भारत में पहलवान और पहलवानी दोनों को ही ऊंचा दर्जा दिया जाता है। ऐसे ही एक पहलवान हैं जिन्होंने हर भारतीय के दिल में ख़ास जगह बनाई है। जी हां, हम बात कर रहे हैं दिग्गज रेसलर सुशील कुमार की। उन्हें व्यक्तिगत स्पर्धा में देश के पहले दो बार के ओलंपिक पदक विजेता और कुश्ती विश्व चैंपियनशिप जीतने वाले पहले भारतीय होने का गौरव प्राप्त है।
बीजिंग 2008 गेम्स में सुशील ने 66 किग्रा में लड़ते हुए ब्रॉन्ज़ मेडल पर अपने नाम की मुहर लगाई। तब से लेकर अब तक भारतीय कुश्ती में साल दर साल बढ़ोतरी ही आई है। ग़ौरतलब है कि यह मेडल 1952 मखाशाबा दादासाहेब जाधव के ब्रॉन्ज़ मेडल के बाद पहलवानी में पहला पदक था।
4 साल बाद यानि लंदन गेम्स के दौरान सुशील ने ज़ोरदार दहाड़ लगाते हुए सिल्वर मेडल अपने नाम किया और देश के गौरव में चार चांद लगा दिए।
तीन बार ओलंपिक गेम्स में भाग ले चुके इस खिलाड़ी ने कहा “रेसलिंग के अलावा मुझे कुछ और नहीं आता।”
साउथ वेस्ट दिल्ली के बापरोला गांव में जन्मे इस पहलवान ने न सिर्फ अपने राज्य को बल्कि पूरे भारत को प्रेरित किया और कुश्ती के नाम को ऊंचा कर दिया। अपने भाई और पिता को देखकर ही उन्होने पहलवानी में कदम रखे और देखते ही देखते वे मिसाल बनते चले गए। अगर इस खिलाड़ी ने भारत को बहुत कुछ दिया है तो भारत ने भी इन्हें अर्जुन अवार्ड, राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड और पद्मश्री अवार्ड से नवाज़ा है।
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