ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने वाले दूसरे भारतीय और पूर्व ओलंपियन पुलेला गोपीचंद एक कोच भी हैं, जिन्होंने साइना नेहवाल और पीवी सिंधु को उनके ओलंपिक पदक जीतने में मदद की है।
साल 2001 में प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोपीचंद की जीत एक महत्वपूर्ण पल था। यही वह पल था जिसके बाद घुटने की समस्या की वजह से चोटों से भरपूर उनका करियर डगमगाने लगा।
पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी ने कहा, “बीते वक्त को देखें तो मैंने जो कुछ भी हासिल किया है, उससे मैं खुश हूं। परिस्थितियों को देखते हुए मुझे नहीं लगता है कि कोई कमी छोड़ी है।”
अपने घुटने के हुए कई ऑपरेशन के बावजूद पुलेला गोपीचंद वर्षों तक भारतीय बैडमिंटन की उज्ज्वल उम्मीद बने रहे। 1996 से वह लगातार पांच साल तक भारतीय नेशनल बैडमिंटन चैंपियन रहे और पुरुष टीम और पुरुष एकल में 1998 के राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए रजत और कांस्य पदक जीता। इसके बाद उन्हें अगले साल अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अपने आक्रामक खेल के लिए प्रसिद्ध पुलेला गोपीचंद ने सिडनी 2000 में अपनी एकमात्र ओलंपिक उपस्थिति दर्ज कराई।
पहले दौर में बाई मिलने के बाद भारतीय शटलर ने अपनी पहली चुनौती में यूक्रेन के व्लादिस्लाव ड्रुज़ेन्को का सामना किया। इस मैच में काफी लंबी रैलियां चलीं। इसके बाद यह भारतीय टेनिस खिलाड़ी प्री-क्वार्टर फ़ाइनल में दूसरी वरीयता प्राप्त और ओलंपिक रजत पदक विजेता हेंड्रावन के खिलाफ एक सूजे हुए घुटने और तेज़ बुखार के साथ कोर्ट पर उतरा और 9-15, 4-15 से उसे हार का सामना करना पड़ा।
पीछे मुड़कर देखें, तो मैंने जो कुछ भी हासिल किया है, उससे खुश हूं। परिस्थितियों को देखते हुए, मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ भी नहीं छोड़ा है।
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