1993 में जन्मी अपूर्वी चंदेला एक खेल पत्रकार बनना चाहती थीं लेकिन बीजिंग 2008 ओलंपिक गेम्स में अभिनव बिंद्रा के जीते गोल्ड मेडल ने उन्हें एक शूटर बनने के लिए प्रेरित किया। बिंद्रा के पदक ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि वो अब तक दो बार ओलंपिक का सफर तय कर चुकी हैं।
उनके पिता जो जयपुर में ही होटल का कारोबार करते हैं उन्होंने चंदेला को एक खिलाड़ी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिता की भूमिका निभाते हुए उन्होंने चंदेला के लिए अपने घर के ही पीछे एक शूटिंग रेंज की स्थापित करा दी, ताकि उनकी बेटी को अभ्यास करने में कोई दिक्कत ना हो।
अपने स्कूल और राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धि के बाद 2014 में हुए ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान गोल्ड मेडल चंदेला की बड़ी उपलब्धि थी। इसके बाद उनका कारवाँ बढ़ता चला गया।
इसके एक साल के बाद उन्होंने वर्ल्ड कप में अपना डेब्यू किया और ब्रॉन्ज़ मेडल जीता और इस वजह से उन्हें ओलंपिक गेम्स में शिरकत करने का मौका मिला। हालांकि रियो 2016 में वो ‘ब्लैंक’ हो गईं और 10 मीटर एयर राइफल के शुरूआती राउंड में ही बाहर हो गईं। 51 खिलाड़ियों में चंदेला को 34वीं रैंक नसीब हुई।
पूछे जाने पर उन्होंने ओलंपिक डेब्यू को एक सीखने की प्रक्रिया बताया और खुद को आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार किया।
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