अकर अल ओबैदी से मिलिए – एक रिफ्यूजी रेसलर जिसने ऑस्ट्रिया के पहाड़ों पर मुक्ति पाई

जानें कैसे आईओसी रिफ्यूजी एथलीट स्कॉलरशिप धारक ने इराक में इस्लामिक स्टेट को छोड़कर यूरोप में एक नया जीवन शुरू करने के लिए कुश्ती को अपने करियर के तौर पर चुना।

5 मिनटद्वारा रितेश जायसवाल
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(© UNHCR/Benjamin Loyseau)

जब अकर अल ओबैदी ने पहली बार 6 साल की उम्र में कुश्ती शुरू की, तो उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि एक दिन यह खेल उन्हें एक नया जीवन देने का काम करेगा।

युवा इराकी ने मौज-मस्ती के तौर पर प्रतिस्पर्धा करना शुरू किया, और उन्होंने अपनी क्षमता को साबित किया। ओबैदी ने धीरे-धीरे जूनियर टूर्नामेंट जीतना शुरू किया, और अन्य देशों का ध्यान आकर्षित किया जो उन्हें अपने यहां शामिल करना चाहते थे। लेकिन जब वह 14 साल के हुए तो उनकी यह मौज मस्ती अचानक बंद हो गई।

खुद को इस्लामिक स्टेट करार देने वाले एक समूह ने उसके शहर मोसुल, इराक पर कब्जा कर लिया और उसकी उम्र के आसपास के लड़कों की भर्ती शुरू कर दी। जिसके बाद वह देश छोड़कर वहां से भाग गया।

21 साल के ओबैदी ने इसपर कहा, "मैं छोड़ना नहीं चाहता था, लेकिन मुझे ऐसा करना पड़ा। यह एक बहुत ही डरावना अनुभव था। मुझे नहीं पता था कि मैं कहां जा रहा हूं या मैं कहां पहुंचूंगा। मैं अपने परिवार से अलग हो गया था और दूसरों के समूह को फॉलो कर रहा था। मुझे इस बात का भी डर था कि क्या मेरा परिवार युद्ध से बच पाएगा। मुझे अपना ख्याल खुद ही रखना था।”

"पूरी स्थिति मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत ही भयावह थी, और मुझे इसके लिए डॉक्टरों से मिलना पड़ा।”

ओबैदी यूरोप के लिए रवाना हुए, और अंततः ऑस्ट्रिया में जाकर रुके, जहां उन्हें शरण दी गई।

उन्होंने आगे कहा, “यह योजना ऑस्ट्रिया आने के बारे में नहीं थी। मैंने इसके बारे में कभी सुना भी नहीं था। यह वह जगह थी जहां पर जाकर मैं रुक गया, क्योंकि हम वहां से अब जा नहीं सकते थे।”

इस युवा को उसकी नई मातृभूमि में एक मिडल स्कूल में भर्ती कराया गया, जहां उसने थोड़ी जर्मन सीखी। लेकिन उनका मार्गदर्शन करने के लिए उनके आसपास परिवार न होने की वजह से ओबैदी ने सबसे पहले अपने लिए एक नया जीवन बनाने के लिए संघर्ष करना शुरू किया।

ओबैदी ने आगे कहा, "रिफ्यूजी होने पर कई मुश्किलें भी होती हैं। देश में रुकने के लिए सरकार की अनुमति हासिल करने के लिए फॉर्म और वीजा भी भरना पड़ता है, यह सब काफी मुश्किल हो जाता है, खासकर जब यह आपकी मातृभाषा में नहीं होता है।"

"मेरी प्रतिभा ने मेरे लिए बहुत सारे दरवाजे खोले और मैंने कुश्ती में बहुत सारे दोस्त बनाए।"

खुशी की तलाश में ओबैदी कुश्ती की मैट पर वापस लौटने में सफल रहे और उन्होंने पाया कि वह अभी भी इस जाने-पहचाने से वातावरण में खुद को बेहतर कर सकते हैं।

