पश्चिम बंगाल के बारानगर में जन्मे अतानु दास ने बचपन में उसी वक़्त से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन शुरू कर दिया था जब उनके पिता ने उनका दाखिला एक तीरंदाज़ी क्लब में करवाया।
उन्हें अपने परिवार और स्कूल का भरपूर समर्थन मिला, जिससे अभ्यास के लिए उन्हें पर्याप्त समय मिला। साल 2007 में, अतानु दास ने राष्ट्रीय सब-जूनियर चैंपियनशिप की व्यक्तिगत और टीम स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर युवा वर्ग में अपनी प्रतिभा का डंका बजा दिया।
अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए अतानु दास ने साल 2008 में टाटा आर्चरी एकेडमी में दाखिला लिया और तीन साल बाद, युवा तीरंदाज़ ने पोलैंड में आयोजित वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप की पुरुष टीम स्पर्धा में रजत पदक हासिल किया। यह उनका पहला अंतरराष्ट्रीय पदक था।
अतानु ने कड़ी मेहनत के साथ पदक जीतने का सिलसिला बरक़रार रखा, विशेष कर टीम स्पर्धाओं में उनका प्रदर्शन शानदार रहा। साल 2013 और 2014 के विश्व कप में चार पदकों ने उन्हें एक मंझा हुआ तीरंदाज़ बना दिया। इसके बाद हर बीतते साल के साथ अतानु दास का प्रदर्शन और भी निखरता रहा।
भारतीय तीरंदाज़ को ओलंपिक में डेब्यू करने में भी अधिक समय नहीं लगा।
साल 2016 में रियो ओलंपिक के लिए पुरुषों की श्रेणी में भारत को सिर्फ़ एक कोटा स्थान मिला था। ऐसे में ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले तीरंदाज़ का चयन करने के लिए आर्चरी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने ट्रायल का इस्तेमाल किया।
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