें फ्रांस के अंतिम स्वर्ण पदक विजेता स्टीवन दा कोस्टा से 2-0 से हार का सामना करना पड़ा। वहीं, इसके बाद उन्होंने सरजमी पसंदीदा राउल कुर्वा को 6-3 से हराकर कांस्य पदक अपने नाम किया था।
हालांकि, इस दौरान वो अपनी कोचिंग से नाखुश नजर आए। वहीं, अक्टूबर 2019 में डेराफशिपौर ने एक बड़ा निर्णय लिया। जहां उन्होंने ईरान और उनकी अकादमी के 400 छात्रों को ओंटारियो के वाटरलू क्षेत्र में छोड़ा, जहां उनके चचेरे भाई हैं।
उन्होंने TheRecord.com से बात करते हुए आगे कहा, "जब हम कनाडा आए तो सभी ने मुझसे कहा कि मेरे लिए ओलंपिक तक पहुंचना असंभव है। हालांकि मेरे पास ज्यादा समय नहीं था। मैं थोड़ा परेशान था, लेकिन मैंने खुद से कहा कि कुछ भी संभव है। मैंने अपनी जिंदगी में हमेशा चुनौतियों को स्वीकार करना सीखा है।"
वहीं, डेराफशिपौर और उनकी पत्नी को स्थानीय समुदाय की मदद से पास के किचनर शहर में ड्रिफ्टवुड मार्शल आर्ट्स में एक इंस्ट्रक्टर और कोच के रूप में मौका मिला। इसके साथ ही वो और मालेकिपुर, कैम्ब्रिज में काज़ोकू मार्शल आर्ट्स में भी ट्रेनिंग देते हैं, जहां वो दोनों सेंटर को खेलों में सफल होते हुए देखना चाहते हैं।
अप्रैल में, डेराफशिपौर को अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) से एक फोन आया, जिसमें पुष्टि की गई कि वो वास्तव में टोक्यो के लिए क्वालीफाई कर चुके हैं। वहीं, मालेकिपुर के लिए, ये एक खुशी की खबर थी, जिसका वो इंतजार कर रही थी।
डेराफशिपौर की पत्नी ने कहा, "हमने ओलंपिक के लिए एक लॉन्ग-टर्म योजना बनाई है। मैं बहुत खुश हूं। मैं ओलंपिक गेम्स में अपने पति के साथ रहने जा रही हूं।"
वहीं, डेराफशिपौर अपने भार वर्ग के सबसे लंबे पुरुषों में से एक है और, अपनी स्पीड से संबद्ध, एक भयंकर प्रतिद्वंद्वी के तौर पर भी हैं।
मालेकिपुर ने आगे कहा, "वो बहुत तेज है और उसके पास अच्छी तकनीक है और साथ ही प्रतिस्पर्धा में होशियार है। वो एक मेहनती एथलीट है और वो हमेशा प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है।"
जबकि करेटेका को नागरिकता प्राप्त करने के बाद भविष्य में कनाडा का प्रतिनिधित्व करने की उम्मीद है, उन्हें खेलों में IOC के झंडे के नीचे प्रतिस्पर्धा करने पर गर्व है।
मई में हैमून डेराफशिपौर ने CBC से कहा, "बेशक, मैं खुश हूं। लेकिन मैं सबसे ज्यादा इस बात से खुश हूं क्योंकि मेरी पत्नी मुझे ओलंपिक में कोचिंग दे रही हैं।" "यह सपना हम दोनों के लिए है। हमारे पास खुश रहने का समय नहीं है। हम परिणाम हासिल करना चाहते हैं। उसके बाद हम यह कहने में सक्षम होंगे कि 'ओह, अब हम खुश हैं।"