ग्रीको-रोमन पहलवान ने अपने प्रशिक्षण को जारी रखा, उस वक्त वह एक चित्रकार के रूप में काम नहीं कर रहा था, और दो साल बाद उसे बेनेडिक्ट "मो" अर्न्स्ट ने प्रशिक्षण जारी रखने के लिए एक छोटे पहाड़ी शहर इंजिंग में जाने के लिए राजी कर लिया।

जो बड़े शहरों की हलचल का आदी हो, उस युवा इराकी के लिए इससे बड़ा संस्कृति परिवर्तन नहीं हो सकता था।

अर्न्स्ट ने अपने सलाहकार के रहने के लिए एक अपार्टमेंट का इंतजाम किया, और ओबैदी की प्रतिभा को स्थानीय क्लबों द्वारा तुरंत पहचाना जाने लगा। इससे मोसुल के लड़के को अपने नए परिवेश में जल्दी बसने में मदद मिली, और पांच साल बाद वह बेहतरीन जर्मन बोलने लगा।

उन्होंने कहा, “मैंने ऑस्ट्रियाई दोस्त बनाए, जिन्होंने वास्तव में मेरी काफी मदद की। मैं ऑस्ट्रिया से बहुत प्यार करता हूं, यह एक बहुत ही खूबसूरत देश है। यहां खाना बहुत अच्छा है, और मुझे पहाड़ों से प्यार है। उनमें अब घर जैसा महसूस हो रहा है। खेल में शामिल होने और एक खिलाड़ी होने के नाते मुझे यहां बसने में मदद मिली है। मेरी प्रतिभा ने मेरे लिए बहुत सारे दरवाजे खोले और कुश्ती में मैंने बहुत सारे दोस्त बनाए।”

(© UNHCR/Benjamin Loyseau)

देख रहे टोक्यो ओलंपिक का सपना

जूनियर अंतरराष्ट्रीय में कुछ प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद उन्हें 66 किग्रा में सर्बियाई ओलंपिक चैंपियन, डावर स्टेफनेक के साथ एक प्रशिक्षण शिविर में आमंत्रित किया गया।

ओबैदी ने कहा, “मुझे उसके खिलाफ मुकाबला करके अच्छा लगा। तब मुझे लगा कि मैं टोक्यो 2020 में पदक जीतने के स्तर पर हूं।”

उन्होंने अपनी टोक्यो 2020 ओलंपिक में प्रतिस्पर्धा करने की महत्वाकांक्षा को हर दिन याद रखने के लिए घर पर अपनी एक दीवार पर पांच ओलंपिक रिंग को पेंट कर लिया। 

और फिर 2019 में एक दिन उनके इस सपने ने हकीकत की दुनिया में कदम रखने के लिए एक बड़ा कदम उठाया। उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति रिफ्यूजी एथलीट स्कॉलरशिप से सम्मानित किया गया, जिसका मतलब यह था कि उन्हें ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धा करने की अपनी खोज पर अतिरिक्त धन और प्रशिक्षण सहायता में बहुत अच्छा लाभ मिलने वाला था।

उन्होंने कहा, "मैं रिफ्यूजी एथलीट स्कॉलरशिप पाकर बहुत खुश था। मेरे पास अभी राष्ट्रीयता नहीं है, ऐसे में यह साबित करने का एक अच्छा होगा कि रिफ्यूजी भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं और सफल भी हो सकते हैं।"

यह पहलवान अब अपने परिवार के संपर्क में है, जिसे भी वह जानते हैं वह उसपर गर्व करते हैं। लेकिन अगर ओलंपिक में भाग लेने का उनका यह सपना साकार होता है, तो वह इस ग्रह पर मौजूद हर विस्थापित हुए व्यक्ति के लिए मिसाल बनेंगे।

"मैं हम जैसे लोगों को आवाज देने की कोशिश कर रहा हूं, यह दिखाने के लिए कि रिफ्यूजी बुरे लोग नहीं हैं। हमें हमेशा बुरे लोगों के रूप में नहीं सोचा जाना चाहिए और नकारात्मक नजरिए से नहीं देखना चाहिए। हम दिखाना चाहते हैं कि विदेशी लोग अच्छा काम कर सकते हैं, खेल में अच्छे हो सकते हैं और पदक जीत सकते हैं।

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